
बीजेपी के हाथ से निकला यह बड़ा वोट बैंक, कैराना-नूरपुर में हार मानी जा रही है तय
सहारनपुर. सहानुभूति रथ पर सवार होकर उपचुनाव जीतने का सपना देख रही भाजपा को गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभ उपचुनाव में भी बड़ा झटका लग सकता है। इस की वजह मानी जा रही है भाजपा के हाथ से जाट वोटों का खिसकना। दरअसल, कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा में सपा से गठबंधन करने के बाद कैराना उपचुनाव में चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी की कड़ी मशक्कत के चलते जाट वोटर भाजपा से दूरी बनाता नजर आया। यानी कैराना लोकसभा चुनावों में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह और उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। अपने पूरे दल-बल के साथ दोनों पिता-पुत्र ने ताबड़तोड़ संपर्क कर जाटों के बीच नए सिरे से भरोसा जगाया और अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल कर ली। इसके उलट अगर बात की जाए भाजपा कि तो क्षेत्र की सियासी हवा के रुख से साफ नजर आया कि भाजपा हाईकमान जाट वोटरों को साधने में ठोस कार्ययोजना नहीं तैयार कर पाया।
जबकि भाजपा सपा-रालोद गठबंधन होने पर भी विपक्षी एकता को देखने के बाद भी खुछ खास स्ट्रैटेजी तैयार नहीं कर पाई। जाट वोटों को साधने के लिए रची गई भगवा व्यूहरचना पर भाजपा ने जरूरत से ज्यादा ही भरोसा किया, जो कामयाब नहीं हुई। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि 2014 और 2017 लोकसभा चुनावों में जाटों के गढ़ में जीत के बाद भाजपा अति आत्मविश्वास में थी। यहीं वजह है कि चौधरी अजित सिंह की काट के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह, सांसद संजीव बालियान , विधायक तेजेंद्र निर्वाल और सहेंद्र रमाला को मैदान में उतारा। प्रदेश मंत्री एवं संगठन में मजबूत माने जाने वाले प्रदेश मंत्री देवेंद्र सिंह को लोकसभा का प्रभारी बनाया गया। इसका नतीजा ये हुआ कि केंद्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने भी महज चुनावी रस्म निभाई और दिल्ली लौट गए। गौरतलब है कि राजनीति में आने से पहले भी सत्यपाल सिंह का बहैसियत आइपीएस अधिकारी के तौर पर जाट समाज में काफी सम्मान था। जाट वोटरों में उनके संपर्क से पार्टी को मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सकता था, लेकिन भाजपा इसका लाभ नहीं ले पाई। इससे अलग मुजफ्फरनगर दंगे के बाद फायर ब्रांड नेता के तौर पर उभरे संजीव बालियान बिरादरी के युवा वर्ग में आइकन बनकर उभरे थे, लेकिन भाजपा उनका भी सही इस्तेमाल नहीं कर पाई।
गौरतलब है कि कैराना समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में जाट मतदाता सियासत के केंद्र में रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर ने तमाम जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर दिया था। इन सबके बावजूद कोई ठोस कार्ययोजना न होने के कारण ये दोनों नेता जाटों को लामबंद नहीं कर पाए। वहीं इस चुनाव प्रचार के दौरान एक खास बात ये रही कि जब सीएम योगी ने मंच से गन्ना मंत्री सुरेश राणा की तारीफ कर उनका कद बढ़ाया, लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान के दौरान विरोध की आवाजें सुनाई दीं। अगर यही हालात आगे भी रहे तो भाजपा को इस इलाका में दोबारा अपना परचम लहराना मुश्किल हो सकता है।
Published on:
29 May 2018 12:22 pm
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