16 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

दीदी का दबदबा

प. बंगाल का गढ़ भविष्य की राजनीति में संभावनाएं समेटे नजर आता है। लेकिन पंचायत चुनाव में बहा खून लोकतंत्र की भविष्य की राह के लिए सुखद नहीं।

2 min read
Google source verification

image

Sunil Sharma

May 19, 2018

opinion,work and life,rajasthan patrika article,

mamta banerjee

ममता बनर्जी का नाम आते ही जेहन में एक दुबली-पतली महिला की तस्वीर कौंधती है। जिसके पैरों में हवाई चप्पल, लेकिन कदमों में ऐसी आंधी है जिसके आगे पश्चिम बंगाल के पर्याय रहे वामदल अपना अस्तित्व कायम रखने का संघर्ष कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के ताजा परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं। तृणमूल कांग्रेस पर राज्य की ग्रामीण जनता ने एक बार फिर भरोसा जताया है। ग्राम पंचायत की करीब 67 फीसदी, पंचायत समिति की करीब 83 फीसदी तथा जिला परिषद की 97 फीसदी सीटें पार्टी की झोली में गई हैं।

तृणमूल कांग्रेस का लगातार दूसरी बार पंचायत चुनाव में डंका बजा है। भाजपा, माकपा और कांग्रेस क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। पिछले कुछ चुनावों से विपक्ष के तौर पर उभर रही भाजपा ने इस बार अपनी स्थिति और मजबूत जरूर कर ली है। वर्ष 1997 में कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनाने के बाद ममता ने दो दशक में अपने जुझारू तेवरों से न सिर्फ राज्य में अपनी जड़ें मजबूत की हैं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। विपक्ष की हर ईंट का जवाब वह पत्थर से देती हैं।

शारदा चिट फंड घोटाले के आरोप हों या पार्टी के कुछ सहयोगियों के पाला बदलने के पैंतरे, वह ऐसी चुनौतियों से निपटने में न तो कोई ममता दिखाती हैं, न कोई समझौता करती हैं। राज्य के पर्वतीय इलाके में हिंसा से निपटने की चुनौती हो या रामनवमी व मोहर्रम के जुलूस निकालने का मसला, उनके फैसले हर सियासी शह-मात के पार निकल जाते हैं तो उसमें टीम वर्क कम उनकी दृढ़ता की भूमिका ज्यादा होती है। यह ममता की ताकत भी है और कमजोरी भी। भाजपा को आज के दौर में यदि पश्चिम बंगाल में बहुत पसीना बहाना पड़ रहा है तो इसके पीछे दीदी का ही दम है। वह सीधे मोदी और शाह के सामने ताल ठोकती हैं।

बीते कुछ माह में ममता ने केंद्रीय राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाने के संकेत दिये हैं। नीतीश कुमार के भाजपा के पाले में जाने के बाद उनके नाम को लेकर विपक्षी खेमे में सकारात्मक सुगबुगाहट रही है। शिवसेना के उद्धव ठाकरे से मुलाकात हो, सपा प्रमुख अखिलेश से भेंट हो या बसपा सुप्रीमो मायावती से विचार-विमर्श, उनकी इन कोशिशों को भाजपाई खेमा बहुत गौर से पढ़ रहा है। इसलिए प. बंगाल का गढ़ भविष्य की राजनीति में तमाम संभावनाएं समेटे हुए नजर आता है। लेकिन इस पंचायत चुनाव में जितना खून बहा, वह लोकतंत्र की भविष्य की राह के लिए सुखद नहीं। ममता के फैसलों में वक्त के साथ परिपक्वता बढ़ी है। उम्मीद है कि इस चुनाव में मिली ताकत उन्हें बंगाल के बेहतर भविष्य के लिए प्रेरित करेगी।