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अजर-अमर

अमरत्व की चाह तो देवताओं में भी होती है। यूं भी देवताओं का एक पर्यायवाची 'अमर' भी है। दानव तो हमेशा अमर होना चाहते रहे हैं और सुर-असुरों से भी अधिक अमर होने की चाह मनुष्य के भीतर रही है।

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afjal khan

Mar 19, 2016

अमरत्व की चाह तो देवताओं में भी होती है। यूं भी देवताओं का एक पर्यायवाची 'अमर' भी है। दानव तो हमेशा अमर होना चाहते रहे हैं और सुर-असुरों से भी अधिक अमर होने की चाह मनुष्य के भीतर रही है।

अब हमारा जैसा आम आदमी तो अमर होने की चाह क्या रखेगा क्योंकि उस बेचारे को ठीक-सी उम्र मिल जाए, इसके लिए ही रोटी पानी के जुगाड़ में ऐडि़यां रगड़ता रहता है अलबत्ता हमारे नेतागण के हृदय में अमर होकर इतिहास में घुसने की चाह भयंकर ठाठे मारती रहती है।

अगर चौराहे-चौराहे पर स्थापित नेताओं की मूर्तियां गिनने लगे तो आपको चांद पर पहुंचने के बराबर चक्कर लगाने पड़ेंगे। मरने के बाद नेताओं के भक्त, अनुयायी, चेले-चमचे मूर्तियां लगाते ही रहते हैं पर कई नेता ऐसे हैं जिन्हें अपने चमचों पर ऐतबार नहीं रहता और वे अपने जीते जी ही अपनी मूर्ति स्थापित करवा देते हैं।

हालांकि मूर्तियां लग तो जाती हैं पर साल भर उन पर कबूतर-कौवे बैठ कर बीट करते रहते हैं और नेताजी की जयन्ती या मरण दिवस पर चौराहे पर लगी मूर्ति की झाड़ पोंछ करके उसके गले में माला डाल वार्षिक कर्मकांड पूरा कर लिया जाता है। अब मूर्ति के रूप में अमर होने का ताजा शौक अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई को लगा है।

तभी वे खुद मूर्ति बन कर मैडम तुसाद के संग्रहालय के लिए अपने चेहरे, गाल, गर्दन, आंख, भंवे, टांग, बाजू की तन्मयता से नाप देते रहे और मोम की मूर्ति बनने को तैयार हो गए। लन्दन में मैडम तुसाद का मूर्ति संग्रहालय है।

हमें यह सोच कर अभी से गुदगुदी होने लगी कि आशिक मिजाज सलमान भाई, हाहाकारी प्रेमी शाहरुख खान, चुलबुली करीना कपूर, सौन्दर्य की देवी ऐश्वर्या रॉय, एंग्रीयंगमैन अमिताभ बच्चन इत्यादि भांति-भांति के व्यक्तित्वों के मध्य खड़े अपने नरेन्द्र भाई खूब जचेंगे।

पिछले दिनों नरेन्द्र भाई विदेशी यात्राओं में खूब व्यस्त रहे और उन्होंने डेढ़ बरस में ही इतनी यात्रा कर डाली जितनी एक प्रधानमंत्री पांच साल में भी नहीं कर पाता। अब अपने भाई मोम की मूर्ति बन कर इतिहास में घुस रहे हैं। लेकिन एक बात हम विनम्रता से पूछना चाहते हैं- भाई! इतनी जल्दी क्या है मूर्ति के रूप में स्थापित होने की।

अभी तो आपको जनता के हृदय में अपनी मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मैडम तुसाद को तो 'सेलेब्रिटी' चाहिए। उनके लिए फिल्मों के 'भाई' और राजनीति के 'भाई' में ज्यादा फर्क नहीं है। वैसे रामजी झूठ न बुलाए। अभी तक हमने दर्जी को गले की, बाहों की, पेट की, टांग की नाप तो दी है पर आज तक गालों, कानों, आंखों की नाप किसी खातून को नहीं दी है।

मोम का पुतला बनने के लिए हम अपने प्रधानमंत्री को बधाई देते हैं पर इतनी जल्दी वे पुतला बन जाएंगे, इसकी उम्मीद हमें नहीं थी। वैसे अगर महात्मा गांधी आज जीवित होकर आ जाए तो सबसे बड़ी गारत उन्हें दे जिन्होंने चौराहे- चौराहे पर उनकी मूर्ति लगा दी। गांधी कहते कि इस पैसे से किसी गंदी बस्ती का उद्धार करते तो ज्यादा ठीक था।
- राही

मैडम तुसाद को तो 'सेलेब्रिटी' चाहिए। उनके लिए फिल्मों के 'भाईÓ और राजनीति के 'भाईÓ में ज्यादा फर्क नहीं है।