
सीकर. एक ओर जहां आम आदमी सुबह प्रतिदिन मंदिर, मस्जिद और चर्चा जाते हैं, वहीं शेखावाटी में सैनिकों व शहीदों के परिवार सुबह शहीदों की याद में बनाई गई प्रतिमा स्थल पर जाते हैं। जिस प्रकार से राजस्थान में तेजाजी, पाबूजी, गोगाजी, रामदेवजी, हड़बुजी, मेहाजीमांगलिया आदि को लोक देवता के रूप में घर-घर में पूजा जाता है। ठीक इसी प्रकार से शहीदों की प्रतिमाओं को शहीदों के परिवार व ग्रामवासी लोक देवताओं की तरह पूजते हैं। करगिल युद्ध में सबसे अधिक 32 जवान शेखावाटी क्षेत्र के शहीद हुए थे। शहीदों की इन प्रतिमा स्थलों पर राखी, दीपावली, होली सहित सभी त्योहार मनाए जाते हैं। रक्षाबंधन के त्योहार पर बहनें शहीद भाईयों के राखियां बांधने आती हैं। यहां तक की शहीदों की निशानियां भी सुरक्षित रखी हुई हैं।
राजस्थान के गांवों के साथ ही सबसे अधिक शहीदों की प्रतिमाएं शेखावाटी के गांवों में लगी हुई हैं। सीकर के फतेहपुर शेखावाटी कस्बे के दीनवा लाडखानी गांव में तीन शहीदों की प्रतिमाएं (मंदिर) बने हुए हैं। ये प्रतिमाएं शहीद मुखराम बुडानिया (सेना मेडल) , शहीद सूरजभान बुडानिया और शहीद धर्मवीर सिंह शेखावत की हैं। दीनवा लाडखानी गांव के सात जवान देश के लिए शहीद हो चुके हैं।
सीकर के आंतरी गांव के शहीद श्रवणसिंह शेखावत करगिल युद्ध में 4 मई 1999 को शहीद हुए थे। करगिल युद्ध में सबसे पहले सीकर से श्रवणसिंह ही शहीद हुए थे। श्रवणसिंह को काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स (डेल्टा फोर्स) के एक भाग के रूप में जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में तैनात किया गया था। यह यूनिट अक्सर आतंकवादियों के विरुद्ध अभियानों में संलग्न थी। शहीद को उनके असाधारण साहस, कर्तव्य के प्रति समर्पण और सर्वोच्च बलिदान के लिए 26 जनवरी 2000 को वीरता पुरस्कार, सेना पदक प्रदान किया गया था।
सीकर के करगिल शहीदों में श्रवणसिंह शेखावत, सिपाही श्योदान राम बिजारनिया हरिपुरा, लांस नायक दयाचंद जाखड़, रहनावा, सिपाही विनोद कुमार नागा रामपुरा, सिपाही बनवारी लाल बगरिया, सिगडोला छोटा, सिपाही गणपत सिंह ढाका, सिहोत छोटी सहित अन्य शहीद थे।
झुंझुनूं जिले के धनूरी गांव से करीब 200 सैनिक वर्तमान में सेना में कार्यरत हैं और 400 से अधिक सैनिक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस गांव के 16 जवान शहीद हो चुके हैं। वहीं झुंझुनूं जिले के ही भिर्र गांव में 900 घर हैं। यह गांव देश को अब तक करीब 2250 फौजी दे चुका है। शेखावाटी में ऐसे अनगिनत गांव हैं, जहां एक ही परिवार की चार से पांच पीढ़ियां लगातार सेना में जा रही है।
Published on:
27 Jul 2025 01:00 pm
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