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एआइ से बढ़ती नैतिक चिंताएं, जिम्मेदार उपयोग की आवश्यकता

कमलाकर सिंह, पूर्व कुलपति, मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल

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आज का युग तकनीक और विज्ञान का है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने जीवन के हर पहलू को तीव्रता से बदलना शुरू कर दिया है। गांव से लेकर शहर, दफ्तर से लेकर स्कूल-अस्पताल तक, हर जगह एआई की गहन पहुंच नजर आ रही है। यह तकनीक स्वास्थ्य सेवाओं में मरीजों के इलाज को तेज, सटीक और बेहतर बना रही है। शैक्षिक क्षेत्र में भी एआई ने शिक्षक और विद्यार्थियों दोनों के लिए सहायता बढ़ाई है।

कारोबार और बैंकिंग में एआई ने कागजी कार्रवाई, लोन प्रोसेसिंग, ग्राहक सेवा, जोखिम मूल्यांकन और धोखाधड़ी रोकने जैसे काम सहज कर दिए हैं। कंपनियां अब गतिशीलता, दक्षता और लागत में कमी के साथ कार्य कर रही हैं। सुरक्षा व्यवस्था में भी एआई से लैस सीसीटीवी, फेस रिकॉग्निशन और अन्य स्वचालित प्रणालियां सुरक्षा को मजबूत बनाती हैं। हर दिन 24 घंटे लगातार काम करने की क्षमता और जटिल समस्याओं के समाधान की योग्यता इस तकनीक को आधुनिक समाज की अनिवार्य जरूरत बना चुकी है। इस कारण दुनिया के सभी देशों में सरकारें और बड़ी कंपनियां एआई में भारी निवेश कर रही हैं, ताकि तकनीकी दौड़ में अग्रणी बनी रहें और मानव जीवन को बेहतर बनाया जा सके। आम नागरिक अब बैंक, अस्पताल, विद्यालय या कार्यालय में तेज़ और सटीक सेवा प्राप्त करने लगे हैं। लेकिन इस प्रगति के साथ अनेक चुनौतियां भी हैं।

मशीनों और एआई के बढ़ते उपयोग से खासकर शुरुआती और मध्यम स्तर की नौकरियां कम हो रही हैं। इससे युवा वर्ग के रोजगार के अवसर घट सकते हैं, जो सामाजिक असमानता बढ़ा सकता है। छोटे व्यवसायों के लिए एआई तकनीक की लागत बाधा बनती जा रही है, जिससे वे प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। मशीनें संवेदनशीलता, मानवीय समझ और रचनात्मकता जैसी मानवीय विशेषताओं से खाली हैं। साथ ही, एआई के निर्णयों में पक्षपात और भेदभाव के जोखिम भी हैं, जो प्रशिक्षण डेटा में निहित असमानताओं का प्रतिबिंब हो सकते हैं। गोपनीयता और डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताएं गंभीर बनी हुई हैं, खासकर जब निजी जानकारियां गलत हाथों में जाएं। इसके अलावा, आम लोगों की सोचने और समझने की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव हो सकता है यदि वे हर काम के लिए एआई पर अत्यधिक निर्भर हो जाएं।

शिक्षा में चैटजीपीटी जैसे एआई उपकरणों ने नया आयाम दिया है। ये छात्र होमवर्क, प्रोजेक्ट, परीक्षा की तैयारी और भाषा सुधार में मदद करते हैं, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है, परंतु इन पर अति निर्भरता से मौलिकता, रचनात्मकता और शैक्षणिक ईमानदारी प्रभावित हो सकती है। शैक्षिक संस्थानों को इसकी उपयोगिता के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, ताकि यह केवल सहायक उपकरण के रूप में सीमित प्रयोग में रहे और छात्रों की बौद्धिक क्षमता को प्रोत्साहित करे। हाल ही में एक चिंताजनक घटना में अमेरिका में किसी किशोर की आत्महत्या के पीछे चैटजीपीटी को जिम्मेदार ठहराने पर मुकदमा दर्ज हुआ। यह संकेत देता है कि एआई के संवेदनशील उपयोग और सुरक्षा तंत्रों में सुधार आवश्यक है, विशेषकर नाजुक मानसिक स्थिति वाले उपयोगकर्ताओं के लिए। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम तकनीक को सावधानी और पारदर्शिता के साथ अपनाएं।

भविष्य में एआई और भी परिष्कृत, संवेदनशील और मानवीय स्वरूप ग्रहण करेगा। इसका समाज के लिए लाभकारी होना इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इसे जिम्मेदारी से कैसे अपनाएं। जरूरी है कि नीति निर्धारण, शिक्षा, उद्योग और समाज में नैतिकता, जवाबदेही व समावेशिता सुनिश्चित की जाए। विशेषकर शिक्षण संस्थानों, शासकीय निकायों और उद्यमों को चाहिए कि वे एआई के जिम्मेदार उपयोग के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और नियमन बनाएं। डिजिटल असमानता को दूर करें। मानव संवेदना, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को केन्द्र में रखकर ही एआई को सक्षम सहायक उपकरण के रूप में विकसित किया जा सकता है। तकनीक का प्रसार अब रोका नहीं जा सकता, लेकिन जिम्मेदार, सजग और नैतिक समाज बनाकर ही हम इसका पूरा लाभ उठा सकते हैं। यही हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती और उपलब्धि है।