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समलैंगिक संबंध को लेकर क्या कहते हैं हमारे ग्रंथ, शास्त्रों में भी हैं कई कथाएं

समलैंगिक संबंध को लेकर क्या कहते हैं हमारे ग्रंथ, शास्त्रों में भी हैं कई कथाएं

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Tanvi Sharma

Sep 08, 2018

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समलैंगिक संबंध को लेकर क्या कहते हैं हमारे ग्रंथ, शास्त्रों में भी हैं कई कथाएं

समलैंगिक संबंध को अपराध मानने वाली धारा 377 को 6 सितंबर 2018 को खत्म कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार अब व्यस्क व परिपक्व लोगों द्वारा अपनी इच्छा से बनाया गया समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं माना जाएगा। यह निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में बनी खंडपीठ द्वारा लिया गया है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की यह सब सिर्फ कलयुग ही नहीं बल्कि इससे पहले भी हुआ करता था। समलैंगिक संबंध का उल्लेख हमारे ग्रंथों, पुराणों व शास्त्रों में साफ तौर पर किया गया है। हमारे शास्त्रों में कई ऐसी कथाएं हैं जिनमें इन सभी बातों का उल्लेख है। देखा जाए तो कलयुग से पहले भी समाज काफी परिपक्व था उनके अनुसार भी लैंगिक वर्जनाओं को गलत नहीं समझा जाता था। आइए इनसे जुड़ी कुछ कथाओं के बारे में जानते हैं जो की हमारे शास्त्रों में मिलती हैं...

पौराणिक कथाओं में अप्राकृतिक संबंधों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं और कथाओं में इन चीज़ों को अपराध की दृष्टी से नहीं बताया गया है। आपको बता दें की हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है की सृष्टी में सिर्फ ब्रह्म ही पुरुष हैं इनके अलावा सृष्टि में दिखने वाले जीव-जन्तु प्रकृति स्वरुप हैं यानी की स्त्री हैं। वहीं गरुड़ पुराण के अनुसार हर व्यक्ति मृत्यु होने के बाद पित्र हो जाता है और पित्र यानी पुरुष रुप होता है। चाहें वो स्त्री हों या पुरुष सभी पितर हो जाते हैं।

क्या आप जानते हैं बुध ग्रह का जन्म कैसे हुआ था

19वीं शताब्दी में कर्नाटक के प्रसिद्ध म्यूजिक कंपोजर मुत्तुस्वामी दीक्षितर ने अपने ग्रंथ नवग्रह कीर्ति में बुध ग्रह को नपुंसक ग्रह बताया है। लेकिन पुराणों के अनुसार बताया गया है की एक दिन बृहस्‍पति की इच्‍छा हुई कि वे स्‍त्री बनें। वे ब्रह्मा के पास पहुंचे और उन्‍हें अपनी इच्‍छा बताई। सर्वज्ञाता ब्रह्मा ने उन्‍हें मना किया। ब्रह्मा ने कहा कि तुम समस्‍या में पड़ जाओगे लेकिन बृह‍स्‍पति ने जिद पकड़ ली तो ब्रह्मा ने उन्‍हें स्‍त्री बना दिया।

रूपमती स्‍त्री बने घूम रहे गुरु पर चंद्रमा की नजर पड़ी और चंद्रमा ने गुरु का बलात्‍कार कर दिया। गुरु हैरान कि अब क्‍या किया जाए। वे ब्रह्मा के पास गए तो उन्‍होंने कहा कि अब तो तुम्‍हे नौ महीने तक स्‍त्री के ही रूप में रहना पड़ेगा। गुरु दुखी हो गए। जैसे-तैसे नौ महीने बीते और बुध पैदा हुए। बुध के पैदा होते ही गुरु ने स्‍त्री का रूप त्‍यागा और फिर से पुरुष बन गए।

भगवान विष्णु और शिव के मिलन के उत्पन्न हुए यह देवता

दक्षिण भारत के देवता अयप्पा के जन्म की कथा भी अद्भुत है। महिषी नाम की एक राक्षसी को भगवान विष्णु का वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु तभी हो सकती है जब भगवान शिव और विष्णु की संतान हो। इस असंभव वरदान को पाकर वह अत्याचारी हो गई। सागर मंथन के बाद भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धारण किया तो भगवान शिव मोहिनी पर मोहित हो गए और इससे अयप्पा का जन्म हुआ। उसके बाद अयप्पा ने महिषी नाम की राक्षसी का वध कर दिया।

ऐसे दो पुरुषों के मिलन से पैदा हुए थे यह राजा

दरअसल इला अपने पुरुष रूप में इल नाम के राजा थे। वह भूलवश उस वन में चले जाते हैं, जिसे माता पार्वती ने शाप दिया था कि जो भी पुरुष वन में आएगा, वह स्त्री हो जाएगा। जब राजा इल से इला बन गए तब बुध व उन पर मोहित हो गए। इल और बुध के संबंध से राजा पुरुरवा का जन्म हुआ यहीं से चंद्रवंश की शुरुआत हुई। इल से इला बनने की कहानी एक उदाहरण मात्र है। धर्मग्रंथों में ऐसे कितने ही घटनाक्रमों का जिक्र किया गया है, जहां स्त्री से पुरुष और पुरुष से स्त्री बनने का प्रसंग आया है।

नारदजी को भी लेना पड़ा था स्त्री रुप

देवीभाग्वत् पुराण के छठे स्कंध में एक कथा में बताया गया है की देवऋषि नारद को खुद पर बहुत अभिमान हो चुका था इसलिए उनका अभिमान खत्म करने के लिए श्री विष्णु ने उन्हें कहा की वे जाकर कन्नौज के सरोवर में डुबकी लगाएं। नारद जी ने जब डुबकी लगाई तो उनके बाहर आने पर वे स्त्री बन चुके थे। लेकिन जब वे बाहर निकले और स्त्री रुप में थे तो वे सब कुछ भूल चुके थे के वे वास्तविक स्वरूप में क्या थे। उसके बाद तालध्वज नाम के राजा उनको देखकर मोहित हो गए और उनसे विवाह कर लिया। नारदजी कई बच्चों की माता बनते हैं और एक युद्ध में इनके सभी बच्चे मारे जाते हैं। इसके बाद उन्हें बहुत दुख होता है और वे रोने लगते हैं इसे देख भगवान विष्णु उन्हें फिर अपने स्वरुप में ले आते हैं और उन्हें माया का ज्ञान समझाते हुए कहते हैं इसे ही माया कहते हैं।