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भीड़ में फंसता प्रबंधन आखिर जिम्मेदार कौन?

सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी आयोजन की सूचना पलक झपकते ही लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि जब बेंगलूरु में आरसीबी के जश्न की खबर फैली, तो स्टेडियम के बाहर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा, लेकिन प्रशासन और आयोजकों ने शायद इस तकनीकी युग की तीव्रता को नजरअंदाज कर दिया।

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बेंगलूरु में हाल ही आयोजित रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरु (आरसीबी) टीम की जीत का जश्न एक बार फिर उस कड़वे सच को उजागर कर गया, जिससे देश की व्यवस्था बार-बार आंखें मूंदती रही है—अव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन और लचर प्रशासनिक तैयारियां। जिस तरह लाखों की भीड़ चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर इकट्ठा हुई और उसके बाद मची भगदड़ में कई लोग घायल हुए और कुछ की जानें चली गईं, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह हादसा न सिर्फ एक चेतावनी है, बल्कि सवाल भी खड़ा करता है कि क्या हम अब भी भीड़ प्रबंधन नहीं सीख पाए हैं?
सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी आयोजन की सूचना पलक झपकते ही लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। यही कारण है कि जब बेंगलूरु में आरसीबी के जश्न की खबर फैली, तो स्टेडियम के बाहर लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा, लेकिन प्रशासन और आयोजकों ने शायद इस तकनीकी युग की तीव्रता को नजरअंदाज कर दिया। भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस योजना नहीं थी, आपातकालीन व्यवस्थाएं नाकाफी थीं और सुरक्षा बलों की संख्या भी अपेक्षा से बहुत कम थी। इस घटनाक्रम के लिए प्रशासन और पुलिस के साथ आयोजक, जिन्होंने हालात को देखते हुए उचित कदम नहीं उठाए। यहां प्रशासन की भूमिका जितनी महत्त्वपूर्ण है, उतनी ही जिम्मेदारी आयोजकों की भी है। जब पहले ही टीम के विजयी जुलूस को सरकार ने रद्द कर दिया था, तो स्टेडियम के कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती जानी चाहिए थी। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि आयोजकों ने महज उत्साह में आयोजन कर डाला। इस बात पर विचार ही नहीं किया कि भीड़ उमड़ी तो क्या होगा। ऐसे हादसे हमारे देश में नए नहीं हैं। कभी धार्मिक आयोजनों, कभी राजनीतिक रैलियों, रेलवे स्टेशनों और खेल आयोजनों में, हम अक्सर देखते हैं कि भीड़ के सामने व्यवस्था लाचार हो जाती है। हर बार एक जैसी प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं—दोषारोपण, जांच के आदेश और फिर सब कुछ भुला दिया जाता है। बेंगलूरु की घटना के बाद भी इस पुरानी रवायत को ही दोहराया गया है। यह वाकई चिंता की बात है।
इस घटना से हमें एक बार फिर यह समझने की जरूरत है कि भीड़ सिर्फ संख्या नहीं होती—वह एक सामाजिक, मानसिक और प्रशासनिक चुनौती भी होती है, जिसके लिए गहन योजना, पूर्वानुमान और तकनीकी सहयोग की आवश्यकता होती है। अब वक्त आ गया है कि सरकार और संबंधित एजेंसियां स्थायी रूप से भीड़ नियंत्रण नीति को अमल में लाएं, जिसमें तकनीकी सहायता, प्रशिक्षित स्टाफ, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं और ठोस संचार तंत्र शामिल हो। बेंगलूरु की यह त्रासदी भीड़ प्रबंधन की दिशा में ठोस कदम उठाने के प्रयासों को पुख्ता करने की जरूरत पर जोर देती है। अब इस हादसे को चेतावनी मानते हुए ठोस कदम उठाने होंगे।