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विश्व का मूल शुक्र ब्रह्म

locationनई दिल्लीPublished: Apr 01, 2023 01:21:34 pm

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Gulab Kothari

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand : सृष्टि का उपादान द्रव्य पुरुष एवं स्त्री दोनों में है- रज एवं शुक्र रूप से। अत: दोनों को रेत भी कह देते हैं। एक आग्नेय रेत है, दूसरा सौम्य रेत है। शुक्र आग्नेय होने से तेज है, रेत सौम्य होने से स्नेह है। दोनों में दोनों हैं... 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' शृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-

शरीर ही ब्रह्माण्ड: विश्व का मूल शुक्र ब्रह्म
शरीर ही ब्रह्माण्ड: विश्व का मूल शुक्र ब्रह्म
Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: अग्नि-सोम ही शुक्र-शोणित हैं। अग्नि अपने चरम पर पहुंचकर सोम बन जाता है, सोम चरम पर अग्नि बन जाता है। संकोच (सोम) की चरम अवस्था ही विकास (अग्नि) की जननी है। विकास की चरम अवस्था ही संकोच है। सीमा से अतिक्रान्त (अतिक्रमण करके) स्नेह ही तेज की उत्पत्ति का कारण बनता है। सीमा भाव में आया हुआ तेज ही स्नेह रूप में परिणत हो जाता है। अग्नि केन्द्र से परिधि की ओर जाता है, सोम परिधि से केन्द्र की ओर आता है। अग्नि और सोम, के आत्मा और शरीर भेद से दो रूप होते हैं। पुरुष के भौतिक शरीर का निर्माण अग्नि से होता है, स्त्री-शरीर सोम निर्मित होता है। अग्नि की प्रतिष्ठा दक्षिण तथा सोम की प्रतिष्ठा उत्तर दिशा है। पुरुष दक्षिणांग, स्त्री वामा है। शरीर रूप में दोनों भिन्न हैं, किन्तु आत्म दृष्टि से अग्नि स्त्री का आत्मा बनता है। सोम पुरुष का आत्मा बनता है। स्त्री का आत्मा शोणित में प्रतिष्ठित है, यह आग्नेय है। पुरुष का जीवनीय रस शुक्र है जो सोम प्रधान है। दोनों अविनाभूत हैं। सम्पूर्ण जगत दोनों का समन्वित स्वरूप है।

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