
CG News: भक्ति जब जुनून बन जाए तो जीवन को नई पहचान मिलती है। ऐसी ही पहचान बनाई थी दिग्विजय कॉलेज रोड निवासी रवि खरे ने। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में पदस्थ रहे रवि ने 200१ से गणेश प्रतिमाओं को संजोना शुरू किया और 1७ वर्षों में करीब ढाई हजार अनोखी मूर्तियों का संग्रह कर लिया। इनमें 2 सेंटीमीटर की नन्हीं प्रतिमा से लेकर तीन फीट की विशाल मूर्ति शामिल हैं। रवि खरे अब इस दुनिया में नहीं हैं। गणेश पक्ष में ही ३१ अगस्त 2017 में निधन हो गया पर पत्नी साधना खरे ने पति की याद में मूर्तियों को सहेजकर रखा है।
रवि ने अपने घर के एक कमरे को संग्रहालय बना दिया है। खास बात यह कि उनके द्वारा संग्रह की गई कोई भी प्रतिमा एक-दूसरे से मेल नहीं खाती। मिट्टी, सुपारी, नारियल, जूट, टेराकोटा, मेटल, लकड़ी, धान, शिप, गन मेटल, बंबू, मौली धागा, रुद्राक्ष और तमाम परंपरागत शिल्पकला से बनी मूर्तियों में देश के अलग-अलग राज्यों की झलक दिखाई देती है। अ हीरे को छोड़ लगभग हर धातु की प्रतिमाएं इस अद्भुत संग्रह में शामिल हैं, जिसमें सोना-चांदी और नीलम जैसे अनमोल धातु की मूर्तियां भी शामिल हैं। इन मूर्तियों की कीमत ढाई से तीन लाख रुपए होगी।
रवि के सहकर्मी और मित्र आमोद श्रीवास्तव बताते हैं कि यह संयोग भी उनकी गहरी भक्ति का प्रमाण है। मित्रों और परिजनों ने भी उनके संग्रह को बढ़ाने में योगदान दिया, कई प्रतिमाएं उन्हें भेंट में मिली थीं। 31 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि पर यह स्मरण और भी भावुक कर देता है कि गणेश भक्ति ही उनकी जीवन यात्रा का आरंभ और अंत दोनों बनी।
भक्ति और संग्रहण की इस अनोखी मिसाल से यह संदेश मिलता है कि बप्पा की आराधना केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और कला को संरक्षित करने का माध्यम भी बन सकती है। यह पहल प्रेरणादायक है। इससे लोगों को सीख लेनी चाहिए।
आज यह धरोहर उनकी पत्नी साधना खरे सहेज रही हैं। वे बताती हैं कि- ‘हमारी संतान नहीं है। ऐसे में उनकी इच्छा है कि प्रशासन उनके पति के नाम पर एक संग्रहालय बनाए, ताकि लोग इस अद्वितीय गणेश संग्रह का अवलोकन कर सकें। उन्होंने कहा कि वे पूरी श्रद्धा से यह संग्रह समाज को समर्पित करना चाहती हैं।
Updated on:
01 Sept 2025 06:22 pm
Published on:
01 Sept 2025 06:21 pm
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