पृथ्वी के जिस हिस्से में आज प्रशांत महासागर है, चंद्रमा उसी स्थल से पृथ्वी से छिटका था। इसकी पुष्टि चंद्रमा और प्रशांत महासागर का व्यास लगभग एक समान होने से भी होती है।
प्रमोद भार्गव, लेखक एवं साहित्यकार, मिथकों को वैज्ञानिक नजरिए से देखने में दक्षता
समुद्र-मंथन की प्रक्रिया में चौदह रत्नों में एक चंद्रमा के भी मिलने का उल्लेख है। जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर ने अपने 'महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत' में समुद्र-मंथन के प्रसंग को वैज्ञानिक आधार दिया है। बताया गया कि उल्कापिंडों के पथराव से चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी का अधिक विस्तार हुआ और इसके वर्तुलाकार धरातल पर बोझ बढ़ता गया, पृथ्वी स्वयं की ओर तेजी से घूमने लगी और अस्थिर हो गई, सूर्य के घटने-बढऩे वाले गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से अस्थिर पृथ्वी के पृष्ठ भाग पर भयंकर समुद्री लहरें उठने लगीं, लहरों के इस घर्षण से चंद्रमा दूर चला गया, कालांतर में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण खिंचा चला आया और परिक्रमा करने लगा। पृथ्वी के जिस हिस्से में आज प्रशांत महासागर है, चंद्रमा उसी स्थल से पृथ्वी से छिटका था। इसकी पुष्टि चंद्रमा और प्रशांत महासागर का व्यास लगभग एक समान होने से भी होती है।
इसी स्थल पर समुद्र-मंथन के लिए देवों और दानवों को गर्गाचार्य ऋषि अपनी मंडली के साथ मिले थे, जो खगोल व ज्योतिष विज्ञान में शोधरत थे। उन्हें तब ऋषि ने सिद्धि के निमित्त चंद्रबल और शुभ मुहूत्र्त गोमा तक की उपस्थिति से सफलता सुनिश्चित बताई थी। ग्रहों की उत्पत्ति की इस विधि के अनुरूप वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के और चंद्रमा खोजने का दावा किया है। 19 फरवरी 2020 को कौटालिना स्काई सर्वेक्षण के अनुसार खगोलविदों ने एक धीमी वस्तु को पृथ्वी के निकट घूमते देखा। यह वर्तमान चंद्रमा से अत्यंत छोटा था। इसका व्यास 6.2 फीट से लेकर 11.5 फीट तक था, यानी एक कार के बराबर। वैज्ञानिकों ने इसे '2020 सीडी-3' नाम दिया। इससे पहले 2006 में आरएच-120 नाम का अस्थायी चंद्रमा संज्ञान में आया था। यानी स्थायी चांद वही है, जो समुद्र-मंथन से निकला। गर्ग ऋषि ने इसी चंद्रमा की चाल से काल-गणना जानने की पद्धतियां विकसित कीं, जिन्हें आज भी पंचांग तैयार करने वाले अपनाते हैं।