17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

क्रोध को काबू में रखें, लोगों को माफ करना सीखें और आगे बढें

गुस्से को हावी न होने दें, उस पर नियंत्रण रखें। गुस्सा आने पर थोड़ी देर के लिए उस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह चले जाएं।

2 min read
Google source verification

जयपुर

image

VIKAS MATHUR

Jun 14, 2024

मुस्कुराना कौन नहीं चाहता, लेकिन न चाहते हुए भी क्रोध का आवेग हम पर हावी हो ही जाता है। प्रश्न यह है कि आखिर हमे गुस्सा आता क्यों है? दरअसल, यह मानव स्वभाव है। असल में हमेशा यही इच्छा होती है कि जीवन में जैसा हम चाहें वैसा ही हो। कुछ भी हमारी इच्छा के अनुसार न हो तो हम परेशान हो जाते हैं और हमें गुस्सा आने लगता है।

हम दूसरों से एक तरह के व्यवहार की अपेक्षा करते हैं और जब वह व्यवहार हमेें नहीं मिलता तो हम क्रोधित हो जाते हैं, अगर हमारी स्थितियां हमारे अनकूल नहीं होतीं तो भी हमें क्रोध आने लगता है और ऐसा करते-करते धीरे-धीरे हमारे जीवन में क्रोध और कुंठा का ग्राफ बढ़ता ही जाता है। देखा गया है कि हम गुस्से में किसी को कुछ कह देते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए और फिर बाद में पछतावा होता है। सभी जातने हैं कि क्रोध से नुकसान होता है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं और हमें गुस्सा आ ही जाता है। क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर हमें गुस्सा आता ही क्यों है और यह हमारा कितना नुकसान करता है?

इसका जवाब आपको श्रीमद्भगवद गीता में मिलता है। असल में गीता में हमारे जीवन के सारे मुश्किल सवालों के जवाब हैं, बस आप अर्जुन की जगह अपने आप को रखिए और देखिए कृष्ण कैसे आपको हर मुश्किल का समाधान देते हैं। क्रोध कैसे उत्पन्न होता है? कृष्ण,अर्जुन को कारण बताते हैं- काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव:। महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।। रजोगुण में मानव को सांसारिक विषय भोगों की कामना होती है। यह भोग कुछ भी हो सकते हैं जैसे धन की इच्छा, शारीरिक लालसाएं, प्रतिष्ठा की अभिलाषा इत्यादि। और जब ये कामनाएं पूरी होती हैं तो फिर लोभ उत्पन्न होता है और यह बढ़ता ही जाता है, लेकिन जब इसकी संतुष्टि नहीं होती तो क्रोध का आवेग उत्पन्न होता है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि काम, क्रोध और लोभ ये तीन विकार ही नरक के द्वार हैं और इनसे ग्रसित होकर ही मनुष्य पाप करता है। सारी बुराइयों की जड़ ये तीन विकार ही होते हैं।

ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात् संजायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते।। हमें जब भी गुस्सा आता है तो उसका वेग बहुत ही तीव्र होता है। इसलिए जब भी आपको गुस्सा आए आप कोशिश करें थोड़ी देर के लिए उस जगह से बाहर निकल जाएं और फिर जब यह आवेग रुक जाए, फिर शांत और ठंडे दिमाग से उस परिस्थिति या समस्या का समाधान सोचें। हमे 'रियेक्ट' करने के बजाय 'रिस्पोंड' करना चाहिए। इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप गुस्से को नियंत्रण में रखें न कि गुस्सा आप को। अपने मन को शांत करने के लिए आप महामंत्र का जाप कर सकते हैं, 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे'। एक बड़े काम की बात आपसे शेयर करता हूं जो आपकी प्रोफेशनल लाइफ में आपकी बड़ी मदद करेगी, कभी भी गुस्से के आवेग में ई-मेल का जवाब मत दीजिए। जब आप थोडा बेहतर महसूस करें तब ही ठंडे दिमाग से ई-मेल का उत्तर दें। लोगों को माफ करना सीखें और आगे बढें़, इससे आप अपने अंदर असीम शांति और ऊर्जा का अनुभव करेंगे। यही ऊर्जा आपको जीवन में सफल बनाएगी और ईश्वर के और करीब ले जाएगी।

— अमितासन दास