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सावन में प्रकृति का सृजन, संवरते रिश्ते… फूटते प्रेमांकुर

श्रावण माह प्रकृति के सौंदर्य के साथ-साथ मानसिक सौंदर्य का भी कारक है। यही सौंदर्य रिश्तों की मधुरता और सुंदरता का भी प्राण माना जाता है। सावन में प्रकृति का सृजन होता है।

जयपुरAug 05, 2024 / 08:41 am

sangita chaturvedi

श्रावण माह प्रकृति के सौंदर्य के साथ-साथ मानसिक सौंदर्य का भी कारक है। यही सौंदर्य रिश्तों की मधुरता और सुंदरता का भी प्राण माना जाता है। सावन में प्रकृति का सृजन होता है।

श्रावण माह प्रकृति के सौंदर्य के साथ-साथ मानसिक सौंदर्य का भी कारक है। यही सौंदर्य रिश्तों की मधुरता और सुंदरता का भी प्राण माना जाता है। सावन में प्रकृति का सृजन होता है।

श्रावण माह प्रकृति के सौंदर्य के साथ-साथ मानसिक सौंदर्य का भी कारक है। यही सौंदर्य रिश्तों की मधुरता और सुंदरता का भी प्राण माना जाता है। सावन में प्रकृति का सृजन होता है।

जीवन की प्रत्याशा को बढ़ाता
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि का आरंभ जब हुआ, तब सृष्टि पर जीवन की संकल्पना भी तय की गई थी। चैत्र, वैशाख, आषाढ़, श्रावण यह चार माह प्रथम प्रधान माने गए हैं। उनमें श्रावण माह विशेष इसलिए माना जाता है कि यह माह पृथ्वी पर जीवन और आशाओं का सोपान तय करता है। वर्षा से संपूर्ण पृथ्वी का आभामंडल बदल जाता है। मानो प्रकृति ने शृंगार किया है। यही शृंगार मन और बुद्धि को आत्मसात करते हुए जीवन की प्रत्याशा को बढ़ाता है।
प्रेम के प्रति समर्पण का भाव दर्शाता
प्रकृति अपने अंदर बहुत कुछ समेटे हुए है। मानव के मन को किस तरह से प्रसन्न करना है। प्रकृति उस प्रसन्नता में क्या सहयोग कर सकती है, इसका भी एक चक्र निरंतर प्रवाहमान होता रहता है। जब प्रकृति में हरियाली और मंद वायु का प्रभाव होता है, तो सहज आकर्षण की प्राप्ति और अनुभूतियां होने लगती हैं। मन की प्रसन्नता प्रेम के नए आकर्षण का कलेवर तय करती है। हमारे व्यवहार और स्वभाव में भी परिवर्तन होने लगता है। यही प्रेम मन व बुद्धि के संबंधों को स्पष्ट करते हुए आगे बढ़ाता है।
दांपत्य जीवन का सुख
श्रावण माह शिव और पार्वती की उपासना का महीना तो है ही साथ ही दांपत्य जीवन में सुख, शांति व समृद्धि के साथ-साथ अनुनय-विनय एवं रिश्तों को संभालने वाला भी है। अपने सहयोग स्वरूप में अर्धांगिनी का मनोभाव समझना तथा क्रिया-प्रतिक्रिया के स्वरूप सहयोग प्रदान करना भी भाव जनित प्रेम का उदाहरण है। भगवान शिव-माता शक्ति के अलग-अलग रूप में इसको समझा जा सकता है। सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि बिना पति-पत्नी के जीवन का कोई सार तत्व नहीं है। एक-दूसरे के समर्पण भाव-भंगिमा, अनुभूतियां और जीवन के प्रति एक निरंतर बिना अवरोध की यात्रा को आगे बढ़ाना ही इस रिश्ते का स्तंभ है।

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