
pm narendra modi
- ज्यां द्रेज, अर्थशास्त्री
हाल में ही लोकार्पित की गई प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाइ) में जैसा छल प्रपंच रचा गया है, उसे असाधारण कहा जा सकता है द्ग प्रधानमंत्री ने बगैर किसी खास वित्तीय प्रावधान के यह दावा कर डाला है कि पीएमजेएवाइ दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम है। ध्यान रहे कि पीएमजेएवाइ नरेंद्र मोदी सरकार की अग्रगामी स्वास्थ्य पहल के दो घटकों में से एक है। दूसरा घटक डेढ़ लाख ‘स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों’ का निर्माण करना है। वित्तमंत्री ने 2018-19 में इन केंद्रों के लिए 1200 करोड़ रुपए का आवंटन किया था यानी एक केंद्र के लिए 80,000 रुपए। यह अनिवार्यत: पुराने प्राथमिक केंद्रों को नया नाम देकर उनके ऊपर रंग-रोगन करने जैसी कवायद से ज्यादा कुछ नहीं है।
पीएमजेएवाइ के लिए 2018-19 के बजट में 2000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। यह पिछले साल राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए आवंटित 1000 करोड़ रुपए से बहुत ज्यादा नहीं है, जिसे अब पीएमजेएवाइ के भीतर समाहित कर दिया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस साल पीएमजेएवाइ के लिए कायदे से कोई नया बजट जारी नहीं किया गया है।
सरकार दावा कर रही है कि पीएमजेएवाइ के तहत दस करोड़ परिवारों में से प्रत्येक को पांच लाख रुपए का बीमा कवर दिया जाएगा। इस बीमा सुरक्षा को मुहैया कराने के लिए क्या जरूरत होगी? इसके लाभार्थी यदि पांच लाख के सालाना कोटे का एक फीसदी भी औसतन खर्च करते हैं तो सालाना खर्च 50,000 करोड़ बैठेगा। यह अनुमान काफी मोटा और संकुचित है क्योंकि लाभार्थियों के लिए बीमा के पैसे पर दावा करने की प्रक्रिया आसान रही तो योजना की असली लागत इसकी दोगुनी या ज्यादा हो सकती है। पीएमजेएवाइ पर इतना खर्च करने की सरकार की मंशा के कोई संकेत मौजूद नहीं हैं।
हालिया मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नीति आयोग के जानकारों का अंदाजा है कि अगले कुछ वर्षों में पीएमजेएवाइ का सालाना बजट 10,000 करोड़ तक बढ़ाया जा सकता है। यह योजना के मौजूदा बजट का भले पांच गुना हो, पर दस करोड़ परिवारों (यानी करीब पचास करोड़ लोग) को बीमा सुरक्षा मुहैया कराने के लिहाज से ऊंट के मुंह में जीरा है क्योंकि दस हजार करोड़ के हिसाब से पूरे साल के लिए एक परिवार पर 1000 रुपए और एक व्यक्ति पर केवल 200 रुपए का खर्च आता है। अगर आपको बताया जाए कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इस साल आपका बजट केवल 200 रुपए है तो कैसा महसूस होगा।
दरअसल, एक भ्रम रचा गया है कि इस पैसे को बीमा प्रीमियम में डालने पर गुणात्मक प्रभाव जैसा कुछ होता है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। बीमा से केवल जरूरतमंदों तक स्वास्थ्य व्यय का पुनर्वितरण हो सकता है, 200 रुपए की कीमत नहीं बढ़ जाती। सरकार यदि हर व्यक्ति के स्वास्थ्य बीमा पर 200 रुपए खर्च करेगी तो उसे स्वास्थ्य सेवा भी इतने की ही मिलेगी, वो भी यह मानते हुए कि इसकी कोई विनिमय लागत नहीं होगी।
इसके बावजूद पीएमजेएवाइ को ‘दुनिया का सबसे बड़ा सरकार पोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम’ बताया जा रहा है, जैसा कि वित्तमंत्री ने अपने बजटीय अभिभाषण में कहा था। यह भ्रामक है। ‘सबसे बड़ा’ का मतलब शायद 50 करोड़ की आबादी के कवरेज से हो, पर इतनी व्यापक कवरेज को सक्षम बनाने के लिए प्रति व्यक्ति व्यय को बहुत घटा दिया गया है। आबादी के हिसाब से देखें चाहे सार्वजनिक व्यय के हिसाब से, चीन का स्वास्थ्य सेवा तंत्र सार्विक कवरेज के मामले में भारत की तुलना में कहीं ज्यादा बड़ा है।
नेशनल हेल्थ स्टैक के कागजात देखने पर पता चलता है कि योजना की असल मंशा निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संबंधी डेटा हासिल करने में समर्थ बनाना है। सूचना प्रौद्योगिकी की भाषा में जिसे ‘क्रिएटिंग पब्लिक प्लेटफॉम्र्स’ कहते हैं (सरकारी योजना की पीठ पर सवार होकर), यह उसका एक और उदाहरण है जिसका इस्तेमाल लाभकारी एप्लीकेशन विकसित करने में किया जा सकता है। जाहिर है, वोट हासिल करने के लिए प्रति व्यक्ति व्यय न्यूनतम रख कर कवरेज अधिकतम बनाना एक अच्छी रणनीति है।
संक्षेप में कहें तो पीएमजेएवाइ, सार्विक स्वास्थ्य सेवा (यूएचसी) के लक्ष्य को महत्त्वहीन बनाने का काम कर रही है। कई देश पहले ही यूएचसी का लक्ष्य हासिल कर चुके हैं या उसके करीब हैं द्ग इनमें न केवल अमीर देश (अमरीका को छोडक़र ओईसीडी के सभी देश) हैं, बल्कि कई विकासशील देश भी हैं जैसे ब्राजील, मेक्सिको, श्रीलंका और थाइलैंड। यह ऐतिहासिक उपलब्धि है जिसका अनुकरण पूरी दुनिया कर रही है, लेकिन यूएचसी की ओर कदम बढ़ाना तो दूर, भारत में अभी इस मसले पर गंभीर विमर्श होना बाकी है।
सामाजिक बीमा जाहिर तौर से यूएचसी का एक अहम अंग हो सकता है, लेकिन पीएमजेएवाइ आज अपने प्रतीकात्मक चरित्र के बावजूद संभव है कि कल सामाजिक बीमा के एक उपयोगी उपकरण के रूप में विकसित हो सके। इसका तरीका चाहे जो हो, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय में भारी वृद्धि और प्राथमिक स्वास्थ्य अवसंरचना में क्रांतिकारी बदलाव के बगैर बहुत कुछ नहीं किया जा सकता है।

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