Teachers Day 2018 Special: 400 से अधिक बच्चों का जीवन संवार चुकीं हैं अंजिना राजगोपाल ने 1990 में बाल कुटीर नाम से एक अनाथालय की शुरुआत की।
Teachers Day 2018: 400 से अधिक बच्चों का जीवन संवार चुकीं हैं अंजिना राजगोपाल
राहुल चौहान नोएडा। कहते हैं जिनका कोई नहीं होता उनका खुदा होता है। कहा यह भी जाता है कि भगवान खुद हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने मां बनाई। नोएडा में एक ऐसी ही महिला हैं, जो अपनी जिंदगी में एक साथ दो अहम किरदार निभा रही हैं। एक मां का और और दूसरा शिक्षिका का। वह मां भी एक-दो नहीं, पूरे 400 बच्चों की हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं 60 वर्षीय अंजिना राजगोपाल की, जो ऐसे मासूमों को अपनाती हैं, जिन्हें उनके अपने छोड़ चुके होते हैं। करीब 30 साल में वह अब तक 400 ऐसे बच्चोंं का जीवन संवार चुकी हैं। उन्हें इस काबिल बनाया कि आज वे बड़ी कंपनियों में ऊंचे ओहदो पर हैं और अपने परिवार के साथ नए जीवन का आनंद ले रहे हैं।
यह भी पढे़ं-Teachers Day 2018: शिक्षक दिवस पर यह Speech या Essay देकर आप जीत सकते हैं अपने गुरुओं का दिल दरअसल, 5 सितंबर का दिन देशभर में Teachers Day के रूप में मनाया जाता है। इस खास दिन पर हम एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने न केवल सैकड़ों बच्चों को मां का प्यार दिया बल्कि, एक शिक्षिका के तौर पर उनका जीवन भी संवारा है। यहां बात हो रही है नोएडा के सेक्टर-12 में रहने वाली अंजिना राजगोपाल की। जो ‘साईं बाल कुटीर’ अनाथालय की अध्यक्ष हैं। यह ऐसे लोगों का घर है, जिसमें रहने वालों को कभी उनके अपनों ने ही ठुकरा दिया था। वहीं, इस आश्रम में रहने वाले बच्चों में से कुछ ऐसे भी हैं जिनके मां-बाप गुजर गए तो रिश्तेदारों ने जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया। अंजना अभी तक 400 से अधिक बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं और वर्तमान में करीब 60 बच्चों को अपने साथ रख उनका जीवन रोशन करने में जुटी हैं। यही नहीं, इन्हीं बच्चों के जीवन को सुनहरा बनाने के लिए अंजना ने शादी भी नहीं की। उनके पास रहने वाले सभी बच्चे उन्हें मां कहकर पुकारते हैं।
केरल के कोझिकोड में जन्मीं अंजिना राजगोपाल के पिता पीके राजगोपाल एक खदान कंपनी में मैनेजर थे। चार भाई और तीन बहनों में तीसरे नंबर की अंजिना केवल 10वीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकीं। पहले मां और फिर भाई की मौत ने उन्हें बुरी तरह तोड़ कर रखा दिया। इसके बाद वह पिता के साथ दिल्ली आकर मौसी के यहां रहने लगीं। पुराने दिनों को याद कर अंजिना बताती हैं, 1988 की बात है जब बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित प्यारे लाल भवन के पास कुछ युवक एक बच्चे को पीट रहे थे। भीड़ से छुड़ाकर मैं उस बच्चे को अपने साथ घर ले आईं और उसका नाम रजत रखा। यह सबसे पहला बच्चा था, जिसे मैंने अपने किराए के मकान में रखा। इसके बाद मैंने इसकी जानकारी पुलिस को भी दी।
बकौल अंजिना, 1990 में बाल कुटीर नाम से एक अनाथालय की शुरुआत की। इसमें अनाथ बच्चों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। आज यह शहर का प्रचलित अनाथालय है। इसमें रहने वाले बच्चों सहित गांवों में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए जनसहयोग से एक स्कूल खोला। यहां बच्चों को 12वीं तक की शिक्षा दी जाती है। अंजिना बताती हैं कि वह सभी बच्चों को अपने साथ घर में ही रखती हैं। यहां रहने वाले सभी बच्चों को शिक्षा समेत सभी सुविधाएं दी जाती हैं। जो बच्चे खुद सक्षम होकर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं, वह अपने हिसाब से जीवन जीने लगते हैं।
यह भी देखें-यह सरकारी स्कूल किसी प्राइवेट स्कूल से नहीं कम यहां रहे कई बच्चों के अब परिवार भी बस गए हैं और वह दादी और नानी भी बन गईं हैं। आज भी वह बच्चे अपने परिवारों के साथ यहां आते रहते हैं। अंजिना के अनुसार, आज मेरी उपलब्धि, संपत्ति और ताकत मेरे बच्चे हैं। इन सभी की उपलब्धि में ही मेरी उपलब्धि है। आज मैं जो भी हूं इन्हीं की वजह से हूं। अपने सभी बच्चों को जब मैं खुश देखती हूं तो मुझे लगता है कि मेरे पास दुनिया की सारी संपत्ति है।