
आपस में ऐसे ही लड़ती रही भाजपा तो आसान नहीं होगा 2019 की जीत, जिला पंचायत अध्यक्ष को किया अपमानित
नोएडा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा एवं एक विधानसभा सीट के उपचुनाव की मतगणना गुरुवार सुबह 8 बजे से शुरू हो गई है। पहले राउंड में ही गठबंधन प्रत्याशी तबस्सुम हसन व नईमुल हसन ने बढ़त बना ली है, जो कैराना लोकसभा में चाथे राउंड और नूरपुर विधानसभा में दसवें राउंड के बाद भी जारी है। इन शुरूआती रुझानों से गठबंधन खेमे में खुशी की लहर है।
अब तक आए नतीजों से ऐसा लग रहा है कि रालोद का छिटका हुआ वोट बैंक जाट और मुस्लिम उससे फिर जुड़ गया है। जिस वजह से भाजपा प्रत्याशी को पहले राउंड से ही पिछड़ना पड़ा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जाट वोट बैंक भाजपा की ओर डायवर्ट हो गया था, जिससे स्वयं रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह एवं उनके बेटे रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को भी बागपत और मथुरा में हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन उपचुनाव में आ रहे रुझान से फिर एक बार जाट और मुस्लिम वोट बैंक रालोद से जुड़ता हुआ नजर आ रहा है। इस वोट बैंक को जोड़ने के लिए रालोद अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह व उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने गांव-गांव जाकर वोट मांगे थे, जिसका उन्हें लाभ मिलता नजर आ रहा है।
हालांकि जाट वोटों को साधने के लिए रची गई भगवा व्यूह रचना पर भाजपा ने जरूरत से ज्यादा ही भरोसा किया, जो कामयाब होती नहीं दिख रही। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि 2014 और 2017 लोकसभा चुनावों में जाटों के गढ़ में जीत के बाद भाजपा अति आत्मविश्वास में थी। यही वजह है कि चौधरी अजित सिंह की काट के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह, सांसद संजीव बालियान , विधायक तेजेंद्र निर्वाल और सहेंद्र रमाला को मैदान में उतारा था। प्रदेश मंत्री एवं संगठन में मजबूत पकड़ की पहचान रखने वाले प्रदेश मंत्री देवेंद्र सिंह को लोकसभा का प्रभारी बनाया गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने भी महज चुनावी रस्म निभाई और दिल्ली लौट गए।
गौरतलब है कि राजनीति में आने से पहले भी सत्यपाल सिंह का आईपीएस अधिकारी के तौर पर जाट समाज में काफी सम्मान था। जाट वोटरों में उनके संपर्क से पार्टी को मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सकता था, लेकिन भाजपा इसका लाभ नहीं ले पाई। इससे अलग मुजफ्फरनगर दंगे के बाद फायर ब्रांड नेता के तौर पर उभरे संजीव बालियान बिरादरी के युवा वर्ग में आइकन बनकर उभरे थे, लेकिन भाजपा उनका भी सही इस्तेमाल नहीं कर पाई।
गौरतलब है कि कैराना समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में जाट मतदाता सियासत के केंद्र में रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर ने तमाम जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर दिया था। इन सबके बावजूद कोई ठोस कार्ययोजना न होने के कारण ये दोनों नेता जाटों को लामबंद नहीं कर पाए। वहीं इस चुनाव प्रचार के दौरान एक खास बात ये रही कि जब सीएम योगी ने मंच से गन्ना मंत्री सुरेश राणा की तारीफ कर उनका कद बढ़ाया, लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र में भी मतदान के दौरान विरोध की आवाजें सुनाई दीं। अगर यही हालात आगे भी रहे तो भाजपा को इस इलाका में दोबारा अपना परचम लहराना मुश्किल हो सकता है।
Updated on:
31 May 2018 01:57 pm
Published on:
31 May 2018 11:07 am
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