
Culprits of '307' three leopards biting life imprisonment 13 in one and 7 FIRs in the other
आगे जाना मना है, जू में बारहसिंहा बाड़े के पास लोहे के गेट पर लिखी इस चेतावनी से दो सौ मीटर दूर बनी कोठरी में कैद हैं ‘307’ के गुनहगार तीन खूंखार तेंदुए। जिन्होंने मेरठ, प्रतापगढ़ और मुरादाबाद में 25 लोगों पर जान से मारने की नियत से हमला किया। अलग-अलग वर्षों में घंटों चले मैराथन अभियान के बाद इन्हें हिरासत में लेकर कानपुर लाया गया था। जहां ये लोहे की सलाखों के पीछे पांच बाइ पांच की कोठरी में उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं। लंबे समय से कैद में रहने के बाद भी स्वाभाव में बदलाव नहीं आया है। पहले दिन से अब तक कीपर राम बरन ही उनकी देखभाल करते हैं। उसे देखकर भी सभी बेहद आक्रामक और रौद्र रूप धारण कर लेते हैं।
सम्राट की कहानी
अप्रैल 2016 में करीब 3 साल की उम्र में मेरठ में 13 लोगों पर हमले का गुनहगार तेंदुए को पकड़ने को सेना संग पुलिस के 200 से ज्यादा जवान लगे थे। रेस्क्यू विशेषज्ञ के रूप में कानपुर जू से तत्कालीन पशुचिकित्सक डॉ. आरके सिंह पहुंचे थे। डा.सिंह के मुताबिक वेयर हाउस में पुराने मेज, कुर्सी, कूलर, ड्रम वाले कबाड़ में उसे ढूंढना आसान नहीं था। ट्री गार्ड का कवचनुमा खोल पहनकर कबाड़ हटाने पर कुर्सी के पीछे तेंदुए का मात्र एक रोजेट (खाल पर बने काले धब्बे) दिखा। ट्रेंकुलाइजर का निशाना सटीक लगा लेकिन वह आंखों से ओझल हो गया। हवा में उछले कबाड़ के बीच अचानक वह झपटा। संभल पाते इससे पहले पंजे के वार से बाएं हाथ का अंगूठा कट गया, इसमें आठ टांके लगवाने पड़े। हालांकि दवा ने असर दिखाया और तेंदुआ बेहोश हो गया। 15 अप्रैल 2016 को कानपुर जू आने पर इसका नाम सम्राट रखा गया। पकड़ने में 51 घंटे लगे थे।
प्रताप की दहशत
जनवरी 2018 में कहीं से भटक कर प्रतापगढ़ के बाघराय बाजार में पहुंचे बेहद जोशीले और खूंखार तेंदुए ने अपने खतरनाक पंजों से 13 लोगों की जान लेने की कोशिश की थी। उसकी दहशत का आलम यह था कि पकड़े जाने से पहले बाघराय के लोगों ने पूरी पूरी रात जागकर गुजारी थीं। रेस्क्यू के लिए कानपुर से बुलाए गए डॉ.नासिर ने बताया कि लंबी छलांग लगाने में माहिर तेंदुआ लोगों को घायल करने के बाद रात 8 बजे बाघराय बाजार के एक भूसे भरे कमरे में घुस गया था। देर रात करीब एक बजे रेस्क्यू टीम ने उसे काबू करने को लकड़ी के दरवाजे में दो छेद करवा ट्रैंकुलाइजर गन से निशाना साधा। डार्ट लगने से बौखलाया तेंदुआ हमलावर हो गया। बेहोश होने तक वह दरवाजे पर पंजे मारता रहा। दहशत के कारण बेहोशी के बावजूद उसे जाल में बांधकर पिंजरे में डाला गया। 14 नवंबर 2017 को उसे कानपुर जू लाया गया। प्रतापगढ़ से आने के कारण प्रताप नाम पड़ा।
मुराद में दर्ज मुकदमे
वर्ष 2018 में मुरादाबाद के अगवानपुर के जंगल में तेंदुए की बादशाहत कायम थी। इसने इलाके में करीब 7 लोगों पर हमला कर घायल कर दिया था। शिकारियों द्वारा नीलगाय को पकड़ने के लिए लगाए गए जाल में इस खूंखार तेंदुए का पैर उलझ गया था। उसने जाल से निकलने की पुरजोर कोशिश की। इसके चलते उसके पैर और मुंह में चोट लग गई थी। उसे देखने के लिए सैकड़ों की भीड़ जुट गई थी। जिसे डॉ. आर के सिंह के नेतृत्व में 21 जनवरी 2018 को कानपुर जू लाया गया। मुरादाबाद में पकड़े जाने के कारण इसका नाम मुराद रखा गया।
Updated on:
28 Aug 2022 05:40 pm
Published on:
28 Aug 2022 05:38 pm
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