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बुद्धि और बोध का इस्तेमाल कर वायरस से बचाव संभव

आध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रशान्त सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए महामारी को लेकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं। वह कहते हैं कि इस महामारी के बाद कई मनोविकार उत्पन्न हो रहे हैं। ऐसे में उसे रोकने की जरूरत है। संकल्प बद्ध होकर इस महामारी को रोका जा सकता है। अगर इसमें लापरवाही हुई तो पूरी मानवता संक्रमित हो सकती है।

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Acharya Prashant

महामारी का मुकाबला और आध्यात्म की ताकत

आचार्य प्रशांत, आध्यात्मिक गुरु

दुनिया इस वक्त एक ऐसे अदृश्य दुश्मन से लड़ रही है जिसकी खोज करना बेहद मुश्किल भरा काम है। लाखों लोग असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं। विज्ञान इसको लेकर लगातार प्रयोग कर रहा है। लेकिन सफलता अभी तक नहीं मिल पा रही है। हालांकि बुद्धि और बोध का इस्तेमाल कर आप बीमारी से बच सकते हैं। लेकिन यह सोचना कि ईश्वर दैवीय शक्ति चलाकर किसी संक्रमण से इंसान को बचा लेगा है। यह पूरी तरह मूर्खातापूर्ण बात है। आप यह सोचते रहेंगे कि भगवत नाम का जाप कर हम बीमारी से बच जाएंगे तो यह सोच खुद के लिए और समाज के लिए घातक सिद्ध होगी। बीमारी दूर करने के लिए डॉक्टर के पास जाना जरूरी है नाकि साधु-संतों के पास।

बुद्धि और बोध का इस्तेमाल कर बीमारी से बचना संभव- आचार्य प्रशान्त

जो लोग यह कहते हैं कि हमें वायरस टच नहीं होगा। वह दुर्बुद्धि हैं। यह पाश्विक वृत्ति है, भगवान हमारे अंदर बुद्धि और बोध बनकर बैठे हैं। भगवान हमें बुद्धि और बोध का इस्तेमाल करने के लिए दिमाग दिए हुए हैं। इसका उपयोग कर आप किसी भी बीमारी से बच सकते हैं। ईश्वर बाहर की चीज नहीं हैं , हमारे अंदर बोध की जो शक्ति है वही परम सत्ता है। समझने-बुझने की ताकत का अधिकत्म प्रयोग करना ही तो धर्म है। ईश्वर के सामने नमित होना चाहते हैं वह बुद्धि और बोध की आराधना करें यही पूजा है...यही आराधना है। बुद्धि तभी सही है जब वह बोध की ओर ले जाए। बुद्धि का इस्तेमाल व्यक्ति, समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी महामारी पर लोग अंधविश्वास के चक्कर में ना पड़े । उसके लिए डॉक्टर के पास जाना जरूरी है ना कि धर्म की आड़ में रहकर खुद को और मानव जाति को प्रभावित करना।

शरीर बीमार हो जाए लेकिन मन बीमार ना हो- आचार्य प्रशान्त

आचार्य प्रशान्त ने कहा कि अगर शरीर कोरोना वायरस से संक्रमित हो भी जाए तो भी मन को संक्रमित नहीं हो। जो स्थिति बनी है उसमें बहु संख्य लोग संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन इसे घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सावधानी पूर्वक इससे बचने की जरूरत है। इसमें मृत्युदर ज्यादा नहीं है। औसतन 2 फीसदी तक है। शरीर संक्रमित हो गया हो तो खुद को आइसोलेट करे। लेकिन इसे किसी हादसे और सदमे की तरह नहीं लें। यह बुरा वक्त कट जाएगा। लॉकडाउन एक अच्छा समय है। स्वयं को जानने और समझने का.. धर्म और आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ाने का।

आध्यात्म से वायरस का उपचार संभव नहीं- आचार्य प्रशान्त

अपने मन की छानबीन करना ही आध्यात्म है। यानी मैं कौन हूं के बारे में पता लगाना आध्यात्म है, इससे ज्यादा और कुछ नहीं है। आध्यात्म का काम वायरस का उपचार नहीं है। ईश्वर बाहर की चीज नहीं हैं। हमारे अंदर बोध की जो शक्ति है वही परम सत्ता है। कुछ लोग अफवाह फैलाकर धर्म को गलत तरीके से प्रचार कर रहे हैं । जो लोग कोरोना से संबंधित धर्म की आड़ में आकर बोलते हैं कि धार्मिक लोगों को कोरोना का संक्रमण नहीं लगेगा वह मानवता के अपराधी हैं। समाज में ऐसी चर्चा को रोकना हमारा धर्म बनता है।

समाज को जीवन जीने की कला सिखाना ही तो धर्म है- आचार्य प्रशांत

मौजूदा समय में यह बीमारी उस देश से आई है जहां मांसाहार का इस्तेमाल विचित्र तरीके से किया जा रहा है। और सभी धर्मों पर प्रतिबंध लगा है। वहां मंदिरों पर बैन है। जबकि मंदिर हमें करूणा सिखाता है, जहां करुणा है वहां पशुओं के साथ क्रूरता और हिंसा कम होगा। भारत ने कई बार बड़े बड़े अकाल झेले हैं। इस दौरान करोड़ लोगों की जान गई है। लेकिन यहां के लोगों ने मांसाहार का प्रयोग नहीं किया। शुद्ध शाकाहारी होने से इम्युनिटी पावर मजबूत बनती है और किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता ज्यादा बढ़ जाती है। आज जिस तरह कोरोना लोगों पर अटैक कर रहा है उसका सबसे बड़ा कारण लोगों की इम्युन पावर कम होना है। रोग प्रतिरोधक क्षमता अगर मजबूत रहेगी तो निश्चित तौर पर हम बीमारियों को हरा सकते हैं।

मैं आज से करीब 7-8 साल पहले एक फिल्म देख रहा था ‘शिप आफ थीसिस’। उससे ठीक कुछ दिन पहले मेरे पास एक खरगोश होता था, नंदू नाम था उसका। वो मेरे साथ ही रहता था । मेरे कमरे में, उसकी मौत हो गई थी। जब ‘शिप आफ थीसिस’ देख रहा था, तो उसी में खरगोशों के ऊपर कैसे प्रयोग होते हैं इसको लेकर एक-दो सीन थे । वहीं थिएटर में बैठे-बैठे एकदम तय कर लिया कि अब कोई भी ऐसी चीज इस्तेमाल नहीं करूँगा जिसमें जानवरों का किसी भी तरीके से शोषण हुआ हो। धर्म हमें हमेशा सिखाता है कि मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करे। यानी समाज को जीवन जीने की कला सिखाना ही तो धर्म है।

आचार्य प्रशान्त ने कहा कि इस महामारी के बाद कई मनोविकार उत्पन्न हो रहे हैं। ऐसे में उसे रोकने की जरूरत है। संकल्प बद्ध होकर इस महामारी को रोका जा सकता है। लेकिन अगर इसमें लापरवाही हुई तो पूरी मानवता संक्रमित हो सकती है और आज तक की सबसे बड़ी त्रासदी बन जाएगी।