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जबलपुर। मान्यता है कि यहां देवी के चरणों में नारियल रखने से देवी मनोकामना पूरी करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर नारियल स्वत: नीचे गिर जाता है। करीब 1500 साल पुरानी देवी की यह प्रतिमा शहर की सबसे पुरानी देवी प्रतिमा है। इस मंदिर में तांत्रिक लोग साधना किया करते थे। ये स्थान जबलपुर शहर के चारखंभा क्षेत्र में स्थित है और संस्कारधानी के शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लोग इसे बूढ़ी खेरमाई के नाम से जानते हैं।
मंदिर की खासियत यहां भक्तों द्वारा मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाए जाने वाले बाने हैं। मंदिर में हर साल इनका भंडार लग जाता है। जवारा विसर्जन जुलूस में देवीभक्त सैकड़ों की संख्या में बड़े-बड़े बाने छेद कर चलते हैं। सबसे बड़े बाने को 11 भक्त एक साथ धारण करते हैं। यह दृश्य रोंगटे खड़ कर देता है। नवरात्र में देवी की पूजा करने वाला पंडा ब्राह्मण नहीं होता।
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यहां स्थापित पद्मावती देवी गोंडवाना साम्राज्य के शासकों व प्रजा की सबसे अधिक पूज्य देवी मानी जाती हैं। देवी को खुश करने के लिए भक्तजन बाना (त्रिशूल) धारण करने की मनौती करते हैं और पूरा होने पर जवारा जुलूस के साथ अपने शरीर में इन्हें छेद कर जुलूस के साथ चलते हैं।
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सैंड स्टोन की है प्रतिमा
इस सिद्धपीठ का निर्माण गोंड राजाओं ने कराया था। पद्मावती देवी की मूल प्रतिमा सैंड स्टोन से निर्मित है। इसका रूप भी विकराल है। इसलिए इसके सामने देवी की सौम्य मुद्रा वाली नयी प्रतिमा स्थापित की गई है। लगातार जल ढारने से इस प्रतिमा के नष्ट होने की आशंका के मद्देनजर इसे पीछे कर दिया गया है।
Published on:
15 Sept 2017 08:51 am
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