
बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण की दिशा में पहल
के.एस. तोमर
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक
ब्रिक्स समूह के विस्तार पर चीन और रूस ने अग्रणी रवैया दिखाया, जबकि समूह में छह नए सदस्यों को शामिल करने के लिए सर्वसम्मति बनाने का सुझाव भारत का ही था। इन छह नए सदस्यों का मकसद सुशासन की नई वैश्विक विकासात्मक व्यवस्था विकसित करना है, जो एकधु्रवीय नहीं होनी चाहिए। विशेषज्ञों को लगता है कि विस्तारित ब्रिक्स समूह के समक्ष कई चुनौतियां हैं। इसमें पहली चुनौती यह है कि वैश्विक व्यवस्था को नया स्वरूप प्रदान किया जाए और एक बहुध्रुवीय विश्व बनाया जाए, जहां ग्लोबल साउथ की बातें सुनी जाएं और यह वैश्विक एजेंडे का केंद्र बिंदु हो। दूसरी चुनौती है, सदस्यों के अलग-अलग हित साझा हितों पर फोकस करने में कोई बाधक न बने। इसलिए, द्विपक्षीय विवाद ताक पर रखे जाने चाहिए। तीसरी, ब्रिक्स समूह पश्चिम विरोधी या चीन-रूस समर्थक नहीं होना चाहिए। चौथी, नए छह देशों का प्रवेश वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के महत्त्व का प्रतीक है। पांचवीं, ब्रिक्स अपनी अलग मुद्रा के विषय पर विचार कर सकता है, लेकिन यह तभी संभव है, जब इस पर सर्वसम्मति हो जाए और यह पश्चिम अथवा अमरीका पर लक्षित नहीं होना चाहिए। छठी, संस्थापक सदस्यों को मध्य-पूर्व व उत्तरी अफ्रीका के नए सदस्यों का सम्मान करना चाहिए। सातवीं, ब्रिक्स के जरिए भारत के पास विकासशील देशों की आवाज बनने का अवसर है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसका नतीजा यह होगा कि अंतत: भारत को सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर ब्रिक्स देशों का समर्थन मिलेगा और चीन को भी ऐसा करना ही होगा।
छह नए सदस्यों में से 4 सदस्यों (ईरान, सऊदी अरब, अर्जेंटीना और यूएई) के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। ब्रिक्स के विस्तार व आधुनिकीकरण का संदेश यही है कि विश्व के सभी संस्थानों को बदलते समय के अनुसार बदलना चाहिए और भारत ने सदा से ही ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन किया है। ईरान व सऊदी अरब के भारत के साथ प्रगाढ़ संबंध हैं और रूस भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के साथ खड़ा दिखाई देता है। भारत के दृष्टिकोण के अनुसार, नए सदस्यों के जुडऩे से हमारे सभी साझा प्रयासों को गति मिलने के अलावा एक संगठन के रूप में ब्रिक्स और मजबूत होगा। विस्तार के फैसले से बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में कई देशों का विश्वास और मजबूत होगा। सितंबर 2006 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन को मिलाकर यह समूह बना था। 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हुआ। इसके साथ ही इसे ब्रिक्स नाम मिला। ब्रिक्स कुल विश्व जनसंख्या का 41 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक जीडीपी के 24 प्रतिशत और कुल वैश्विक व्यापार के 16 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।
40 से ज्यादा देशों ने ब्रिक्स में रुचि दिखाई है, 23 ने औपचारिक रूप से सदस्यता के लिए आवेदन किया, लेकिन तय मानदंडों के आधार पर केवल छह को ही सदस्यता मिली। ईरान और सऊदी अरब को शामिल करने का श्रेय चीन-रूस गठबंधन की जोरदार अपील को दिया जा रहा है, जिसका उद्देश्य एंटी-यूएस और वेस्ट ब्लॉक बनाना है। चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौते में मध्यस्थता की थी। यूक्रेन युद्ध के कारण रूस को नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसलिए उसका चीन की ओर झुकाव है। चीन उन विभिन्न समूहों की आलोचना करता रहा है जिन्हें अमरीका ने उसके बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए बनाया है। ब्रिक्स के कई सदस्यों के चीन के साथ व्यापारिक संबंध हैं। इसलिए घाटे को संतुलित करने का मुद्दा उनके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होगा, जो ड्रैगन की स्थिति को मजबूत करता है। भारत की उपस्थिति ब्रिक्स में आधिपत्य हासिल करने की चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाए रखेगी। साथ ही दोनों देशों के प्रमुखों को शिखर सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करने का मौका मिल सकता है। विश्लेषकों का मत है कि ब्रिक्स देशों का लक्ष्य उन संयुक्तप्रयासों को बल देना होना चाहिए, जो इसके संस्थापकों की क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार एवं विकास की अवधारणा को फलीभूत कर सकें।
Published on:
28 Aug 2023 08:40 pm
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