
india america relations
- स्वर्ण सिंह, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
अपनी वुहान, काठमांडू और सोचि की यात्राओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब इंडोनेशिया के साथ सिंगापुर की पांच दिन की यात्रा पर हैं। इस बार उनका उद्देश्य भारत की 'एक्ट ईस्ट नीति' को आगे बढ़ाने के साथ-साथ भारत के हिंद-प्रशांत भू-राजनीति के समीकरणों पर अपने दृष्टिकोण को साफ करना है। इस यात्रा में सबसे अहम सिंगापुर में हो रहे 'शंगरी-ला डायलॉग' में प्रधानमंत्री का भाषण होगा। इसमें भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर चल रहे शैक्षिक आख्यानों से आगे बढ़कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ समुद्री जुड़ाव बढ़ाने की रणनीति को स्पष्ट किया जा सकता है।
वर्ष 2002 में 'शांगरी-ला डायलॉग' की शुरुआत हुई थी। आज यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के रक्षा मंत्रियों और सेनाध्यक्षों का सबसे बड़ा सालाना सम्मेलन बन चुका है। भारत के रक्षा मंत्री ने अब तक इसमें केवल चार बार ही सहभागिता की है। पिछले साल भारत को अचानक अपनी भागीदारी के निर्णय को रद्द करना पड़ा था, क्योंकि अंतिम कार्यसूची में भारत के रक्षा रा'य मंत्री सुभाष भामरे के भाषण को स्थान न देकर पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के भाषण को शामिल कर लिया गया था।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री के भाषण में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ सामरिक साझेदारी की आधारशिला रखने का प्रयास होगा। शनिवार को यात्रा से लौटने से पहले प्रधानमंत्री मोदी, सिंगापुर के छांगी नौसैनिक अड्डे का दौरा करेंगे। वहां वे भारत से आए शिवालिक-क्लास के आइएनएस सतपुड़ा फ्रीगेट पर जाकर भारतीय नौसेना के अफसरों और सैनिकों से भी मिलेंगे। यह भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते सैन्य प्रभाव की ओर इशारा होगा।
यात्रा के कुछ चुनौतीपूर्ण पहलू भी हैं। उदाहरण के तौर पर सिंगापुर को हाल ही में पुनर्जीवित की गई अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत की चतुष्कोणीय बैठकों पर खास आपत्ति है। ऐसे में जब भारत के प्रधानमंत्री, सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग के साथ चीन के बढ़ते वर्चस्व को लेकर भारत की चिंता साझा करेंगे, तो उनका रवैया अलग भी हो सकता है।
गौरतलब है कि अगले माह चीन के शहर छिंताओ में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और कई अन्य नेताओं से भी मिलेंगे, जिनकी बैठकों को अक्सर 'पूर्वी नाटो' का नाम दिया जाता है। यही वजह है कि 'शंगरी-ला डायलॉग' के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी अपनी भू-राजनीतिक सोच को अपने विकासात्मक दृष्टिकोण और दर्शन से मिलाकर भारत की भूमिका का अनावरण करेंगे।
उम्मीद है, इस भाषण में प्रधानमंत्री भारत की सागरमाला परियोजना का विस्तार से खुलासा करेंगे। मोदी सरकार ने सागरमाला परियोजना मार्च 2015 में शुरू की थी। इसका उद्देश्य भारत के 7500 किलोमीटर लंबे समुद्री तट के साथ-साथ 14500 किलोमीटर लंबे आंतरिक जलमार्गों का आधुनिकीकरण करना था, ताकि भारत के बड़े बंदरगाहों को आंतरिक इलाकों से जोड़ा जा सके और उन इलाकों को विकास के अवसर मुहैया कराए जा सकें।
पिछले साल श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने जब अपने देश के तटों को भी सागरमाला से जोडऩे का प्रस्ताव रखा तो इस परियोजना के जरिए भारत के पड़ोसी देशों से समुद्री जुड़ाव भी इस पर हो रहे विश्लेषणों का हिस्सा बन गया। इसीलिए, हिंद-प्रशांत देशों के साथ बढ़ते समुद्री जुड़ाव में यह भारत का पहला कदम कहा सकता है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान इंडोनेशिया के साथ रक्षा-सुरक्षा और आर्थिक हिस्सेदारी को लेकर कई संधियां हुईं। इसमें सबसे अहम इंडोनेशिया के साथ हाल ही में समाप्त हो चुकी रक्षा संधि को पुनर्जीवित किया जाना रहा। इस उपलब्धि को भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मलक्का स्ट्रेट्स में स्थित साबांग बंदरगाह को इस्तेमाल करने का आयोजन कहा जा सकता है।
सिंगापुर में प्रधानमंत्री विश्व प्रसिद्ध नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय का दौरा करेंगे और जिस स्थान पर गांधी जी की अस्थियों के एक हिस्से को विसर्जित किया गया था, वहां एक पट्टिका का अनावरण भी करेंगे। कुछ-कुछ महात्मा बुद्ध के महानिर्वाण की तरह महात्मा गांधी की अस्थियों को भी भारत और विदेश में कई स्थानों पर ले जाया गया था। इन देशों में सिंगापुर भी शामिल था।
भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक धरोहर को आगे बढ़ाते हुए कब और किस तरह भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सामरिक भागीदारी की रूपरेखा की घोषणा करेगा, इसकी अपेक्षा 'शंगरी-ला डायलॉग' में आए प्रतिनिधियों को रहेगी। क्या भारत नाटकीय रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना सैन्य प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेगा या फिर संयम और संतुलन वाली नीति से जुड़ा रहेगा?

Published on:
01 Jun 2018 09:36 am
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