
नीलगिरि. जिले के गुडलूर के लोग इन दिनों लेमनग्रास की खेती कर तरक्की की इबारत लिखने में लगे हैं। सीएसआर फंडिंग के तहत प्राप्त योगदान से तमिलनाडु वन विभाग के प्रयास और किसानों की मेहनत की बदौलत गुडलूर के पास नादुगनी में जीनपूल पार्क में लेमन ग्रास तेल निकालने और डिस्टिलेशन इकाई स्थापित कर रहा है। उम्मीद है यह यूनिट दो महीने में काम करना शुरू कर देगी। इसका प्रबंधन पूरी तरह से आदिवासी लोग करेंगे, जिन्हें गुडलूर वन प्रभाग में लेमन ग्रास (सिंबोपोगोन) की कटाई करने की अनुमति होगी, जहां यह बहुतायत में उगता है। लेमन ग्रास तेल का इस्तेमाल एयर फ्रेशनर और स्किन केयर उत्पादों में किया जाता है। इसके मुख्य रासायनिक घटक सिट्रोनेला, गेरानियोल और सिट्रोनेलोल एंटीसेप्टिक हैं और इन्हें घरेलू कीटाणुनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
लेमनग्रास कैसे किया जाता है तैयार
लेमनग्रास एक तरह की मेडिसिन है, जो कई प्रकार से उगाई जाती है। लेमन ग्रास की मांग बाजार में बहुत अधिक है। इससे सुगंधित तेल, दवाइयां और इत्र बनाए जाते हैं लेकिन, लेमन ग्रास से तेल निकालना किसानों के लिए बहुत मुश्किल काम होता है, क्योंकि तेल निकालने के लिए प्लांट लगाने में बहुत अधिक खर्च आता है। इस तेल का इस्तेमाल मच्छर भगाने वाले उत्पाद बनाने में भी होता है। वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि यूनिट में उत्पादित एक लीटर लेमन ग्रास ऑयल की कीमत 1,000 से 1,500 रुपए के बीच होने की संभावना है।
कोझीकुझी के आदिवासी लोग होंगे शामिल
इस इकाई की परिकल्पना गुडलूर वन प्रभाग के पूर्व डीएफओ कोम्मू ओमकारम ने की थी और उनके उत्तराधिकारी वेंकटेश प्रभु ने इसे आगे बढ़ाया। बेंगलूरु स्थित आनंद तीर्थ एरोमेटिक ऑयल्स कंपनी ने आसवन इकाई की स्थापना के लिए 15 लाख रुपए का दान दिया है। अधिकारियों ने बताया हम कोझीकुझी के आदिवासी लोगों को शामिल करेंगे। इकाई के माध्यम से उत्पन्न राजस्व को इको डवलपमेंट कमेटी के तहत निवेश किया जाएगा और आदिवासी लोगों के साथ साझा किया जाएगा। यह एक जीत की स्थिति है क्योंकि स्थानीय लोगों को राजस्व सृजन का अवसर मिलेगा और क्षेत्र की पारिस्थितिकी की रक्षा होगी।
कंपनी उपकरण लगाने के अंतिम चरण में
गुडलूर वन प्रभाग के अंतर्गत 14,500 हेक्टेयर में से 2,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में लेमन ग्रास उगता है। यह पहल तमिलनाडु वन विभाग के लिए दो तरह से मददगार होगी क्योंकि जंगल से लेमन ग्रास को हटाने से जंगली जानवरों की मुक्त आवाजाही में लाभ होगा और आदिवासी लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। नादुगनी के वन रेंज अधिकारी वीरमणि ने कहा, कंपनी उपकरण लगाने के अंतिम चरण में है। इसके बाद यहां काम करने वाले आदिवासी लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। हाल ही जीनपूल इको पार्क ने 35 आदिवासी लोगों और श्रीलंकाई प्रवासियों को उनकी कार्य भूमिका के आधार पर 9,000-12,500 रुपए के बीच वेतन पर रोजगार दिया।
Published on:
23 Aug 2024 03:47 pm
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