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संपादकीय : सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की अनूठी पहल

नामांकन बढ़ाने के तमाम प्रयासों के बावजूद निजी क्षेत्र के दबदबे के बीच सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिला कराने से राजी करना आसान नहीं रह गया। पिछले कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों में नामांकन घटने का सिलसिला बना हुआ है। शिक्षा मंत्रालय की एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (यूडीआइएसई) की रिपोर्ट के अनुसार शैक्षणिक […]

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जयपुर

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Anil Kailay

Feb 25, 2025

नामांकन बढ़ाने के तमाम प्रयासों के बावजूद निजी क्षेत्र के दबदबे के बीच सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिला कराने से राजी करना आसान नहीं रह गया। पिछले कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों में नामांकन घटने का सिलसिला बना हुआ है। शिक्षा मंत्रालय की एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (यूडीआइएसई) की रिपोर्ट के अनुसार शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में देश के प्री-प्राइमरी से 12वीं तक स्कूलों में नामांकित विद्यार्थियों की कुल संख्या 26.4 करोड़ थी जो 2023-24 में 6 प्रतिशत गिरावट के साथ 24.8 करोड़ रह गई। सीधे तौर पर इन चार वर्षों में नामांकित विद्यार्थियों की संख्या 1.60 करोड़ कम हो गई। इस दौरान स्कूलों की संख्या में भी 37 हजार की गिरावट आई है।

निजी विद्यालयों के मुकाबले संसाधनों की कमी और अभिभावकों के निजी विद्यालयों के प्रति बढ़ते रुझान के बीच कर्नाटक में एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक ने स्वागत योग्य अनूठी पहल की है। स्कूल में दाखिला लेने वाले प्रत्येक नए विद्यार्थी के लिए उन्होंने अपनी निजी आय से एक हजार रुपए की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) कराने का निर्णय किया है। निश्चित ही इस तरह का प्रयास शिक्षा के प्रति संस्था प्रधान की प्रतिबद्धता ही कहा जाएगा। यह सराहनीय प्रयास बच्चों और अभिभावकों को सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित करने में सहायक होगा। क्योंकि इस पहल के पीछे आर्थिक प्रोत्साहन के साथ-साथ शिक्षा के प्रति जागरूकता का भाव भी है। इसके बावजूद चिंताजनक पहलू यह भी है कि सरकारी स्कूल लंबे समय से कमोबेश देश के हर हिस्से में उपेक्षा का शिकार बने हुए हैं। बुनियादी सुविधाओं की कमी, अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रति आकर्षण और पढ़ाई-लिखाई के आधुनिक तौर-तरीकों का अभाव जैसे कुछ कारण ऐसे हैं जो सरकारी स्कूलों का नामांकन लगातार घटाते जा रहे हैं। असली सवाल यह भी है कि आखिर प्रशिक्षित शिक्षकों के बावजूद सरकारी स्कूल नामांकन मेंं क्यों पिछड़ते जाते हैं?

हालांकि जहां कहीं जागरूक व समर्पित शिक्षक हैं, वे सरकारी स्कूलों को भी अपने-अपने तरीके से बेहतर बनाने में जुटे हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के शिक्षकों के व्यक्तिगत प्रयास अपनी जगह हैं, लेकिन सरकार को भी इन स्कूलों की दशा सुधारने की दिशा में काम करना चाहिए। बेहतर बुनियादी ढांचा, पुस्तकालय, खेल के मैदान, शौचालय और स्वच्छ पेयजल के साथ स्मार्ट क्लास व ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म इन स्कूलों में नामांकन बढ़ाने वाले प्रयासों में हो सकते हैं।