
नोएडा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ ऐसा जिला है, जिसकी किसी भी क्षेत्र में अनदेखी नहीं की जा सकती। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या चिकित्सा का। व्यापार का या फिर राजनीति का। हरेक क्षेत्र में यह जिला अपनी खासी अहमियत बनाए हुए है। आजादी की लड़ाई का बिगुल भी 1857 में मंगल पांडे ने यहीं से फूंका था। क्रांति की यह अलख मेरठ की अलग ही पहचान बनाती है।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस जिले को राजनीतिक परिदृश्य में एक अलग मुकाम दिया है। जी हां, मेरठ ऐसा जिला बन गया है, जिसकी उत्तर प्रदेश की राजनीति में न सिर्फ अलग पहचान बनी है बल्कि, एक रिकॉर्ड भी कायम हुआ है। आइए जानते हैं कैसे -
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वैसे तो राजनीतिक तौर पर मेरठ में बीते डेढ़ दशक में भाजपा का वर्चस्व रहा है। हां, अक्सर बसपा (बहुजन समाज पार्टी) इसे कड़ी टक्कर देती रहती है। शायद यही वजह रही कि गत नवंबर में मेरठ नगर निगम की सीट भाजपा से छिटक गई, जबकि यह सीट हमेशा भाजपा के पास रही। बसपा की सुनीता वर्मा ने भाजपा की कांता कर्दम को बड़े अंतर से हरा दिया। इससे ठीक पहले भाजपा के कद्दावर नेता और यूपी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी विधानसभा चुनाव हार गए थे। यह तब हुआ जब देश और प्रदेश में मोदी और योगी की लहर चल रही थी।
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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सहारनपुर हिंसा (शब्बीरपुर कांड) के बाद भाजपा से जो कुछ दलित वोट बैंक जुड़ा था, वह भी दूर हो गया। इसे भरने के लिए आरएसएस ने यहां राष्ट्रोदय कार्यक्रम आयोजित किया। यह उत्तर प्रदेश में संघ का अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम था। इसके जरिये दलितों और राजपूतों को साथ लाने की पहल भी की गई।
भाजपा ने भी अपनी रणनीति बदलते हुए दलित और राजपूत वोटबैंक को रिझाने की कोशिश शुरू कर दी है। यही वजह रही कि राज्यसभा में इस बार मेरठ से दो सांसद भेजे गए। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह अपने आप में रिकॉर्ड है। इसके अलावा, मेरठ के पास पहले से 4 लोकसभा सांसद है। इस तरह देखें तो इस एक जिले को अब 6 सांसद मिल गए हैं और यह भी उत्तर प्रदेश की सियासत में पहली बार हुआ है।
कौन-कौन गया राज्यसभा -
भाजपा ने कांता कर्दम और विजयपाल तोमर को राज्यसभा भेजा है। दोनों मेरठ के शास्त्रीनगर क्षेत्र में रहते हैं। कांता कर्दम (उम्र करीब 50 वर्ष) भाजपा की वरिष्ठ कार्यकर्ता रही हैं। हालांकि, इससे पहले वे विधायक या सांसद नहीं रहीं। पिछले नगर निगम चुनाव में भाजपा से महापौर पद की उम्मीद्वार थीं, लेकिन बसपा की सुनीता वर्मा से वह हार गईं। पार्टी ने दलित चेहरे को प्रतिनिधित्व देते हुए उन्हें राज्यसभा का उम्मीद्वार बनाया। यही समीकरण विजयपाल तोमर के लिए अपनाया गया। तोमर कद्दावर राजपूत नेता माने जाते हैं। पूर्व में विधायक रह चुके हैं।
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लोकसभा में कौन-कौन है -
मेरठ लोकसभा सीट से राजेंद्र अग्रवाल सांसद हैं। वहीं, सरधना-मुजफ्फरनगर सीट से संजीव बालियान सांसद हैं। सरधना मेरठ का विधानसभा क्षेत्र है। मुजफ्फनगर जिला और सरधना के कुछ हिस्से को मिलाकर यह संसदीय क्षेत्र बनाया गया है। वहीं, मेरठ के सिवालखास क्षेत्र और बागपत जिले को मिलाकर संसदीय सीट है। यहां से केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह सांसद हैं। इसी तरह मेरठ का हस्तिनापुर क्षेत्र और बिजनौर जिले को मिलाकर बनी संसदीय सीट पर कुंवर भारतेंदु सांसद हैं। इस तरह मेरठ के खाते में चार लोकसभा सांसद भी हैं। यह पहली बार है, जब इन चारों सीट पर भाजपा काबिज है।
पृथ्वीनाथ सेठ सबसे पहले पहुंचे थे यहां से -
मेरठ से राज्यसभा सबसे पहले पृथ्वीनाथ सेठ पहुंचे थे। तब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री थे। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने अपने बेटे और राष्ट्रीय लोकदल के वर्तमान अध्यक्ष अजित सिंह को भी मेरठ से ही राज्यसभा भेजा था। इसके बाद कांग्रेस ने शांति त्यागी को दो बार यहां से राज्यसभा भेजा। इसके अलावा, मोहसिना किदवई ने यहां से राज्यसभा में आवाज बुलंद की। बाद में भाजपा ने रणवीर सिंह को यहां से राज्यसभा भेजा। बसपा ने मुनकाद अली को दो बार मेरठ से राज्यसभा भेजा। अब भाजपा ने कांता कर्दम और विजयपाल तोमर को पहली बार एक साथ राज्यसभा भेजा है।
Updated on:
26 Mar 2018 03:39 pm
Published on:
26 Mar 2018 03:09 pm
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