
किसी विचार को खत्म नहीं कर सकती गाली और गोली
अनिल त्रिवेदी
गांधीवादी चिंतक और अभिभाषक
मनुष्य अपने विचारों को अपना मौलिक गुण मानता हैं। मानवीय सभ्यता का विस्तार मनुष्य के अंतहीन विचार प्रवाहों से हुआ माना जा सकता हैं। हालांकि इस मान लेने पर भी सब सहमत हों, यह जरूरी नहीं। फिर भी विचारों का जो सहज प्रवाह है, वह सहमति, असहमति या सर्वसम्मति का इंतजार नहीं करता। वह सनातन स्वरूप में प्रवाहमान ही रहता है। विचारों का सनातन प्रवाह ही हमें नित-नए विचारों से निरन्तर साक्षात्कार करवाता रहता है। मुश्किल यह है कि आज विचारों के आधार पर हम सब व्यापक होने की बजाय निरन्तर सिकुुड़ रहे हैं। अब हम विचारों को सार्वकालिक समाधान के विस्तार की बजाय संगठन, समुदाय, धर्म, दर्शन, सरकार, देश विचारधारा के एक विचार के रूप में गोलबन्द करके आपस में एक दूसरे से समझ पूर्ण सहज संवाद करने तथा सीखते रहने की बजाय नित-नए विवादों को जन्म देने लगे हैं। विचार एक दूसरे को मूलत: समझने, समझाने का अंतहीन सिलसिला है, जिसने मानव सभ्यता, संस्कृति और सामूहिकता की समझ का विस्तार किया।
मनुष्य के मन में विचार को कब्जे में कर अपना निजी विस्तार करने की भौतिक लालसा बढऩे लगी, तो सारा परिदृश्य ही बदलने लगा। गाली और गोली के रूप में मनुष्य ने दो हथियारों को अपने जीवन व्यवहार में विचार पर कब्जा करने के लिए खोजा। गाली और गोली की खोज एक तरह से मनुष्यता में विचार के स्वाभाविक विस्तार की सीधे-सीधे हार है। वैसे देखा जाए, तो गाली भी मनुष्य का एक तरह का विचार ही है। शायद शब्द को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के विचार ने ही गाली को जन्म दिया हो, पर गाली का जन्म एक तरह से विचार की हार ही है। विचार संवाद और सभ्यता के विस्तार का साधन है। गाली की उत्पत्ति ने विवाद और असभ्यता का विस्तार किया है। गाली गोली से ज्यादा मारक है। गोली से मनुष्य विशेष घायल होता या मरता है, पर गाली से सभ्यता ही हार जाती है। विचार की ताकत अनन्त है, क्योंकि विचार मानवीय शक्तियों का विस्तार करता है, निर्भयता को मन में प्रतिष्ठित करता है। निर्भयता का विचार अनन्त से एकाकार होने का मार्ग है। इसी से निर्भय मनुष्य न गाली से डरता है, न गोली से।
अपने आप में भयभीत या विचार की ताकत से डरा मनुष्य ही गाली या गोली का प्रयोग अपने लोभ-लालच की पूर्ति के लिए करता है। आज तक दुनिया में न तो गाली से कोई समधान हुआ है, न गोली से। इसके बाद भी विचार की तेजस्विता से भयभीत लोग दिन रात गाली और गोली को ही समाधान समझते हैं। पर, विचार है कि वह गाली और गोली से न तो धबराता है, न ही उन्हें समूल नष्ट करने का विचार लाता हैं। महात्मा गांधी के विचार को गोली नहीं मार पाई और गाली भी सत्य अहिंसा और अभय के विस्तार को रोकने में समर्थ नहीं है। जिन्होंने गांधी को मात्र शरीर समझा, विचार नहीं समझा वे गोली से विचार को मारने की भूल कर बैठे। गोली मारने के सात दशक बाद भी दिन रात गांधी के विचार को गाली देकर गोली और गाली दोनों की क्षणभंगुरता को ही पुष्ट कर रहे हैं। सुकरात और ईसा के साथ विचारों से भयभीत राज और समाज ने विचार को शरीर मानने की भूल की। गाली और गोली मनुष्य की विचार शक्ति की हार है। वैसे विचार जय पराजय से परे है, पर मनुष्य लोभ लालच और नफरत के अनन्त चक्र में विचार की ताकत को समझे बिना अपनी ताकत का विस्तार करने के लिए जीवन भर गाली और गोली के भंवर में भटकता रहता है।
भारत की विचार परम्परा में आदि शंकराचार्य का विशेष महत्त्व है। उन्होंने देश भर में भ्रमण कर भारत के विचार को समझाने का कार्यकर उसे लोकमानस में जीवन्त किया। संत विनोबा का कहना था कि आपने मुझे गाली दी और मैंने आपकी गाली ले ली, तो गाली सफल हो गई, पर आपकी गाली मैंने ली ही नहीं, तो आपकी गाली विफल हो गई। निर्भयता का मूल यही है कि गाली देने वाले की गाली को लेना ही नहीं हैं। इसी में मनुष्य और विचार दोनों की अमरता हैं।
Published on:
08 Sept 2022 07:33 pm
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