सामयिक: चीन के लिए यह पचा पाना बेहद मुश्किल है कि अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता में भारत की अग्रणी भूमिका रही
डॉ. श्रीकांत कोंडापल्ली
डीन, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
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नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के बाद, चीन अब एक ऐसी विश्व व्यवस्था के उद्भव पर गंभीरता से विचार कर रहा होगा जो उसके हाथ से फिसलती हुई दिख रही है। महामारी के बाद की दुनिया में पूर्व और पश्चिम के बीच विभाजन और उत्तर-दक्षिण के मुद्दों पर मतभेदों से उबरते हुए भारत अब अधिक समावेशी, बहुपक्षीय क्षेत्रीय और वैश्विक व्यवस्था लाने की कोशिश कर रहा है।
अधिकांश संकेतकों के मुताबिक अभी तक चीन जी-20 की गतिविधियों के केंद्र में था। 19 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था, 1980 से 2010 तक 10 प्रतिशत औसत विकास दर और पिछले दशक में 7 प्रतिशत से अधिक की औसत वृद्धि ने चीन को जी-20 क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया था। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा दिए गए विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए चीन ने जी-20 के सदस्य देशों के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक होने का स्थान हासिल किया है। बीते दो दशकों में चीन ने वैश्विक व्यापार, निवेश, वित्तीय स्थिरता और सतत विकास पर होने वाली जी-20 की चर्चाओं को भी प्रभावित किया है। पर अब यह परीकथा खत्म होती नजर आ रही है, क्योंकि चीन ने समय से पहले अपने दांत दिखाना शुरू कर इन फायदों से खुद को दूर कर लिया है। चीन की विकास दर पिछले वर्ष लगभग 3 प्रतिशत पर आ गई। आंशित रूप से कारण रहे द्ग निर्यात की बजाय घरेलू उपभोग पर जोर देने के लिए घरेलू आर्थिक पुनर्गठन, आयात की बजाय ‘मेड इन चाइना 2025’ अभियान और वुहान में उत्पन्न हुई विनाशकारी महामारी। उसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों ने भी डब्ल्यूटीओ के तहत किए गए वादों के विरुद्ध मार्केट इकोनॉमी में कमी, नरम संरक्षणवादी नीतियों, गैर-टैरिफ पाबंदियों और मुद्रा में हेरफेर को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
कोविड महामारी, यूक्रेन युद्ध, यूएस-चीन में ‘अलगाव’ व अन्य राजनीतिक चुनौतियों को लेकर बीजिंग ने व्यापक व पारदर्शी प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, जिससे भारत जैसे अन्य देशों के उभरने का मार्ग प्रशस्त हुआ और चीन और अन्य पर्यवेक्षकों की कई आपत्तियों के बावजूद, जी-20 का दिल्ली घोषणापत्र सर्वसम्मति से मंजूर हुआ।
सबसे पहले इसमें यूक्रेन पर बयान अहम रहा। अमरीकी राजनयिकों ब्लिंकन, येलेन, किसिंजर और रायमोंडो की चीन यात्रा के बावजूद बीजिंग के रुख में कोई नरमी नहीं आई, जबकि बड़ी संख्या में विकासशील देशों पर यूक्रेन युद्ध के असर के संदर्भ में आज स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं। दूसरा बिंदु रहा राष्ट्रपति के स्थान पर प्रधानमंत्री ली कियांग का प्रतिनिधित्व करना और अपने संक्षिप्त भाषण में चीन की ‘साझा नियति वाले समुदाय’, ग्लोबल डवलपमेंट इनिशिएटिव, ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव व ग्लोबल सिविलाइजेशनल इनिशिएटिव का बखान करना, जिनमें से एक का भी जी20 देशों ने समर्थन नहीं किया है। कारण, चीन इन तमाम पहलों के माध्यम से दीर्घकालिक प्रभुत्व की कोशिशों की शुरुआत करता नजर आ रहा है। तीसरा बिंदु है अगले माह प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) की तीसरी शिखर बैठक की प्रगति को लेकर आशंकाएं। जबकि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (आइएमईसी) की घोषणा में डिजिटल कनेक्टिविटी के अलावा बंदरगाह, सडक़, रेलवे और हाइड्रोजन पाइपलाइन पर सभी देशों के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की व्यवस्था है।
चौथा बिंदु, चीन के लिए यह पचा पाना बेहद मुश्किल है कि भारत जी-20 में अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने में सहायक बना। पांचवां बिंदु, जी-20 ने ‘डेट सर्विस सस्पेंशन इनिशिएटिव’ (डीएसएसआइ) और ‘कॉमन फ्रेमवर्क फॉर डेट ट्रीटमेंट्स’ की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य अधिक ऋण भार तले दबे विकासशील देशों के लिए ऋण से राहत और ऋण पुनर्गठन के विकल्प उपलब्ध कराना है। कर्ज का यह मामला इतना महत्त्वपूर्ण है कि अफ्रीकन यूनियन के लगभग आधे सदस्य देश कर्ज में डूबे हैं, वह भी ज्यादातर चीन के सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों के। इस समस्या का हिस्सा होने के कारण अब चीन पर तलवार लटकती नजर आ रही है।
(द बिलियन प्रेस)