12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

डीएफआइ: वित्तीय क्रांति या आतंक का नया हथियार?

जी.एन. बाजपेयी, डॉ. प्रदीप तिवारी

3 min read
Google source verification

आजकल आतंकी गुट पैसे जुटाने, अपना ढांचा तैयार करने या नेटवर्क फैलाने जैसे गैरकानूनी कामों के लिए विकेंद्रीकृत वित्त (डीफाई) का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। यह गहरी चिंता का विषय है। यह सब तब हो रहा है जब फिनटेक यानी वित्तीय तकनीक के क्षेत्र में बड़े बदलाव आ रहे हैं। डीफाई तेजी से बढ़ रहा है और दुनियाभर की वित्तीय सेवाओं को बदल रहा है। फिनटेक विषयक वेबसाइट ‘घोइन लॉ’ के अनुसार, 2025 के बीच तो दुनिया में डीफाई इस्तेमाल करने वाले क्रिप्टो वॉलेट्स की संख्या लगभग 42 लाख तक पहुंच गई है। डीफाई का बाजार हर साल करीब 40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है। 2024 में यह 60.07 अरब डॉलर था, जो 2029 तक 178.06 अरब डॉलर हो सकता है। ब्लॉकचेन डेटा प्लेटफॉर्म चेनालिसिस के 2024 ग्लोबल क्रिप्टो एडॉप्शन इंडेक्स में भारत डीफाई के मूल्य के मामले में तीसरे स्थान पर था। हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2025 में भारत क्रिप्टो एडॉप्शन में पहले नंबर पर है, जिसमें डीफाई का बड़ा रोल है। डीफाई प्लेटफॉर्म ब्लॉकचेन पर चलते हैं। ये बिना बैंकिंग संस्थानों की जरूरत के बचत, निवेश, उधार लेना-देना, पैसे भेजना और बीमा जैसी सेवाएं देते हैं।

लेन-देन स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स, खुले नियमों और विकेंद्रित ऐप्स (डी-एप्स) के जरिए सीधे लोगों के बीच होता है। जब आप अपना डिजिटल वॉलेट डीफाई से जोड़ते हैं तो यह बैंकिंग सिस्टम को छोड़कर सीधा रास्ता बना देता है। डीफाई इस्तेमाल करने के लिए बैंक अकाउंट खोलना या अपनी पहचान साबित करना जरूरी नहीं। कोई भी व्यक्ति सिर्फ पासवर्ड बनाकर साइन अप कर सकता है और यह क्रिप्टो वॉलेट तैयार कर सकता है। अधिकांश वॉलेट में पता, फोन नंबर या ईमेल चेन नहीं होता। अंतरराष्ट्रीय सेटलमेंट बैंकें की 2024 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डीफाई का मकसद बीच के लोगों को हटाना है। उपयोगकर्ता स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स से सीधे जुड़ते हैं, न कि किसी संस्था से। इसलिए बैंकों या बाजार निगरानी करने वालों के न होने से डीफाई अपराधों और निवेशों की ठगी के लिए आसान निशाना बन जाता है।

डीफाई के खतरे उसके फायदों से तुलना करके समझने चाहिए। इसके फायदों में वित्तीय समावेशन यानी हर नागरिक के लिए सुलभता, ज्यादा तरलता, पारदर्शिता, कम खर्च, अन्य ऐप्स से जुड़ाव और किसी बड़े अधिकारी से इजाजत न लेना हैं। लेकिन याद रखें, मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। इसमें अपराधों का खतरा बहुत बड़ा है। डीफाई के छिपे खतरे उसे प्रचार करने के तरीके से पता चलते हैं। यह खुद चलने वाले स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स पर आधारित है, जिन्हें अपराधी या आतंकी हैक कर सकते हैं। डीफाई का नियंत्रण विकेंद्रित स्वायत्त संगठनों के हाथ में होता है। ये वे लोग हैं, जो प्रोजेक्ट के टोकन रखते हैं और फैसले लेते हैं। ऐसी व्यवस्था से नियमों में अनिश्चितता और जिम्मेदारी की कमी आती है। डीफाई बिना देश की सीमाओं का है और लोग गुमनाम रह सकते हैं। इससे साइबर हमलों से चुराए पैसे वापस लाना बहुत मुश्किल हो जाता है। बिना चेता-चिह्नित वॉलेट से लेन-देन ट्रेस करना कठिन है। गलत लोग अलग-अलग ब्लॉकचेन, क्रिप्टो मिक्सर, गुमनामी बढ़ाने वाले टूल्स और हर बार नया वॉलेट यूज़कर अपना पता छिपा लेते हैं। पैसे पाने वाला व्यक्ति यह भी नहीं जानता कि पैसा कहाँ से आया। संदिग्ध पैसे वाले अकाउंट को ब्लॉक करना भी आसान नहीं।

डीफाई के खतरे समझने और नियमों की खामियों को दूर करने के लिए कई देशों ने अपने जोखिम मूल्यांकन सार्वजनिक किए हैं। अप्रैल 2024 में अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने कहा कि डीफाई सेवाओं को बैंकों की तरह मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग रोकने के नियम मानने चाहिए। जनवरी 2025 की यूरोपीय बैंकिंग प्राधिकरण और यूरोपीय प्रतिभूति संघ की रिपोर्ट में डीफाई में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग के बड़े खतरे बताए गए, क्योंकि लोग बिना पहचान के लेन-देन कर सकते हैं। जुलाई 2025 की ब्रिटेन की राष्ट्रीय रिपोर्ट में भी यही बातें हैं। जून 2025 की फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) रिपोर्ट में कहा गया है कि देश डीफाई में संस्थाओं की पहचान और नियम लागू करने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं।

डीफाई की नई तकनीकों के कुछ फायदे हैं, लेकिन आतंकी के निशाने वाले भारत जैसे देशों के लिए खतरे साफ हैं। समावेशन के मामले में डीफाई ‘जैम’ (जन धन, आधार, मोबाइल) और यूपीआई से बेहतर नहीं है, जो पहले से आम आदमी तक वित्तीय सेवाएं पहुंचा चुके हैं। डीफाई पर रोक लगाना संभव नहीं, इसलिए सभी संबंधित लोगों के साथ मिलकर तकनीकी-आधारित, जोखिम पर केंद्रित तरीके अपनाने चाहिए। ये बदलते डीफाई सिस्टम के हिसाब से बनेंगे। भारत का आखिरी राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन 2022 में हुआ। अन्य देशों की तरह डीफाई पर खास मूल्यांकन से भविष्य की योजना के लिए अच्छी जानकारी मिल सकती है। इसे ज्यादा लोगों तक पहुंचाना डीफाई यूज़र्स को देश की सुरक्षा के खतरे के बारे में जागरूक करेगा। 2024 में एफएटीएफ की भारत रिपोर्ट में सलाह दी गई कि राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन तक पहुंच बढ़ाई जाए और इसका सार्वजनिक संस्‍करण जारी किया जाए। डीफाई से सीमा पार खतरे असली हैं और सबको प्रभावित करते हैं, इसलिए डीफाई का नया मूल्यांकन उद्योग के साथ मिलकर योजना बनाने में मदद करेगा। अब समय है डीफाई को बड़े खतरे का हथियार बनने से रोकने का।