बच्चों को बदलाव का प्रभावी माध्यम माना जाता है, क्योंकि वे अपने घर और समाज तक संदेश लेकर जाते हैं और उन्हें इस अच्छी आदत को अपनाने में मदद करते हैं। इसके लिए अनुकूल माहौल प्रदान करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों व स्कूलों को पानी, हाथ धोने की सुविधा और साबुन की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही हाथ धोने के विभिन्न चरणों का प्रदर्शन करना होगा। यही निर्णायक घड़ी मानी जाती है, जब जानकारी को व्यवहार में लाना आवश्यक है।
जल जीवन मिशन के तहत हर घर को पानी की पाइप लाइन से जोडऩे का कार्य प्रगति पर है। इसमें आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूल और आवासीय स्कूल को प्राथमिकता दी गई है। दूरदराज के इलाकों में जहां पानी की कमी है, वहां हाथ धोने के लिए एक बाल्टी पानी व साबुन की व्यवस्था भी कारगर उपाय है। रोजमर्रा की दिनचर्या के दौरान शौचालय उपयोग के बाद, खांसी या छींक आने के बाद और भोजन पकाने, खाना खाने, बच्चे को खिलाने से पहले हाथ धोना जरूरी है। इससे व्यक्तिगत स्वच्छता बेहतर होती है। यह बच्चों के समग्र विकास में सहायक है और उनकी स्कूल में उपस्थिति में भी सुधार आता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हाथों को साफ रखने से डायरिया के साथ ही श्वसन संबंधी बीमारियों से भी बचाव होता है। साबुन से हाथ धोना न केवल सुविधा की बात है, बल्कि जानकारी और आदत की भी बात है। इसके लिए सरकार, सिविल सोसायटी संगठनों, अकादमिक संस्थानों, फ्रंटलाइन वर्कर, देखभाल करने वालों और बच्चों सहित सभी भागीदारों के बीच समन्वय जरूरी है। इसी से इस वर्ष के ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे की थीम-‘हमारा भविष्य हमारे हाथ में है-आओ साथ मिल कर आगे बढ़ें’, सार्थक हो सकेगी।