शरीर ही ब्रह्माण्ड : अन्नाद् भवन्ति भूतानि
नई दिल्लीPublished: Mar 04, 2023 07:33:40 am
Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: अन्न को हम सामान्यत: खाने योग्य पदार्थ के रूप में जानते हैं। वस्तुत: अन्न की परिभाषा बहुत व्यापक है। हम सृष्टि के अभिन्न अंग हैं। अत: सृष्टि की हर रचना के साथ जुड़े हुए हैं। हम सब एक-दूसरे का अन्न भी हैं... 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' श्रृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-


शरीर ही ब्रह्माण्ड : अन्नाद् भवन्ति भूतानि
Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: सृष्टि में ऊर्जा और पदार्थ दो ही तत्त्व हैं। ये ही ब्रह्म-माया, रस-बल, पुरुष-प्रकृति, अग्नि-सोम, योषा-वृषा आदि नामों से जाने जाते हैं। हम ऊर्जा को सरस्वती कहते हैं। वह आग्नेय है। पदार्थ को लक्ष्मी कहते हैं, सोम्या है। दोनों एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं। किसी को बेटा चाहिए, किसी को नौकरी चाहिए, तो, हवन करके हम उसी सरस्वती के माध्यम से, मंत्रों के जरिए, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, मांगते हैं। लक्ष्मी और सरस्वती दो नहीं है, अंदर तो एक ही हैं।
अग्नि ही सोम बनता है। सोम ही अग्नि बन रहा है। ब्रह्म के दोनों रूप साथ चलते हैं। सरस्वती दिखाई नहीं देती। अदृश्य रूप से चल रही है। मेरे शरीर में भी तीन संस्थाएं अदृश्य हैं। मैं अपने मन, बुद्धि और आत्मा को देख नहीं सकता। शरीर दिखाई दे रहा है। सरस्वती रूप में भी परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी इन चारों में से सुनाई वैखरी ही देती है, बाकी तीनों सुनाई नहीं देती। आज का युग लक्ष्मी के पीछे दौड़ रहा है। पर लक्ष्मी जड़ है। जितने भी रूप में लक्ष्मी को देख रहे हैं, किसी में चेतना नहीं है। हमारी चेतना सरस्वती यदि लक्ष्मी के पीछे भागती है, तो हम उसको भी जड़ बना रहे हैं।