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जानिए, कैसे देश का सुरक्षा कवच तैयार करती हैं वायु सेना की रक्षा प्रणालियां

हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित सेना की ब्रीफिंग के दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आइएसीसीएस) की तस्वीर साझा की गई, जिसमें युद्ध जैसी स्थिति में पाकिस्तान से आने वाले हवाई खतरों को रोकने के लिए तैनात वायु रक्षा प्रणाली की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग को दुनिया के सामने लाया गया। […]

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जयपुर

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Nitin Kumar

May 16, 2025

हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित सेना की ब्रीफिंग के दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आइएसीसीएस) की तस्वीर साझा की गई, जिसमें युद्ध जैसी स्थिति में पाकिस्तान से आने वाले हवाई खतरों को रोकने के लिए तैनात वायु रक्षा प्रणाली की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग को दुनिया के सामने लाया गया। इस आधुनिक प्रणाली को भारत की वायु सुरक्षा संरचना की रीढ़ माना जा रहा है। आइए जानते कि कैसे काम करती है यह प्रणालीः

कैसी होती है एक सक्षम वायु रक्षा प्रणाली

दुश्मन के हवाई हमलों से बचाने वाली सक्षम वायु रक्षा प्रणाली किसी भी देश के रक्षात्मक ढांचे के लिए महत्वपूर्ण हैं। वायु रक्षा प्रणाली राडारों, नियंत्रण केंद्रों, रक्षात्मक लड़ाकू विमानों और जमीनी वायु रक्षा मिसाइल, तोपखाने और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक समेकित और जटिल प्रणाली का उपयोग करती हैं, जो दुश्मन के विमानों, ड्रोन और मिसाइलों सहित आकाश से आने वाले कई तरह के खतरों को बेअसर करती हैं।

इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम

वायु सेना की इस प्रणाली को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने विकसित किया है। यह एक स्वचालित कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम है, जो थल, वायु और नागरिक राडारों, संचार केंद्रों व सेंसर से डेटा एकत्र कर एकीकृत रीयल-टाइम फ्रेमवर्क तैयार करता है। इसका उद्देश्य सैन्य कमांडरों को समग्र स्थिति की सटीक जानकारी देना है, जिससे वे कम समय में निर्णय लेकर खतरे का मूल्यांकन और त्वरित प्रतिक्रिया दे सकें। आइएसीसीएस की सबसे बड़ी विशेषता है इसके केंद्रीकृत नियंत्रण और विकेन्द्रित क्रियान्वयन की क्षमता। ओवरलैपिंग राडार और आइएसीसीएस की रेडियो डेटा कवरेज एयरस्पेस का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करती है, जिससे दोहराव कम होता है और सुरक्षा तंत्र मजबूत होता है।

आकाशतीर

इसी तरह भारतीय थल सेना ने भी आकाशतीर नामक प्रणाली विकसित की है, जो वर्तमान में सीमित पैमाने पर काम कर रही है। इसका उद्देश्य युद्ध क्षेत्र में निम्न स्तरीय हवाई क्षेत्र की निगरानी और जमीनी वायु रक्षा हथियारों का संचालन करना है। इसे आइएसीसीएस से जोड़े जाने की प्रक्रिया चल रही है ताकि वायुसेना और थलसेना की वायु रक्षा गतिविधियां समन्वित हो सकें।

भारतीय वायु रक्षाः बहुस्तरीय ढांचा

पहली परत में काउंटर-ड्रोन सिस्टम और मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम्स (एमएएन-पीएडीएस) आते हैं।

दूसरी और तीसरी परत में शॉर्ट रेंज और मीडियम रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइलें तैनात हैं।

चौथी परत में लॉन्ग रेंज मिसाइल सिस्टम हैं जो बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं।

भारतीय वायुसेना के आधुनिक राडार – जिनमें हवा में रहने वाली राडार प्रणालियां एडब्लूएसीएस (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) और एईडब्लूएंडसी (एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल) और जमीनी राडार शामिल हैं - आइएसीसीएस नेटवर्किंग के साथ घुसपैठियों की पहचान, उनका पता लगाने और उन्हें निष्क्रिय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

वायु रक्षा क्षेत्र में उठाए गए अहम कदम

बीते कुछ वर्षों में भारतीय वायुसेना ने सभी संवेदनशील ठिकानों पर वायु रक्षा प्रयासों को अपग्रेड किया है, जिसमें राडार और सतह से हवा में मार करने वाले 'गाइडेड' हथियार (एसएजीडब्ल्यू) प्रणालियों की उपस्थिति को बढ़ाया गया है, साथ ही आइएसीसीएस नेटवर्क में एकीकृत भी किया गया है। निकट भविष्य में आइएसीसीएस तीनों सेनाओं में वायु रक्षा प्लेटफार्मों से समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सभी वायु रक्षा परिसंपत्तियों के एकीकरण में मदद करेगा। यह भविष्य में विभिन्न खतरों के विश्लेषण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों को भी पूरी तरह से शामिल करेगा।