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jaipur heritage
राजस्थान में राजा और राजनीति से जुड़ी अनेकों कहानियां-किस्से हैं। यहां कुछ राजाओं का राज-काज के साथ ही प्रजा से ऐसा तालमेल रहा जो यादगार बन गया। वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र सिंह शेखावत राजस्थानी संस्कृति व राजनीति के इतिहास पर अखबार में आलेख देते रहे हैं। इस बार जानिए, कि सवाई रामसिंह के परलोक सिधारने पर हजारों लोगों ने मुंडन करवाया...
ढूंढाड़ राज्य के महाराजा राम सिंह द्वितीय के परलोक सिधारने पर उनके शोक में सभी जातियों के हजारों लोगों ने मुंडन करवाया था। मुंडन का सिलसिला बारहवें दिन तक चलता रहा। अचानक हुई बीमारी के बाद 18 सितम्बर 1880 की रात में सवाई रामसिंह का परलोक गमन हुआ। उनके स्वर्गवास की सूचना दूसरे दिन सुबह दी गई। शोक में सिटी पैलेस के खासा रसोवड़े और नक्कार खाने के नौबत बाजे बंद हो गए।
रामप्रकाश नाटक घर की पारसी कम्पनी के सांस्कृतिक भी बंद कर दिए गए। सरकारी महकमों में तीन दिन की छुट्टी और कछवाहा वंश के पचरंगा ध्वज को बारह दिन तक झुकाने की घोषणा की गई। एक साल तक रियासत में शोक रखने का फरमान भी जारी किया गया। दूसरे दिन दोपहर में हल्की वर्षा के चलते सिटी पैलेस से महाराजा की शवयात्रा बाजारों से होते हुए गेटेार छतरियों पर पंहुची।
अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए हजारों लोगों की उमड़ पड़ी। बरामदों व हवेलियों की छतों से भी हजारों नर नारियों ने अंतिम दर्शन किए। मोक्षधाम में रियासत के राजपुरोहितजी ने महाराजा को मुखाग्रि दी। जयपुर फाऊण्डेशन अध्यक्ष सियाशरण लश्करी के पास मौजूद रिकार्ड के मुताबिक गेटोर छतरियों में मुंडन करने के लिए 352 नाईयों को बिठाया गया। उस दिन करीब साढ़े 13 हजार नागरिकों ने मुंडन करवाया। मुंडन का काम बारहवें तक चलता रहा।
सितम्बर 1880 के पहले सप्ताह में रामसिंह की तबीयत होने पर डॉ.श्रीनाथ व अंग्रेज सर्जन टी.एच.हैण्डले ने उपचार शुरु किया। इंग्लैण्ड से भी डॉ.वैलंटाइन को बुला लिया गया। हालत बिगड़ती देख डॉॅ. टी.एच. हैण्डले ने 17 सितम्बर को महाराजा की वसीयत लिख उनके हस्ताक्षर करवाए। वसीयत में टोंक रिसाले के सैनिक व ईसरदा ठिकाने के युवक कायम सिंह को महाराजा बनाने का लिखा गया। इस कायम सिंह को सवाई माधोसिंह द्वितीय के नाम से ढूंढाड़ का नरेश बनाया गया।
बारहवें पर राज्य की समस्त प्रजा को भोज कराने आदेश अंग्रेज पॉलिटिकल एजेंट ट्रिविडी ने जारी किया। जाति के हिसाब से अलग अलग बाजारों में हजारों नर नारियों को भोज कराने के लिए पांच दिन पहले ही सैकड़ों हलवाई तैयारी में जुट गए। भोजन के लिए प्रजा को ढोल बजाकर सार्वजनिक सूचना दी गई। बारहवें को प्रात:11 बजे हजारों लोग जीमण के लिए बैठे। इसके एक घंटे बाद नाहरगढ़ से तोप छूटी तब भोजन की परोसगारी शुरु हुई। इस की व्यवस्था को सेठ नथमल ने बखूबी से संभाला।
शाम को सिटी पैलेस में राजा का दरबार लगा जिसमें अतिरिक्त गर्वनर जनरल सर ब्रेडफोर्ड ने कायम सिंह को माधोसिंह द्वितीय के नए नाम से महाराजा बनाने का एलान किया। रामसिंह के परलोक गमन के तुरन्त बाद कायम सिंह को टोंक से जयपुर लाने के लिए जैम्स एलक्जैण्डर के नेतृत्व में सैनिकों को भेजा गया था।
Published on:
11 Dec 2016 07:27 pm
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