अर्ली वोटिंग का है यहां प्रावधान, इस पर उठ रहे हैं लगातार सवाल
धोखाधड़ी की बहस को भी जिंदा रखा हुआ है। बहुत से जानकारों ने फर्जी मतदान की आशंका व्यक्त की है। इसी क्रम में एक अहम विषय गैर-नागरिकों की वोटिंग का भी है। इन चुनावों में कमला हैरिस, पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से जरा सी ही बढ़त बनाए हुए है। इसलिए वोटों में गड़बड़ी की बहस ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है। चुनाव परिणाम के बाद भी यह मुद्दा बना रहेगा।
Donald Trump and Kamala Harris in US Presidential Elections
‘अमरीका बनाम अमरीका’ पुस्तक के लेखक द्रोण यादव का अमरीका के चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण
अमरीका के चुनाव भले ही 5 नवंबर को होने हैं, लेकिन मतदाता मेल-इन-बैलेट अथवा अर्ली वोटिंग के माध्यम से लगातार अपने मताधिकारों का प्रयोग कर रहा है। पूरे देश में अभी तक 1.5 करोड़ से अधिक मेल-इन-बैलेट व अर्ली वोटिंग के आवेदन हुए हैं, जिनमें से 20 लाख से अधिक अपना वोट डाल चुके हैं। दरअसल, अमरीका के 50 राज्यों में से वाशिंगटन डीसी सहित करीब 35 राज्य राष्ट्रपति चुनावों में मतदान की तय तारीख से पहले भी वोट देने का अवसर देते हैं जिसे मेल-इन-बैलेट व अर्ली वोटिंग कहा जाता है। इस सुविधा का वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में कोविड महामारी के चलते अमरीकी वोटरों द्वारा भरपूर प्रयोग किया गया था। रिपब्लिकन प्रत्याशी डॉनल्ड ट्रंप ने यह कहकर इस प्रक्रिया का पुरजोर विरोध किया था कि इसमें धोखाधड़ी की आशंका रहती है। इसलिए वोट देने का केवल एक ही दिन तय होना चाहिए।
ट्रंप के विरोध के बावजूद इस बार रिपब्लिकन पार्टी ने अपने वोटरों को न केवल अधिक से अधिक मात्रा में वोटिंग के लिए रजिस्टर करवाने के लिए प्रेरित किया बल्कि मेल-इन-बैलेट और अर्ली वोटिंग की सुविधा का प्रयोग करने का भी आह्वान किया। हाल ही में सबसे महत्त्वपूर्ण व निर्णायक राज्यों में से एक, पेंसिलवेनिया, में ट्रंप ने एक सभा को संबोधित किया। ट्रंप कैंपेन के सबसे बड़े आर्थिक सहायकों में से एक एलन मस्क ने भी इसमें शिरकत की और वहां मौजूद लोगों से आह्वान किया कि अधिक से अधिक मात्रा में समय रहते अपने आप को वोटिंग के लिए रजिस्टर करवाएं और अधिक से अधिक संख्या में मतदान करें। यह तो साफ है कि रिपब्लिकन पार्टी अर्ली वोटिंग पर अपनी लगाम ढीली छोडऩे का नुकसान इस बार नहीं उठाना चाहती और इस उम्मीद में है कि पिछली बार बहुत कम फासले से हारे निर्णायक राज्यों में कुछ बढ़त हासिल कर पाए। मेल-इन-बैलट, अर्ली वोटिंग व गैर-नागरिक वोटों को लेकर अमरीका में लगातार बहस होती रही है। अर्ली वोटिंग के समर्थकों का मानना है कि यह न केवल एक ऐसा माध्यम है जो वोटरों को सरलता से वोट करने का अवसर प्रदान करता है बल्कि उन लोगों को भी अपने अधिकार का प्रयोग करने का मौका देता है जो किसी कारणवश चुनाव की तय तारीख पर वोट डालने नहीं पहुंच सकते हों। वहीं दूसरी ओर अर्ली वोटिंग का विरोध करने वाले तर्क देते हैं कि चुनाव की तय तारीख से पहले अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं जिसके आधार पर किसी प्रत्याशी को वोट देने या न देने का निर्णय प्रभावित होता है। ऐसे में समय से पहले वोट डाल देना ऐसा ही है, जैसे पूरी जानकारी जाने बिना सामान खरीद लेना।
मेल-इन-बैलेट या अर्ली वोटिंग के लिए सभी राज्यों की अपने अलग नियम कायदे हैं और अपनी अलग समय सीमा है। जहां एक ओर वर्जीनिया, मिनेसोटा और साउथ डकोटा जैसे राज्यों में अर्ली वोटिंग की शुरुआत 20 सितंबर से ही हो गई थी, वहीं केंसास, आयोवा और रोड आइलैंड में इसकी शुरुआत 16 अक्टूबर को होनी है। इस क्रम में अर्ली वोटिंग शुरू करने वाला अंतिम राज्य केंटकी है, जहां 31 अक्टूबर तारीख तय की गई है। अर्ली वोटिंग की प्रक्रिया का प्रयोग कर वोटर ख़ुद पोलिंग बूथ पर जाकर या मेल के माध्यम से अपना वोट डाल सकते हैं। कुछ राज्यों में अर्ली वोटिंग करने के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिकार का प्रयोग करने के लिए कोई उचित कारण दिया जाए जिसके अनुसार उनके अर्ली वोटिंग के आवेदन पर विचार किया जाएगा। वहीं दो दर्जन से भी ज्यादा राज्य ऐसे हैं, जहां सभी वोटर अर्ली वोटिंग का प्रयोग कर सकते हैं। वाशिंगटन उन चंद राज्यों में से एक है जो सभी वोटरों को मेल-इन-बैलेट की सुविधा देता है।
वोटिंग को लेकर सभी राज्यों के अलग-अलग कानून, अर्ली वोटिंग और मेल-इन-बैलेट के इन नियमों ने अमरीकी चुनाव में धोखाधड़ी की बहस को भी जिंदा रखा हुआ है। बहुत से जानकारों ने फर्जी मतदान की आशंका व्यक्त की है। इसी क्रम में एक अहम विषय गैर-नागरिकों की वोटिंग का भी है। इन चुनावों में कमला हैरिस, पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से जरा सी ही बढ़त बनाए हुए है। इसलिए वोटों में गड़बड़ी की बहस ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है। चुनाव परिणाम के बाद भी यह मुद्दा बना रहेगा।
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