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रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के कोर और बफर जोन का भेद

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का जंगल इस छोर से उस छोर तक प्रकृति की सुंदरता की अलग-अलग तस्वीरों से आपका दिल लुभाएगा, यह बात पक्की है। हमें बाघ तो नहीं, पर भालू दिखे, उल्लू दिखे और बरसात में दूसरे राज्यों से आने वाली कई तरह की चिडिय़ां।

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Patrika Desk

Jul 26, 2022

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के कोर और बफर जोन का भेद

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के कोर और बफर जोन का भेद

तृप्ति पांडेय
पर्यटन और संस्कृति विशेषज्ञ
पहले तो अपने सामान्य पाठकों और पर्यटकों को सीधी-सादी भाषा में कोर और बफर जोन जैसे शब्दों का अर्थ समझाना चाहती हूं क्योंकि बाघों वाले जंगलों में जाने वाला हर पर्यटक इनका जानकार नहीं होता। तो कोर का मतलब है जंगल का मुख्य भाग, जबकि बफर का मतलब उस इलाके से है जो विकसित क्षेत्र से मुख्य भाग यानी कि कोर को अलग करता है, बचाता है। साथ ही बफर जोन में कुछ ऐसी आर्थिक गतिविधियां चल सकती हैं जो या तो बरसों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष स्थानीय लोगों की कमाई का जरिया होती हैं या हो सकती हैं।
अब जंगल के जीवों को बफर और कोर का भेद तो पता नहीं होता तो कभी-कभी बचपन में या बुढ़ापे में वे घर यानी कि कोर से निकल कर बफर यानी घर के बगीचे में आ जाते हैं। यह भेद जानना तब और जरूरी हो जाता है जब पूरे इलाके को रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का नाम दे दिया गया हो। सामान्य तौर पर छुट्टियां बिताने वाला पर्यटक यह भेद आखिर कैसे जाने? यह सवाल मन में घर कर चुका था। उसी समय तरह-तरह के यात्रा प्रतिबंधों के चलते मैंने ३० जून को बंद होने से पहले रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान जाना तय किया, टिकट लिया और २९ जून को बाघ का एक कुत्ते को धर दबोचना आंखों के सामने देखा। १ अक्टूबर को उद्यान खुलने वाले दिन जाना भी तय कर चुकी थी। अब अक्टूबर तक किसी बाघ वन का कोई कार्यक्रम नहीं था, पर ऑस्ट्रिया से आई एक मित्र ने बाघ देखने की इच्छा जताई। अपनी जानकारी यही थी कि सभी बाघ वन बरसात में बंद रहते हैं पर राजस्थान वन विभाग से पता चला कि जोन 6, 8 और 9 खुले रहते हैं। हमने वेबसाइट के जरिए टिकट ले लिए। हमारे दोनों दिन के टिकट जोन 6 के लिए ही थे। जब जिप्सी दूसरी दिशा में मुड़ी, तब जाना कि जोन 6 तक पहुंचने में पौन घंटा लगेगा। यानी जोन 9 और 10 तो और भी दूर! जैसे ही हम निकले एक शिल्प केंद्र दिखा। बताया गया कि वहां से सिर्फ सफारी के टिकट दिए जाते हैं और हस्तशिल्प की कुछ दुकानें मुख्य राष्ट्रीय उद्यान खुलने पर ही नियमित चलती हैं। सवाल कौंधा कि यह शिल्प केंद्र कहीं भी कैसे चल सकता है? जोन 6 में मुझे एकाएक याद आया कि इस तरफ वाले जंगल में मैं तब आई थी जब इसे मानसिंह अभयारण्य के नाम से विकसित किया गया था। तब जाना कि ठीक दस साल पहले कोर के साथ बफर जोड़ कर पूरे क्षेत्र को रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान नाम दे दिया गया था। वेबसाइट पर इसकी कोई जानकारी नहीं है। अनजान लोग जब बुकिंग कराते हैं तो ज्यादातर जोन 1 से 5 को महीनों पहले ही बुक किया हुआ पाते हैं। फिर वे जोन 6 से 10 तक में जगह पा कर खुश भी हो जाते हैं। मेरा मानना है कि कोर क्षेत्र से बाहरी इलाके के लिए, जहां बाघ नजर आने की संभावना कम है और अच्छी-खासी दूरी भी तय करनी होती है, टिकट की दर कम की जानी चाहिए।
बहरहाल, रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का जंगल इस छोर से उस छोर तक प्रकृति की सुंदरता की अलग-अलग तस्वीरों से आपका दिल लुभाएगा, यह बात पक्की है। हमें बाघ तो नहीं, पर भालू दिखे, उल्लू दिखे और बरसात में दूसरे राज्यों से आने वाली कई तरह की चिडिय़ां। लौटते समय सोच रही थी कि देश की शान रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के जोन 6 से 10 तक का मार्ग जो सूअरों और कचरे के बीच से निकलता है क्यों नहीं साफ-सुथरा और सुंदर बनाया जा सकता है। हैरानी तो हाइवे पर गायों के जमावड़े को देख कर हुई। ऐसा तो किसी भी हाइवे पर अब तक नहीं देखा था। ऐसा लगा मानो हाइवे न होकर गाय-वे हो!