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घड़ियाली आंसू कब तक?

सुकमा में सड़क निर्माण की सुरक्षा में तैनात जवानों पर हमले के दौरान माओवादी हथियार और वायरलैस सैट भी लूटकर ले गए। सात साल पहले इसी इलाके में ऐसे ही एक हमले में 76 जवान शहीद हुए थे।

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Rajeev sharma

Apr 26, 2017

डेढ़ महीने में छत्तीसगढ़ दूसरी बार लहूलुहान हो गया। माओवादियों के हमले में 25 जवान शहीद हो गए तो 6 अन्य घायल। सुरक्षा एजेंसियां एक बार फिर अपने काम में विफल रहीं। दूसरी तरफ, हमले के बाद सरकारी रस्म अदायगी पहले की तरह निभाई गई।

खास बात ये कि सुकमा में सड़क निर्माण की सुरक्षा में तैनात जवानों पर हमले के दौरान माओवादी हथियार और वायरलैस सैट भी लूटकर ले गए। सात साल पहले इसी इलाके में ऐसे ही एक हमले में 76 जवान शहीद हुए थे। हमले के बाद हमेशा की तरह प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री और मुख्यमंत्रियों से लेकर राजनीतिक दलों ने इसकी कड़ी निंदा कर डाली।

प्रधानमंत्री ने शहीद जवानों की बहादुरी पर गर्व जताते हुए कहा कि कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी। गृहमंत्री ने हमले को चुनौती के रूप में लेते हुए किसी को भी नहीं बख्शने की बात कही। गृह मंत्रालय से लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री तक ने आपात बैठक कर डाली। लेकिन, ये ज्वलंत सवालों का जवाब नहीं हो सकता।

जवानों की शहादत पर श्रद्धांजलि देने भर से इसका हल निकलने वाला नहीं। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में हुए इस हमले में माओवादियों का हाईटेक हथियारों से लैस होना चिंताजनक है। सवाल ये कि इन तक हथियार पहुंच कैसे रहे हैं? कौन पहुंचा रहा है? खबरें आ रही हैं कि इलाके के ग्रामीणों ने जवानों की रैकी की थी।

खास बात ये कि हमला जिस जगह हुआ, पुलिस थाना वहां से दो किलोमीटर की दूरी पर है। इन सवालों का हल तलाशे बिना माओवादियों के हमले रोक पाना संभव नहीं। हर हमले के बाद 'कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी' जैसे रटे-रटाए शब्दों से हालात बदलने वाले नहीं। माओवादियों की कमर तोडऩी है तो सघन अभियान चलाना होगा जो माओवादियों के सफाए तक जारी रहे।

उनके मददगारों को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। उनकी पहचान कर उन्हें सलाखों के पीछे डालना चाहिए। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी आज माना कि माओवादी आदिवासियों की आड़ लेकर ये हमले कर रहे हैं।

सरकार का काम इसे ही तो रोकना है। हर हमले के बाद सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाने की रस्म अदायगी के बजाय सरकार कड़े कदम उठाए। देश को दिखाएं कि सरकार वाकई बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दे रही। केन्द्र और छत्तीसगढ़ में एक ही दल की सरकार है तो समन्वय के अभाव का आरोप भी नहीं लग सकता।

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