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Patrika Opinion: नेपाल से कायम रहें प्राचीन-अटूट रिश्ते

भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कडिय़ों ने सदियों से दोनों देशों को मजबूती से जोड़ रखा है। पर चीन अपनी ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना से तीसरे कोण के तौर पर उभरा है। बीते चार-पांच साल में चीन के निवेश को लेकर नेपाल में न सिर्फ राजनीतिक समीकरण, बल्कि भारत के प्रति कुछ नेताओं के सुर भी बदले हैं।

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Patrika Desk

May 28, 2023

Patrika Opinion: नेपाल से कायम रहें प्राचीन-अटूट रिश्ते

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नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड’ 31 मई से चार दिन का भारत दौरा शुरू करने वाले हैं। कूटनीतिक विशेषज्ञ इन सवालों की पड़ताल में जुटे हैं कि इस दौरे से दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों को सुलझाने की दिशा में क्या पहल होती है। भारत-नेपाल के रिश्ते हिमालय की तरह प्राचीन और अटूट हैं। भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कड़ियों ने सदियों से दोनों देशों को मजबूती से जोड़ रखा है। पर चीन अपनी ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना से तीसरे कोण के तौर पर उभरा है। बीते चार-पांच साल में चीन के निवेश को लेकर नेपाल में न सिर्फ राजनीतिक समीकरण, बल्कि भारत के प्रति कुछ नेताओं के सुर भी बदले हैं। पिछले साल नवंबर में नेपाल में चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के नेता के.पी. शर्मा ओली ने कहा था कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो भारत से कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को वापस लेकर रहेंगे। ये इलाके सदियों से भारत का हिस्सा हैं। ओली इससे पहले भी चीन के प्रति झुकाव जाहिर करते रहे हैं।

नेपाल के कुछ नेता भले ही चीन की चालाकियों की चपेट में हों, वहां की बहुसंख्यक हिंदू आबादी भारत के साथ मजबूत रिश्तों की हिमायती है। भारत और नेपाल, बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी से समान संबंध साझा करते हैं जो नेपाल में है। खुली सीमा के कारण दोनों ओर के लोग निर्बाध आवाजाही करते हैं। विवाह और पारिवारिक संबंधों के कारण भी दोनों देश ज्यादा नजदीक हैं। इस नजदीकी को रोटी-बेटी के रिश्ते के नाम से जाना जाता है। इन्हीं रिश्तों के आधार पर भारत को भरोसा है कि नेपाल की राजनीति में उसके विरोध की लहर ज्यादा दूर और देर तक कायम नहीं रह सकती। भारत यह भी बखूबी समझता है कि भू-राजनीति (जियो-पॉलिटिक्स) के लिहाज से नेपाल अहम है। इसीलिए चीन से अमरीका तक की नेपाल में दिलचस्पी है।

पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए आधा दर्जन समझौते किए गए थे। भारत आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर ज्यादा जोर इसलिए भी दे रहा है, क्योंकि 2019 में चीन वहां सबसे बड़े विदेशी निवेशक के तौर पर उभरा था। इस तथ्य के बावजूद कि भारत को नेपाल से ज्यादा नेपाल को भारत की जरूरत है, हमें अपने इस छोटे पड़ोसी देश को साधने की जरूरत है। चीन के साथ जारी सीमा विवाद के कारण भी यह जरूरी हो गया है कि नेपाल को चीन की कठपुतली बनने से बचाया जाए। भरोसेमंद द्विपक्षीय रिश्ते नेपाल और भारत के लिए ही नहीं, इस पूरे क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं।