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समसामयिक : आयात बाधित करने वाली नीतियों में भी हो सुधार

— प्रो.मिलिंद कुमार शर्मा (प्रोफेसर, एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर)

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जयपुर

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VIKAS MATHUR

Apr 15, 2025

यह कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मात्र आर्थिक गतिविधि नहीं रह गया है, अपितु यह देशों की रणनीतिक, कूटनीतिक और राजनयिक नीतियों का अभिन्न भाग बन चुका है। अमरीका द्वारा विभिन्न राष्ट्रों पर लगाया भारी टैरिफ इस बात की पुरजोर पुष्टि भी करता है।

भारत, एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी व्यापारिक नीतियों से विश्व पटल पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। भारत के द्वारा लागू किए गए व्यापारिक नियम, विशेष रूप से गैर-शुल्क व्यापार अवरोध 'नॉन टैरिफ बैरियर' अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों के लिए बार-बार चिंता का विषय बने हैं। इन राष्ट्रों के अनुसार भारत अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विदेशी उत्पादों के रास्ते में समय समय पर अवरोध खड़े करता है। इन अवरोधों को लेकर इन देशों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है, विशेषत: जब अमरीका में ट्रंप युग की संरक्षणवादी नीतियां एक बार फिर चर्चा में हैं।

भारत में बाहरी उत्पादों को गैर-शुल्क व्यापार अवरोधों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है यथा तकनीकी मानक, गुणवत्ता मापन, स्वच्छता और जैव-सुरक्षा उपाय, सीमा शुल्क निरीक्षण, प्रमाणन आवश्यकताएं, आयात कोटा, लाइसेंसिंग व्यवस्था और प्रशासनिक विलंब एवं विषमताएं। इनका उद्देश्य मूलरूप से उपभोक्ता हितों की रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और घरेलू उद्योगों का संरक्षण होता है, परंतु व्यवहार में कालांतर में ये विदेशी उत्पादों के लिए अनुचित व्यापारिक बाधाएं बन जाती हैं। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा भारत में बेचान के दौरान कई उत्पादों के लिए अनिवार्य प्रमाणन की आवश्यकता होती है। कई बार बाहर की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इसके प्रमाणन की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल व समय लेने वाली लग सकती है तथा बाजार में प्रतिस्पर्धा को बाधित कर सकती है।

इसी प्रकार, भारत द्वारा लागू किए गए स्वच्छता और जैव-सुरक्षा उपाय को लेकर भी निर्यातक राष्ट्र शिकायत करते हैं कि भारत बिना वैज्ञानिक प्रमाणों के ऐसे नियम लागू करता है जिनसे उनके डेयरी उत्पादों और फलों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत की इन नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित अमरीका रहा है। ट्रंप प्रशासन के दौरान 2018-19 में भारत को अमरीका की सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली योजना से बाहर कर दिया गया था। यह एक ऐसी योजना थी, जिसके अंतर्गत भारत से आने वाले उत्पादों पर अमरीका में शून्य या बहुत कम शुल्क लगता था। ट्रंप प्रशासन का यह कदम भारत द्वारा 'व्यापारिक रूप से अनुचित अवरोध' लगाने की प्रतिक्रिया स्वरूप लिया गया था। अमरीकी वाणिज्य विभाग के अनुसार, भारत ने चिकित्सा उपकरणों (जैसे स्टेंट और नी रिप्लेसमेंट) पर मूल्य नियंत्रण लगाए, जो अमरीकी कंपनियों को भारी नुकसान पहुंचा रहे थे। इसके अतिरिक्त, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी, जटिल दस्तावेजीकरण और भौतिक निरीक्षण भी विदेशी व्यापारियों के लिए अतिरिक्त बाधाएं उत्पन्न करते हैं। विश्व बैंक की इज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट- 2020 के अनुसार, भारत का 'सीमा पार व्यापार' सूचकांक स्कोर अभी भी अपेक्षित सुधार की मांग करता है।

भारत में निर्यात-आयात प्रक्रियाओं में लगने वाला औसत समय अब भी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन देशों की अपेक्षा कहीं अधिक है। हाल में, ट्रंप युग की व्यापार नीतियों ने एक बार पुन: वैश्विक व्यापार व्यवस्था को अस्थिर कर दिया है। 2024 के अमरीकी चुनावों के बाद ट्रंप समर्थकों ने 'अमरीका फस्र्ट' एजेंडा फिर से उठाया, जिसमें भारत के साथ व्यापार घाटा एक बार फिर मुख्य विषय बना है। ट्रंप का स्पष्ट रुख यह रहा है कि वे उन देशों पर टैरिफ लगाएंगे, जो अमरीकी उत्पादों को बाजार में प्रवेश पर अवरोध उत्पन्न करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारत की गैर-शुल्क नीतियां एक बार पुन: निशाने पर हैं। मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ताएं बार-बार इसी कारण अटक जाती हैं क्योंकि निर्यातक राष्ट्रों की मांग रहती है कि भारत अपने नियामक तंत्र को सुगम, सरल और पारदर्शी बनाए। भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अपनी नीतियों की पुन: समीक्षा करे और उन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाए। तकनीकी मानकों को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन आदि के अनुरूप ढालना चाहिए।

इससे भारत न केवल विदेशी निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक गंतव्य बनेगा, अपितु विश्व व्यापार संगठन जैसे मंचों पर उसकी साख भी मजबूत होगी। इसके साथ ही, भारत को सीमा शुल्क और आयात प्रक्रियाओं को पूर्णत: डिजिटल बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। एकल खिड़की प्रणाली को प्रभावी तरीके से लागू कर दस्तावेजों की जांच, स्वीकृति और माल की निकासी में लगने वाले समय को घटाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी नीतियां वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हों और विश्व व्यापार संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हों। इस सुधार प्रक्रिया में भारत को अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा भी करनी होगी। भारत सरकार को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को तकनीकी सहायता, वित्तीय सहायता और विपणन सहायता जैसे उपायों के माध्यम से सशक्त करना होगा। भारत के गैर-शुल्क व्यापार अवरोधों की नीतियां आज के वैश्विक व्यापार में अनवरत प्रश्नों के घेरे में है। विशेष रूप से ट्रंप युग की नीतियों के पुनरुत्थान के समय भारत के पास यह सुनहरा अवसर है कि वह अपनी नीतियों में सुधार कर न केवल वैश्विक साख को बढ़ाए, अपितु घरेलू उद्योगों को भी वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाए।