
ईद से पहले मुसलमान करते हैं ऐसा काम, जिसे देखकर दुनिया के बड़े-बड़े दानी भी रह जाते हैं हैरान
नोएडा. रमजान इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना है। इस पाक महीने में दुनियाभर के मुसलमान पूरे महीने का रोजा रखने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाते हैं। लेकिन ये त्योहार आम त्योहारों से बिल्कुल ही अलग है। इस त्योहार में मुसलमान न सिर्फ अपनी खुशियों का इंतजाम करते हैं, बल्कि गरीबों की खुशी का भी पूरा एहतमाम करते हैं। यानी ईद-उल-फितर न सिर्फ एक त्योर हैं, बल्कि समाजिक समरसता का यंत्र भी है। दरअसल, रमजान के महीने में अमीर मुसलमान अपनी जरूरत से ज्यादा धन का 2.5 प्रतिशत जकात के तौर पर गरीबों में बांटते हैं। वहीं, ईद की नमाज से पहले हर मुसलमान के नाम से पौने दो किलो गेंहू या उसके मूल्य के बराबर रुपए दान देना वाजिब है। लिहाजा, अमीरों की ओर से बंटने वाले जकात और सदके की वजह से गरीबों के घर में भी अच्छी-खासी रकम पहुंच जाती है। यही वजह है कि ईद के दिन अमीरों के साथ ही गरीबों के घर में भी खुशी का माहौल होता है।
इस्लाम धर्म अपने सभी मानने वालों को हुक्म देता है कि ईद-उल-फितर की नमाज पढऩे से पहले ही अपने घर के सभी लोगों की ओर से सदका-ए-फितर अदा किया जाए, ताकि गरीब भी अपनी जरूरतों को पूरा करके हमारे साथ ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। क्योंकि, असली खुशी दूसरों की गमगीन जिंदगियों को खुशी से मालामाल करने का नाम है। इससे मोहब्बत, भाईचारा और मेल-जोल के जज्बात पैदा होते हैं। यानी ईद गमगीन जिंदगियों को माला-माल करने और आपसी भाईचारे को मजबूत करने का भी पाठ पढ़ाता है। मुसलमानों के इस अमल और भाईचारे के साथ ही मानव सेवा के इस महान काम को देखकर दुनिया के बड़े-बड़े मानवतावादी भी हैरान रह जाते हैं।
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इसिलए दिया जाता है सदका-ए-फितर
हज़रात अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानो में से हर गुलाम और आज़ाद मर्द-औरत और छोटे-बड़े पर सदक़ा-ए-फ़ित्र लाज़िम किया है। सदक़ा-ए-फ़ितर नमाज़े ईद के लिए जाने से पहले अदा कर दिया जाए। सुनन अबू दावूद की एक हदीस के मुताबिक हज़रात अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायात है कि कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने रोज़ों को फ़िज़ूल और लायानी व फहश बातों के असरात से पाक साफ़ करने के लिए और गरीबों व मोहताजों के खाने का बंदोबस्त करने के लिए सदक़ा-ए-फ़ितर वाजिब क़रार दिया है। इस हदीस (मोहम्मद (स) की शिक्षा) पर गौर किया जाए तो इसके दो बड़े फायदे बताए गए हैं। पहला ये कि मुसलमानों के जशन और खुशी के इस दिन में सदक़ा-ए-फ़ितर के ज़रिए गरीबों की भी खुशी का इंतेज़ाम हो जाएगा और दुसरे यह कि ज़ुबान की बे-अहतयातियों और बे-बाकियो से रोज़े पर जो बुरे असरात पड़ते होंगे, यह सदक़ा ए फितर उनका भी कफ्फारा (बदला) और फ़िदयाह हो जाएगा।
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अपनी खुशियों में दूसरों को भी करें शरीक
नोएडा सेक्टर 168 स्थित छपरौली की नूर मस्जिद के इमाम व खतीब जियाउद्दीन हुसैनी ने बताया कि रमजान-उल-मुबारक के रोजों का असल मकसद मुसलमानों में तकवा एवं परहेजगारी को आम करना है। हमारी ईद उस वक्त ही सही मायने में ईद होगी, जब इस रमजान-उल-मुबारक के रोजों के बाद हम पहले से ज्यादा अल्लाह से डरने वाले और नेक कामों में सबसे आगे रहने वाले बन जाएं। ईद-उल-फितर के पाक एवं खुशियों वाले दिन जरूरी है कि हम बेहूदा हरकतों और फिजूलखर्ची से बचें। जब हम ईद की खुशियां मना रहे हों तो कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे समाज और गली-मोहल्ले में कितने ही गरीब या मोहताज लोग हैं। हमें सब को अपनी खुशी में शामिल करना चाहिए। ईद-उल-फितर के इस त्यौहार को अपने रब के साथ नजदीक होने का जरिया बनाएं। ईद की खुशियों में अपने प्यारे वतन में गरीबी, भुखमरी, जुल्म और नाइंसाफी से पीड़ित लोगों के हालात को बदलने की कोशिश करें, ताकि एक सच्चा, खूबसूरत और कल्याणकारी समाज वजूद में आ सके।
Published on:
01 Jun 2019 10:54 am
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