23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जन धन से जन विश्वास तक: वित्तीय समावेशन की क्रांति

वी.अनंत नागेश्वरन, (लेखक भारत सरकार के मुख्य आर्थि· सलाहकार हैं)

3 min read
Google source verification

वित्तीय समावेशन सतत विकास की एक अनिवार्य शर्त है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि वर्ष 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 7 इसे दुनियाभर में समावेशी विकास के लिए एक प्रमुख कारक के रूप में मानते हैं। वित्तीय समावेशन की दिशा में पहला कदम बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने से शुरू होता है क्योंकि बैंक खाता औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।

इसलिए वित्तीय समावेशन के लिए स्पष्ट और संरचित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि शुरू से ही इस सुविधा से वंचित लोगों तक बैंकिंग सेवाओं का विस्तार किया जा सके। इस सिद्धांत को व्यवहार में लाने के लिए, लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी के पहले संबोधन में प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाय) की घोषणा की गई, जिसे राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन मिशन के अंतर्गत 28 अगस्त 2014 को औपचारिक रूप से शुरू किया गया। इस मिशन का विजन ‘मेरा खाता, भाग्य विधाता’ के नारे में समाहित था। इसका उद्देश्य गरीबों और लंबे समय से वंचित वर्ग के लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाना, औपचारिक बैंकिंग प्रणाली तक उनकी पहुंच को साकार करना और यह सुनिश्चित करना था कि वे भारत की विकास गाथा के हितधारक और लाभार्थी बनें। जन धन खातों ने लाभार्थियों को न्यूनतम कागजी कार्रवाई और सरलीकृत केवाईसी/ई-केवाईसी प्रक्रियाओं के साथ जीरो-बैलेंस और शून्य-शुल्क वाले खाते खोलने की अनुमति दी। इसके अंतर्गत रुपे डेबिट कार्ड पर दो लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर और दस हजार रुपए तक ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी दी गई है।

प्रधानमंत्री जन धन योजना ने अपनी शुरुआत के बाद से अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 और 2017 के बीच भारत में खाताधारकों की संख्या में 26 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि दर दर्ज की गई, जिसका श्रेय दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन अभियान-पीएमजेडीवाय को दिया जा सकता है। यह वैश्विक खाता वृद्धि (6.57) से लगभग चार गुना अधिक है और इसी अवधि के दौरान विकासशील देशों (7.27) की तुलना में तीन गुना अधिक है। 8 अगस्त 2025 तक 56 करोड़ से अधिक जन धन खाते खोले जा चुके हैं, जिनमें से लगभग 67 प्रतिशत ग्रामीण और अर्ध-शहरी केंद्रों में स्थित बैंक शाखाओं में हैं। इस योजना ने लैंगिक असमानताओं को भी स्पष्ट रूप से पाट दिया है – पीएमजेडीवाय के 55 प्रतिशत से अधिक खाते यानी 31 करोड़ से अधिक खाते महिलाओं के पास हैं। इसके अलावा, जन धन खाते सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पंजीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं। हाल के संसदीय आंकड़ों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाय) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाय) के तहत लगभग एक-तिहाई नामांकन पीएमजेडीवाय से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री जन धन योजना भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की आधारशिला के रूप में भी उभरी है। इसने भुगतान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाया है और लाखों लोगों को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ा है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की सफलता को आधार प्रदान करते हुए, पीएमजेडीवाय ने पारदर्शिता को बढ़ाया है, कल्याणकारी वितरण में लीकेज को कम किया है और सरकारी योजनाओं में विश्वास को मजबूत किया है। आधार और मोबाइल कनेक्टिविटी के साथ जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) ट्रिनिटी पूरे भारत में डिजिटल भुगतान को व्यापक रूप से अपनाने में सहायक रही है। जन धन खातों और यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) के बीच तालमेल ने अनौपचारिक क्षेत्र के छोटे और सीमांत उद्यमियों को व्यवसाय करने के लिए औपचारिक वित्तीय चैनलों तक पहुंच प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाया है। वर्ष 2021 की एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट में पाया गया कि जनधन खातों में ज्यादा जमा राशि वाले राज्यों में अपराध की घटनाओं में कमी देखी गई और जिन राज्यों में प्रधानमंत्री जनधन योजना खाता ज्यादा खुले हैं, वहां शराब और तंबाकू जैसे नशीले पदार्थों के सेवन में महत्त्वपूर्ण कमी दर्ज की गई। बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच अब जब साकार होने की ओर है, ऐसे में आगे की चुनौती वित्तीय समावेशन को और गहरा करने की है। उत्साहजनक रूप से, आरबीआई का वित्तीय समावेशन सूचकांक इस दिशा में निरंतर प्रगति को दर्शाता है। वित्तीय समावेशन के तीन आयामों – पहुंच (35 प्रतिशत), उपयोग (45 प्रतिशत) और गुणवत्ता (20 प्रतिशत) – से संबंधित जानकारी को समाहित करने वाला यह समग्र सूचकांक 2021 में अपनी शुरुआत के बाद से लगातार बढ़ रहा है और मार्च 2024 तक 67.0 तक पहुंच गया है। इस पैमाने पर जहां शून्य पूर्ण बहिष्कार और 100 पूर्ण समावेशन को दर्शाता है, भारत का निरंतर शीर्ष की ओर बढ़ना देशभर में वित्तीय समावेशन के गहन और व्यापक होने को रेखांकित करता है।

बैंकिंग सेवाओं से वंचित लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाने में प्रधानमंत्री जन धन योजना की सफलता, एक बार की उपलब्धि नहीं है। यह गहन वित्तीय समावेशन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

योजना की स्थिति
→ शुरुआत : 28 अगस्त 2014
→ वित्तीय समावेशन सूचकांक : मार्च 2024 तक 67.0 पर पहुंचा

अब तक 56 करोड़ से अधिक खाते खुले (8 अगस्त 2025 तक)
इनमें 67% खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में
55% से ज्यादा खाते महिलाओं के नाम