
प्रसिद्ध डच चित्रकार पीट मोर्डिया जो कि बीसवीं शताब्दी के महानतम चित्रकारों में शुमार हैं, कला को लेकर दो बड़ी मजेदार टिप्पणियां करते हैं। पहली 'यथार्थ उत्तरोत्तर कलाकृति की जगह लेता जाएगा क्योंकि कलाकृति वस्तुत: उसका स्थानापन्न है, जो आजकल यथार्थ में नहीं पाया जाता। ज्यों-ज्यों जीवन अधिक संतुलित होता जाएगा, त्यों-त्यों कला तिरोहित होती जाएगी।' वहीं दूसरी ओर उनका यह भी मानना है कि 'कला का स्थान वास्तविकता से ऊंचा है और इसका वास्तविकता से कोई सीधा रिश्ता भी नहीं है। कला में आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होने हेतु व्यक्ति वास्तविकता का न्यूनतम उपयोग करे, क्योंकि वास्तविकता, आध्यात्मिकता की विरोधी है।' अतएव कला वस्तुत: निरंतर अविष्कार करते जाने की प्रक्रिया है।
एक कलाकार ब्रश या पेंसिल से, दूसरा अपने वाद्ययंत्र से, तीसरा अपने गले में बसे सुर से, चौथा अपने शरीर की लय से और पांचवां अपनी कलम से हर क्षण कुछ ऐसा अविष्कृत करता चलता है, जिससे पहले से परिपूर्ण दुनिया में कुछ नया जुड़ता जाता है। यह गिनती पांचवें पर थमती नहीं है बल्कि यह तो लगातार सीमाओं का अतिक्रमण करती चलती है। जो वास्तविकता है उसका अतिक्रमण ही कल्पना है और कल्पना ही कला है। कलाकार की एकमात्र संपत्ति उसकी कल्पना ही होती है और बाकी सब उससे उपजे सह उत्पाद!
विभिन्न कलारूपों पर गहन विमर्श की जरूरत लगातार बनी रहती है। रॉक पेंटिग के युग से आधुनिक कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) के युग तक का सफर बिना कला के संभव हो ही नहीं सकता था। हमारे समय में एक धारणा यह बना दी गई कि कला और व्यक्ति का संबंध ऐच्छिक है। जबकि वास्तविकता तो यही है कि जीवन और कला वस्तुत: पूरक हैं। भारतीय संदर्भों में देखें तो हजारों वर्ष पुराने गुफा चित्रों (रॉक पेंटिंग) और वर्तमान में राजस्थान और मध्यप्रदेश के मालवा में बनाए जाने वाले 'मांडणों' में आपको समानता भी मिलेगी और कल्पना का विस्तार भी।
कलाएं समाज में रच बस जाती हैं और वे काल का अतिक्रमण करती चलती है। थोड़ा बाद के काल को याद करें तो सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता के दौरान विकसित कला रूप आज भी हमारे साथ हैं। खासकर वस्त्रों पर रंगाई और छपाई की कला की निरंतरता पिछले करीब 7 हजार वर्षों से चली आ रही है। मोहनजोदड़ो के राजा की मूर्ति पर गढ़ा दुशाला वस्त्र पर अलंकरण का कमोबेश प्राचीनतम प्रमाण है। प्रत्येक कलास्वरूप वास्तव में एक चमत्कार होता है, क्योंकि वह जो कुछ पहले से सृष्टि में मौजूद है, उसको एक नया स्वरूप, नया आकार प्रदान करता है। कला मानव और मानवीयता की निरंतरता का प्रमाण है।
Published on:
12 Apr 2025 12:08 pm
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