
कथा,भक्ति और संगीत का विलक्षण संयोजन है महालया
विनोद अनुपम राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक
ब्रह्म मुहूर्त में सुबह चार बजे पता नहीं कितनों घरों में रेडियो पर महालया सुना गया। याद है मुझे बचपन में महालया सुनने की कितनी तैयारी की जाती थी। यदि रेडियो में बैटरी कमजोर लग रही हो तो उसे बदल दिया जाता था। जिस रेडियो बैंड पर प्रसारण आना होता, रात में ही कांटे सेट कर छोड़ दिया जाता था। महालया का आकाशवाणी, कोलकाता से लाइव प्रसारित होता था और शायद सभी रेडियो स्टेशन उसे प्रसारित करते थे। उस दिन महालया की शंख की ध्वनि से ही नींद खुलती थी, जागो, तुमि जागो दुर्गा, जागो दशो प्रोहोरोनाधारिणी। अभयशोक्ति बलोप्रदायणी, तुमि जागो...। समझ तो नहीं पाते थे, लेकिन सुनते जरूर थे। शायद कुछ आध्यात्मिक अहसास मिलता हो। या फिर वह संगीत का विलक्षण जादू था, जो अवचेतन मन को प्रभावित करने में समर्थ था। यह तो काफी बाद में पता चला कि महालया के दिन ही पितरों को विदाई दी जाती है। और इसी दिन माता दुर्गा कैलाश से पृथ्वी पर पधारती हैं। महालया माता के आगमन के स्वागत में की जाने वाली प्रार्थना है।
महालया के दिन मां दुर्गा की आंखों को तैयार किया जाता है। मूर्तिकार इसमें रंग भरते हैं। वास्तव में संगीत हमारे सारे संस्कारों, सारी परंपराओं, सारे त्योहारों के साथ समन्वित है। मां दुर्गा को लेकर लोक में 'देवी गीतों' की परंपरा है, बिहार, उत्तरप्रदेश के कुछ भागों में 'पचरा गान' भी देवी को समर्पित किया जाता है। महिषासुर मर्दिनी की कथा, जो महालया के रूप में जनमानस को लगभग सौ वर्षों से प्रभावित कर रही है, प्रदर्श कला का एक समुच्चय है, जिसमें भक्ति संगीत भी है, संस्कृत श्लोक भी, कथा भी, नाटक भी और शास्त्रीय संगीत तो है ही। महालया के इस 90 मिनट के प्रसारण का मुख्य तत्त्व भक्ति है, जिसे संगीत का प्रभाव और भी सम्मोहक बना देता है। महालया का संगीत पक्ष कई मामलों में विलक्षण है। पंकज कुमार मल्लिक ने परंपरा से आगे बढ़ कर इसके लिए संगीत का संयोजन किया था। उन्होंने सबसे प्रमुखता से राग मालकौस का उपयोग किया, जिसे आमतौर पर मध्य रात्रि का राग माना जाता है। ब्रह्म मुहूर्त में इस राग के प्रयोग के लिए कहते हैं पंकज मल्लिक ने इस राग की दूसरी विशेषता, इसके आध्यात्मिक प्रभाव पर विश्वास किया। इसी तरह जागो, तुमि जागो दुर्गा... जैसी स्तुति में उन्होंने भैरवी का उपयोग किया है, जो जागरण के आह्वान के लिए जाना जाता है। महालया की गूंज आपको अध्यात्म के अथाह सागर में ले जाती है। तब के आल इंडिया रेडियो और अब के आकाशवाणी पर महालया के प्रसारण की शुरुआत 1931 से मानी जाती है, जो आज भी जारी है। जाहिर है इसे सबसे लंबे समय तक चलने वाले रेडियो कार्यक्रम के रूप में भी मान्यता मिली है।
महालया की शुरुआत लाइव प्रसारण के रूप में हुई थी, कहते हैं पूजा अनुष्ठान की तरह ही कलाकार स्नान कर पूजा के वस्त्र पहन कर ही स्टूडियो आते थे। इसकी परिकल्पना में जो कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों के नाम लिए जाते हैं, उनमें बीरेन्द्र कृष्ण भद्रा, बानी कुमार, पंकज कुमार मल्लिक और रायचंद बोराल भी हैं। बीरेन्द्र कृष्ण भद्रा आकाशवाणी के आकस्मिक कलाकार थे, जिनकी आवाज ने महालया को कालजयी बना दिया। 1966 में इसे रेकॉर्ड कर लिया गया,फिर लाइव की परंपरा खत्म हो गई। अब तो यह कई डिजीटल रूपों में उपलब्ध है। सच है समय के साथ प्रस्तुति के तरीके बदलते रहेंगे,लेकिन जब तक बुराई पर अच्छाई की कथा पर हमारा विश्वास है,अपनी परंपरा पर विश्वास है, अपने संगीत पर विश्वास है, महालया के जरिए हम ऊर्जावान होते रहेंगे।
Published on:
15 Oct 2023 08:21 pm
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