
pm narendra modi
- नरेश वारिया
कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची देखें तो चयन में पाटीदार नेताओं का दखल नजर आया। हार्दिक पटेल के समर्थन से कांग्रेस इन चुनावों मेंं सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर रही है। वर्ष 2015 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भी कांग्रेस को खासी सफलता मिली थी। इस सफलता के पीछे पाटीदार आंदोलन को अहम कारण माना गया था।
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा और कांग्रेस के लिए अस्तित्व की जंग है गुजरात के विधानसभा चुनाव। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। नए-नए चुनावी जुमलों की रचना से लोगों का मनोरंजन भी खूब हो रहा है। भाषणों में जातिवाद और सम्प्रदायवाद की बातें भी दोनों तरफ से हो रही हैं। इसीलिए दोनों ही पार्टियों ने उम्मीदवारों के चयन में भी जातिगत समीकरणों को तवज्जो दी है। खासकर आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदार समुदाय का विशेष ख्याल रखा गया है। ऐसे में लगता है कि विकास का मुद्दा पूरी तरह गायब हो गया है।
यह कटु सत्य है कि गुजरात के पिछले चुनावों में भी अधिकांश उम्मीदवारों का चयन जातिगत आधार पर ही होता रहा है। इस बार भाजपा और संघ की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में पार्टी का कोई नया प्रयोग नहीं दिखता है। दूसरी ओर कांग्रेस इस चुनाव में ‘साफ्ट हिन्दुत्व’ का इस्तेमाल करती दिख रही है। राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान हर कार्यक्रम की शुरुआत मंदिरों में दर्शन और पूजा-अर्चना से की। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत मंदिर दर्शन से की लेकिन इसमें नया कुछ नहीं। वे हर बार ऐसा करते हैं। कंग्रेस उम्मीदवारों की सूची देखें तो चयन में पाटीदार नेताओं का दखल नजर आया।
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के समर्थन से कांग्रेस इन चुनावों में सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर रही है। वर्ष 2015 में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भी कांग्रेस को खासी सफलता मिली थी। इस सफलता के पीछे पाटीदार आंदोलन को अहम कारण माना गया था। यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस वर्ष 1985 से सत्ता से दूर भी पाटीदार समाज से दूरियां बनने की वजह से हुई। दो दशक बाद पाटीदार एक बार फिर कांग्रेस की तरफ झुके हैं। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल के साथ पाटीदार आंदोलन से उभरे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेता अल्पेश ठाकोर को भी अपने साथ जोड़ा है। अल्पेश तो खुद कांग्रेस में शामिल होकर राधनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस ने अपने बनाए ‘खाम’ (के.एच.ए.एम) यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम फार्मूले से 149 सीटें जीतकर माधवसिंह सोलंकी को मुख्यमंत्री बनाने में सफलता हासिल की थी, पर यह एक इतिहास है। कांग्रेस ने खाम फार्मूले को एक तरह से पुनरावर्तन किया है। इस समय पाटीदार और ओबीसी भी जुड़े हैं। इनके जुडऩे से एक नया समीकरण एच.ए.एम.ओ.पी यानी हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम, ओबीसी और पाटीदार बनता दिख रहा है। इस नए समीकरण के बलबूते कांग्रेस सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात और आदिवासी क्षेत्रों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है।
भाजपा की ओर से सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर उम्मीदवारों के चयन में जाति को महत्व दिया गया है। एक तरफ जहां कांग्रेस मुस्लिम मतों को आधार बनाए हुए हैं, वहीं भाजपा हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के नाम ध्रुवीकरण करने में व्यस्त है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया था। गुजरात में भी इस परंपरा को जारी रखा गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषणों में आतंककारी हाफिज सईद का नाम लेना शुरू कर दिया है। इसके पहले के चुनावों में उन्होंने मियां मुशर्रफ का संबोधन कर राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व को लोगों के मन में बैठाने का प्रयास किया था और उसमें सफल भी रहे थे।
गुजरात चुनाव की घोषणा के पहले कांग्रेस द्वारा ‘विकास पागल हुआ है’ के नारे से विकास का मजाक उड़ाया गया। जवाब में भाजपा ने ‘हुं छू विकास, हुं छू गुजरात’ को मुख्य नारा बनाया। राज्य में पिछले 27 साल से कांग्रेस सत्ता से दूर है, तो 22 साल से भाजपा बहुमत से सरकार की बागडोर संभाले हुए है। किसानों को फसल का समर्थन मूल्य, बिजली का सवाल, बेरोजगारी, शिक्षकों, आंगनबाड़ी महिलाओं के वेतन का सवाल, राज्य में सार्वजनिक परिवहन की बदहाली, महंगी शिक्षा, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, नोटबंदी और जीएसटी के कारण हुए असर जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर पूर्व में आंदोलन हो चुके हैं। बावजूद इनके नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता खत्म नहीं हुई है, लेकिन इसमें कमी जरूर आई है।
अब मोदी की प्रचार सभाओं में पहले जैसी भीड़ देखने को नहीं मिलती। दूसरी ओर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की सभाओं में ठीक-ठीक भीड़ आ रही है। राहुल की सभाओं में भी पहले के मुकाबले ज्यादा भीड़ जमा हो रही है। हालांकि यह भी सच है कि सभाओं में भीड़ जमा होना, वोट की गारंटी नहीं है। किसी भी चुनाव को जीतने के लिए संगठन जरूरी होता है। भाजपा के पास पार्टी के अलावा संघ, विहिप जैसी जमीनी संस्थाओं का सहयोग है। ये संस्थाएं गुजरात में लम्बे समय से सक्रिय रहकर काम कर रही हैं। वहीं कांग्रेस की हालत संगठन के मामले में बहुत ही खराब है।
मतदाताओं को बूथ तक लाने में संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कभी-कभी जनता के रोष से भी मतदान का आंकड़ा बदलता रहता है। गुजरात के माहौल में असंतोष होने का दावा संचार माध्यम भी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव परिणाम से गुजरात ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय होगी।
Published on:
01 Dec 2017 04:15 pm
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