
अमरीका में डॉनल्ड ट्रंप शासन की वापसी के बाद कई मोर्चों पर चिंता बढ़ गई है। रेसिप्रोकल टैरिफ ने तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बढ़ाई ही है, मनमाने तरीके से वीजा रद्द करने से वहां बड़ी संख्या में भारतीयों के साथ अन्य देशों से गए विद्यार्थी भी डरे हुए हैं। कई छात्रों को उनका वीजा रद्द होने के मेल भेजने के साथ ही उन्हें तुरंत अमरीका छोडऩे के लिए भी कहा गया है। इनमें से कुछ पर ओवरस्पीडिंग, शराब पीकर गाड़ी चलाने और चोरी जैसे अपराध के केस दर्ज थे। मामला निपटने के बाद भी इनके आधार पर उनका वीजा कैंसिल कर दिया गया है। अमरीकी प्रशासन ने छात्र आंदोलनों में शामिल कुछ विद्यार्थियों को भी ईमेल भेजकर देश छोडऩे को कहा था। कई विद्यार्थियों का वीजा सोशल मीडिया पोस्ट साझा करने पर ही समाप्त कर दिया गया। ऐसे विद्यार्थियों को देश न छोडऩे की स्थिति में हिरासत में लेने की चेतावनी भी दी गई थी। इजरायल पर हमास के हमले के बाद इजरायली सेना ने गाजा में जबरदस्त बमबारी की थी, जिसके बाद अमरीकी कॉलेजों में विद्यार्थियों ने इसका विरोध किया था। ऐसे विदेशी विद्यार्थियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद सरकारी नीतियों का विरोध करने वालों के साथ सख्ती हुई है। असल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैरोकार रहा अमरीका खुद इस मामले में उदार नहीं है। अमरीका का दोहरा रवैया अक्सर सामने आ ही जाता है। वह खुद को स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के एक मजबूत समर्थक के रूप में देखता है, पर अक्सर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दोहरा रवैया अपनाता है। शीत युद्ध के दौरान अमरीका ने तत्कालीन सोवियत संघ के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे कई तानाशाहों का समर्थन करने में गुरेज नहीं किया। अमरीका अक्सर अपने प्रतिद्वंद्वियों जैसे चीन और ईरान में मानवाधिकारों के उल्लंघन की कड़ी आलोचना करता है, लेकिन वह सऊदी अरब जैसे अपने सहयोगियों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति नरम रुख अपनाता है। आतंकवाद को लेकर दोहरा रवैया अपनाते हुए भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के समर्थन में भी वह लगातार खड़ा रहा। आंखें तब खुलीं जब आतंकियों ने अमरीका के ट्विन टावरों को निशाना बनाया।
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष अमरीकी विदेश नीति में दोहरे रवैये का एक और उदाहरण है। अमरीका इजरायल का कट्टर समर्थक रहा है और उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई ऐसे प्रस्तावों को वीटो किया, जो इजरायल की आलोचना करते हैं। दूसरी ओर वह फिलिस्तीनियों के प्रति आलोचनात्मक रहकर उनकी शिकायतों की तरफ खास ध्यान नहीं देता। अमरीका को चाहिए कि जिन मूल्यों का वह समर्थन करता है, उन पर सदैव अडिग रहे ताकि विश्व समुदाय के बीच उसकी विश्वसनीयता बनी रहे।
Updated on:
09 Apr 2025 03:44 pm
Published on:
09 Apr 2025 03:43 pm
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