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Patrika Opinion: पठन-पाठन के सामान्य माहौल पर जोर जरूरी

कोरोना काल के दौरान करीब दो साल तक शिक्षा व्यवस्था प्रभावित रही। स्कूल लंबे समय तक बंद रहे, परीक्षाएं रद्द करनी पड़ीं और विद्यार्थियों के सामने ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था।  

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Patrika Desk

May 14, 2023

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

पठन-पाठन की सामान्य लय टूटने का क्या असर होता है, यह इस बार सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के नतीजों से स्पष्ट हो गया है। पिछले साल के मुकाबले 10वीं के नतीजे 1.28 फीसदी, जबकि 12वीं के 5.38 फीसदी कम रहे। कक्षा 12वीं के नतीजों में गिरावट ज्यादा चिंताजनक है। यह परीक्षा उन विद्यार्थियों ने दी थी, जिन्हें कोरोना काल में 10वीं की परीक्षा दिए बगैर प्रमोट कर दिया गया था। कोरोना काल के दौरान करीब दो साल तक शिक्षा व्यवस्था प्रभावित रही। स्कूल लंबे समय तक बंद रहे, परीक्षाएं रद्द करनी पड़ीं और विद्यार्थियों के सामने ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था।

ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था प्रतिकूल हालात में फौरी विकल्प हो सकती है, यह नियमित कक्षाओं की पढ़ाई-लिखाई की बराबरी नहीं कर सकती। भौतिक रूप से जब विद्यार्थी और शिक्षक कक्षा में मौजूद होते हैं, तभी शिक्षण का माहौल बनता है और शिक्षण से इतर दूसरी गतिविधियों का भी। कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई ने इन दोनों के विकल्प को सीमित कर दिया। इसी का परिणाम 10वीं और 12वीं के नतीजों में गिरावट के रूप में सामने आया है। इस साल बोर्ड परीक्षा तो सामान्य प्रारूप में लौट आई, विद्यार्थी अब तक कोरोना काल से पहले की मनोदशा में नहीं लौट पाए हैं।

हालांकि 10वीं में 93.12% व 12वीं में 87.33% विद्यार्थी पास हो गए, सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज ने माना है कि इस बार के नतीजे ‘आदर्श’ नहीं रहे। उनके मुताबिक किसी विद्यार्थी ने 100 परसेंटाइल हासिल नहीं किए। इस बार 90त्न से ज्यादा अंक लाने वाले बच्चों की संख्या भी पिछले साल के मुकाबले कम है और कंपार्टमेंट परीक्षा देने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है। इस बार सीबीएसई की यह पहल जरूर सराहनीय है कि उसने न तो मेरिट लिस्ट जारी की और न ही नतीजों में प्रथम-द्वितीय-तृतीय का वर्गीकरण किया। ऐसा बच्चों में अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए किया गया। हालांकि एक वर्ग इस पहल की यह कहकर आलोचना कर रहा है कि इससे बच्चों में उच्च अंकों की लालसा पर असर पड़ सकता है।

नतीजों में गौर करने वाला पहलू यह भी है कि रीजन के हिसाब से त्रिवेंद्रम 99.91% नतीजे के साथ अव्वल रहा है, जबकि बेंगलूरु (98.64%) और चेन्नई (97.4%) क्रमश: दूसरे-तीसरे नंबर पर रहे। यानी दक्षिणी राज्यों के स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई काफी हद तक कोरोना काल से पहले के माहौल में लौट आई है। देश के बाकी हिस्सों में भी इस माहौल की जल्द से जल्द बहाली की कोशिशें तेज की जानी चाहिए। विद्यार्थियों का एक-एक साल कीमती होता है। किसी एक साल का झटका उनकी आगे की दिशा और दशा पर असर डालता है।