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यादें ताजा करता ‘हाथ के पंखे’ का झलना

इस संग्रह का विचार आज से कोई 40 वर्ष पहले उपजा था। एक दिन वह एक मित्र के साथ गर्मी की दोपहर में स्टूडियो में बैठे थे कि अचानक बिजली चली गई।

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Sunil Sharma

Jun 02, 2018

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- प्रयाग शुक्ल, साहित्यकार

यह न जाने कितने हाथों में हिलता-डुलता रहा है, देश में, दुनिया के कई अन्य देशों में। कई रूपों, रंगों, आकारों में। कई तरह की रचना-सामग्री में। कपड़े, बांस, कागज, जूट आदि का बना हुआ। हिलता रहा है हाथ का पंखा, गर्मियों की तपन को हरता हुआ। एक प्रेम-रस भरता हुआ जीवन में। इसी हाथ के पंखे की एक बहुत बड़ी प्रदर्शनी महीने भर के लिए लगी हुई है, दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में। यह प्रदर्शनी सुपरिचित चित्रकार जतिन दास (जन्म:1941) के विशाल संग्रह से तैयार हुई है।

जतिन बताते हैं कि इस संग्रह का विचार आज से कोई 40 वर्ष पहले उपजा था। एक दिन वह एक मित्र के साथ गर्मी की दोपहर में स्टूडियो में बैठे थे कि अचानक बिजली चली गई। जतिन ने हाथ का पंखा उठाया, हवा करने लगे, और कहा, कुछ विनोदपूर्वक, ‘लेट मी स्टिर द स्टिल एअर’ (जरा स्थिर हवा को हिलाऊं)। वह दिन था और आज का दिन है, वह देश-दुनिया में जहां-जहां गए, हाथ के एक से एक सुंदर पंखे इकट्ठा करते रहे - दुकानों, हाट-बाजारों से लेकर, लोगों के घरों-गृहस्थियों से। किसानों-मजदूरों से। नतीजा है हजारों हाथ के पंखों का संग्रह, इस विचार के साथ कि ‘एक राष्ट्रीय पंखा संग्रहालय’ की स्थापना करनी-करानी है, जैसे भी हो, सरकारी या गैर सरकारी सहयोग से।

दरअसल, उनके विचार के पीछे यह बात तो है ही कि पंखों की परंपरा धीरे-धीरे क्षीण हो रही है। और आने वाली पीढिय़ों को यह देखने को मिलना ही चाहिए कि बिजली युग से पहले, या उसके रहते हुए भी, देश-दुनिया में कितने कुशल हाथों ने इन पंखों को रूप दिया है। यह भी कि इस ‘उपयोगी वस्तु’ के पीछे कितनी कला भी छिपी हुई है।

प्रमाण हैं ये पंखे, जिनमें कांच-कौडिय़ों से लेकर न जाने और कितनी चीजें भी जड़ी हुई हैं। वे झालरदार हैं। नक्काशीदार भी। वे बेल-बूटों वाले भी हैं। उनमें पौराणिक कथा-प्रसंग भी चित्रित हैं, और पक्षी, फूल-वनस्पतियां भी। भला कोई अंत है। असम के कुछ और तरह के हैं, और जतिन के गृह-प्रदेश ओडिशा के कुछ और तरह के। मधुबनी अंचल के और तरह के। राजस्थान के कुछ और तरह के। उस राजस्थान के, जिसमें कोमल कोठारी का स्थापित किया हुआ झाड़ू संग्रहालय भी है।

तो क्या झाड़ू, क्या पंखा, क्या कलम-दवात (जिनका एक बड़ा संग्रह किया है जयपुर के चित्रकार विनय शर्मा ने) - रोजमर्रा के व्यवहार में आने वाली चीजों की एक विशेष कलात्मक परंपरा रही है हमारे देश में। दुनिया के बहुतेरे हिस्सों में।