
साल में एकबार अजमेर उर्स के मौके पर ही निकलती है ट्रेजरी से
सांवेर. गरीब नवाज ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का सालाना उर्स मुबारक तो अजमेर शरीफ में होता है मगर उस उर्स की एक रवायत सांवेर भी होलकर स्टेट के जमाने से चली आ रही है कि अजमेर उर्स के तहत छठी शरीफ के मौके पर सांवेर में भी यहां के माणक चौक में मौजूद मजार पर चादर पेश की जाती है। जो चादर पेश की जाती है वह कई दशक पुरानी है और एक दिन के लिए मजार पर पेश करने के बाद फिर से अगले साल के लिए सहेज कर न केवल बतौर अमानत रख ली जाती है बल्कि ट्रेजरी में जमा कारवाई जाती है।
सांवेर के माणक चौक में जो दरगाह है उन पर अजमेर उर्स के वक्त छठी शरीफ के मौके पर एक खास चादर पेश की जाती है। इस चादर की खासियत है, यह सालभर सरकारी इंतजाम में ट्रेजरी में महफूज रखी जाती है और अजमेर के सालाना उर्स मुबारक में छठी शरीफ वाले दिन ट्रेजरी से निकालकर ले जाया जाता है और अगले दिन दरगाह से फिर से बाअदब समेटकर ट्रेजरी में जमा करवा दिया जाता है। यह चादर कितनी पुरानी है यह सिलसिला कब से चल रहा है इसका पता सांवेर में मुस्लिम समुदाय की नई पीढ़ी तो ठीक उम्रदराज लोगों को भी ठीक से नहीं है। शहर काजी मोहम्मद सलामुद्दीन कादरी इतना बताते हैं कि अजमेर वाले ख्वाजा का इस साल 811वां उर्स है। सांवेर में माणक चौक वाली मजार पर यह चादर पेश करने का सिलसिला बुजुर्ग लोग होलकरों के जमाने या उससे भी पहले से शुरू होना बताते हैं। ट्रेजरी में जो हालिया चादर रखी जाती है वह कितनी पुरानी होगी इसका भी कोई अंदाजा नहीं है।
अजमेर का सांवेर से क्या ताल्लुक
अजमेर शरीफ के उर्स मुबारक के मौके पर ही सांवेर में मौजूद दरगाह पर ये ट्रेजरी वाली चादर ही क्यों पेश की जाती है। यह बात यहां के हिन्दुओं को तो ठीक आम मुस्लिमजनों को भी पता नहीं होगा। काजी सलामुद्दीन बताते हैं कि माणक चौक वाली दरगाह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का चिल्ला या यूं कहें कि अक्स है इसलिए यहां भी उसी एहतराम से चादर शरीफ पेश की जाती है, जिस तरह अजमेर जाकर करते हैं। इस साल भी सोमवार को ट्रेजरी से चादर लाई गई और सोमवार की शाम को ही जुलूस के साथ मजार शरीफ पर पेश की गई। अजमेर उर्स में छठी शरीफ के मौके पर सांवेर में माणक चौक में ही नहीं बल्कि यहीं के हजरत लालशाहवली की मजार पर भी स्थानीय मुस्लिम समुदाय की ओर से चादर पेश की जाती है और लंगर ए आम तकसीम होता है। इस साल भी सोमवार की शाम को लालशाहवली की मजार पर चादर पेश करने के बाद लंगर-आम मुकम्मल हुआ।
चादर देने लेने की प्रक्रिया
हर साल अजमेर के सालाना उर्स की छठी शरीफ के दो दिन पहले सरकार की ओर से तहसीलदार द्वारा स्थनीय मुस्लिम कमेटी को तयशुदा दिन तहसील कार्यालय से चादर ले जाने की इतल्ला दी जाती है। कमेटी की ओर से कुछ लोग आते हैं और तहसीलदार के हस्ते ये चादर सरकारी अमानत के तौर पर ले जाते हैं।् चादर जुलूस के साथ दरगाह पर पेश करने के अगले दिन फिर से सहेज ली जाती है और उसे जैसे लेकर आए वैसे ही ले जाकर तहसीलदार के सुपूर्द कर दिया जाता है।
Published on:
01 Feb 2023 01:13 am
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