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आंतरिक व्यवस्था की मजबूती से हो सकता है देश सशक्त

भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना तभी कर सकता है, जब उसकी आंतरिक व्यवस्था मजबूत हो। आंतरिक व्यवस्था न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण पर निर्भर है। भारत की आंतरिक व्यवस्था का समाधान आर्थिक और सामाजिक दोनों चुनौतियों के समाधान में निहित है।

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Patrika Desk

Aug 15, 2022

आंतरिक व्यवस्था की मजबूती से हो सकता है देश सशक्त

आंतरिक व्यवस्था की मजबूती से हो सकता है देश सशक्त


दत्तात्रेय होसबाले
सरकार्यवाह
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

आज जब हमारे देश की स्वाधीनता को 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो देश की उपलब्धियां व चुनौतियां सभी हमारे सामने हैं। कैसे एक राष्ट्र ने स्वतंत्र होते ही विभाजन की त्रासदी का सामना किया और हिंसा का दंश झेला। इसके तुरंत बाद सीमा पर आक्रमण का सामना किया। ये चुनौतियां भी हमारे राष्ट्र के सामथ्र्य को हरा नहीं पाईं। देश लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करता रहा। आज हम केवल कल्पना कर सकते हैं कि कैसे हमारे देश के नागरिकों ने विभाजन और आक्रमण के दु:ख झेलने के बाद 1952 में लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व को मनाया और भारत में लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई।
यह भारतवासियों का सामथ्र्य और इच्छाशक्ति ही थी, जिसने 1947 के बाद लगातार भारत के छूटे हुए हिस्से गोवा, दादरा एवं नगर हवेली, हैदराबाद और पुड्डुचेरी को फिर भारत भूमि में मिलाने का प्रयास जारी रखा। अंत में नागरिक प्रयासों से लक्ष्य की प्राप्ति भी की। प्रश्न उठता है कि एक राष्ट्र जिसको राजनीतिक स्वतंत्रता केवल कुछ वर्षों पूर्व मिली हो, इतना जल्दी यह सब कैसे कर सकता है? इसको समझने के लिए हमें भारत के समाज को समझना होगा, जो सभी प्रकार के आक्रमण और संकट को सहते हुए भी अपने एकता के सूत्र को नहीं भूला। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को समझने का प्रयास करेंगे, तो पाएंगे कि संघर्ष के पदचिह्न नगरों, ग्रामों, जंगलों, पहाड़ों व तटीय क्षेत्रों हर जगह मिलते हैं। चाहे संथाल का विद्रोह हो या दक्षिण के वीरों का सशस्त्र संघर्ष, सभी संघर्षों में एक ही भाव मिलेगा। सभी लोग केवल अपने लिए ही नहीं, अपितु अपने समाज और सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए किसी भी कीमत पर स्वाधीनता चाहते थे। भारतीय समाज की व्याकुलता इतनी थी कि वह इसके लिए हर प्रकार के त्याग और हर प्रकार के मार्ग पर चलने को इच्छुक थे। यही कारण है कि भारत की स्वतंत्रता के लिए लंदन, यूएस, जापान हर जगह से प्रयास हुए। लंदन स्थित इंडिया हाउस तो भारतीय स्वाधीनता का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। किसी एक का नाम लेना बेमानी होगा, क्योंकि भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में अनेक लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से कुछ का नाम हम जानते हैं और कुछ का नाम नहीं। यह एक आन्दोलन था, जिसके असंख्य नायक थे। मगर हर नायक का मकसद एक ही था। यही कारण है कि स्वाधीनता के बाद देश को परम वैभव की ओर ले जाने का भाव देश की जनता के मन में था और यह इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर नहीं था। इसी कारण जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमले का प्रयास, आपातकाल के रूप में हुआ तो जनता ने स्वयं ही संघर्ष किया।
स्वाधीनता को 75 वर्ष पूरे होने पर हमें यह भी विचार करना होगा कि स्वाधीनता के शताब्दी वर्ष तक हमारे लक्ष्य क्या होंगे? आज जब सम्पूर्ण विश्व कोरोना और वैश्विक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है, तो एक राष्ट्र के रूप में हमारे क्या लक्ष्य होने चाहिए? इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछला दशक भारत के लिए अनेक उपलब्धियों से भरपूर रहा है। चाहे वह नागरिकों को स्वास्थ्य, आवास और वित्तीय समावेशन से जुड़ीं मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करने का विषय हो या फिर कुछ और। सब यही परिलक्षित करता है कि भारत का समाज और नागरिक सशक्त हो रहा है। यह भारत की मेधा शक्ति ही है, जिसने सबसे कम समय में सबसे सस्ती और सबसे सुरक्षित वैक्सीन का निर्माण कर करोड़ों लोगों के जीवन की रक्षा की। इन सभी बातों के बावजूद भारतीय समाज और एक राष्ट्र के रूप में हमें कई आंतरिक और बाह्य संकटों का न केवल सामना करना है, अपितु उसका समाधान भी ढूूंढना है। भारत को अब भी समरसता के लिए और प्रयास करने होंगे, क्योंकि समाज जितना समरस होगा, उतना ही सशक्त होगा। इसलिए इस पर अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था तमाम संकटों के बाद भी आगे बढ़ रही है, मगर भारत की बड़ी आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इसे और तेजी से प्रगति करनी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि हम भारतीय उद्योगों और उपक्रमों को बढ़ावा दें। इसके बिना हम भारत की रोजगार की अपेक्षा को पूरा नहीं कर पाएंगे। भारत सही मायने में तभी सशक्त होगा, जब देश स्वावलंबी होगा। यह आवश्यक है कि हम विचार करें कि क्या भारत के नीति प्रतिष्ठान, वर्तमान के भारत की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो परिवर्तन कैसे हो सकता है, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। आज हम बहुत सी ऐसी व्यवस्था देखते हैं, जिसमें एक साधारण आदमी अपने को असहज और असमर्थ पाता है, चाहे वह आज की न्यायिक व्यवस्था हो या राजनीतिक व्यवस्था। ये एक साधारण आदमी की पहुंच तक सहजता से कैसे पहुंचे, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना तभी कर सकता है, जब उसकी आंतरिक व्यवस्था मजबूत हो। आंतरिक व्यवस्था न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण पर निर्भर है। भारत की आंतरिक व्यवस्था का समाधान आर्थिक और सामाजिक दोनों चुनौतियों के समाधान में निहित है।