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सामाजिक समरसता के लिए ‘लंगर’ परंपरा शुरू की गुरु नानक देव ने

प्रकाश पर्व विशेष

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Nitin Kumar

Nov 27, 2023

सामाजिक समरसता के लिए ‘लंगर’ परंपरा शुरू की गुरु नानक देव ने

सामाजिक समरसता के लिए ‘लंगर’ परंपरा शुरू की गुरु नानक देव ने

जसबीर सिंह
पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग
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आज पूरा देश गुरु नानक देव का 554वां प्रकाश पर्व मना रहा है। उन्होंने भारत की सनातन परम्परा के संवाद व दूसरे की उत्कृष्टता को समझने व स्वीकार करने के सिद्धान्त को प्रोत्साहित किया। उनकी चार उदासियां (लम्बी यात्राएं) इसका प्रमाण हैं। उद्देश्य साधु संग व दिव्य भक्ति का प्रचार था। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के संतों, सूफियों, लामाओं से संवाद किया। इसी कारण उन्हें तिब्बत में नानक लामा, रूस में नानक कामदार, नेपाल में नानक ऋषि, भूटान में नानक रिपोचिया, श्रीलंका में नानकचार्या, चीन में नानक फूसा, इराक में नानक पीर, मिस्र में नानक वली, पाकिस्तान में नानक शाह व सऊदी अरब में प्रथम पातशाही वली हिंद के नामों से जाना जाता है।
भारत के इतिहास में आदिशंकराचार्य के बाद गुरुनानक देव ने 24 वर्षों में लगभग 28,000 किमी. की पदयात्रा (उदासियां) की थीं। वे इन यात्राओं के दौरान विरोधियों से भी मिले, प्रशंसकों से भी। सर्वत्र उनके मृदुल स्वभाव व सत्यशील आचरण ने विजय पाई। कटुता कहीं भी नहीं आई। देश के मध्यकाल संतों में गुरु नानक ने सुधा लेप का काम किया। यह आश्चर्य की बात है कि विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रांति लाने वाले गुरु नानक ने बिना किसी का दिल दुखाए, बिना किसी पर आघात किए नई संजीवनी धारा से प्राणीमात्र को उल्लासित भी किया व प्रेरित भी। उन्होंने उस समय तक के महान संतों व सूफियों की वाणी को समझा और आचरण में उतारा। इसी का परिणाम था कि गुरु ग्रंथ साहिब में 6 सिख गुरुओं के अतिरिक्त 30 अन्य जातियों व धर्मों के संतों की वाणी को शामिल किया गया। उन्होंने प्रतिपादित किया कि कोई भी स्त्री-पुरुष, किसी भी जाति-पंथ-वर्ग का, घर या पेशे के त्याग के बिना मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्होंने ऊंच-नीच के भेद को नकारते हुए सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए, जातियों की संकीर्ण दीवारों को तोडक़र एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन मिल-बैठ कर ग्रहण करने की ‘लंगर’ परम्परा की शुरुआत की।
आम आदमी की भाषा में लिखे व गाए जाने वाले गुरु नानक के शबद कीर्तन तीन मूलभूत त्रिरत्न सिद्धान्तों पर जोर देते हैं जैसे ईमानदारी से काम व पुरुषार्थ (कीरत करो), ईश्वर का जप (नाम जपो) और निजी सम्पत्ति को मानवता की भलाई के वास्ते बांटकर खाओ (वंड छको)। स्वयं गुरु नानक देव 1522 में करतारपुर साहिब आकर रहने लगने के पश्चात् 1539 तक खेती भी करते रहे। भावभीने और सामान्य ज्ञान से ओतप्रोत उनके सैकड़ों शबद हैं जैसे ‘रैन गवाई सोये के दिवस गवाया खाये, हीरे जैसा जन्म है कौड़ी बदले जाए।’ गुरु नानक की साधना गा-गाकर की गई साधना है जिसका महत्त्व संगीत शास्त्र के मर्मज्ञ सहज ही समझते हैं। सिख गुरुओं में शास्त्रीय संगीत की अपार समझ ही थी जिस कारण गुरु ग्रंथ साहिब की पूरी वाणी को उपयुक्त रागों में निबद्ध किया गया ताकि आध्यात्मिक संदेश संगीत के संग घुलकर आत्मा को शांति व आनंदमय शीतलता प्रदान कर सके। इसी कारण सदियों से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अर्धरात्रि के एक पहर को छोडक़र शबद कीर्तन पूरे दिन निर्बाध रूप से गाया जा रहा है।