
मेघालय के घने जंगलों में स्थित है रहस्यमय वारी चोरा
शिवा यादव
अनसुनी कहानियां चुनता
और बुनता स्टोरीटेलर
मेघालय उत्तर पूर्व भारत में एक बहुत आकर्षक स्थान है। शिलांग और सोहरा (चेरापूंजी) जैसे शहरों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, क्योंकि वे गुवाहाटी से कुछ ही घंटों की ड्राइव पर हैं। वे रेल और विमान सेवाओं से अच्छी तरह से जुड़े हैं। यह स्वाभाविक है कि पूरे भारत और दुनिया के लोग यहां के भव्य झरनों और गुफाओं को देखने आते हैं, जो खासी पहाडिय़ों और जयंतिया पहाडिय़ों (मेघालय के दो मुख्य आदिवासी क्षेत्रों) में स्थित हैं। जो हिस्सा अब भी अज्ञात और अछूता है, वह है गारो पहाडिय़ां, जहां गारो जनजाति रहती है। इस जगह की खूबसूरती बेमिसाल है, लेकिन फिर भी इसके बारे में कोई नहीं जानता। असल में पिछले कई वर्षों से यह क्षेत्र अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर है। यह क्षेत्र अलगाववादियों से प्रभावित रहा है। पिछले 3-4 वर्षों में हालात सुधरे हैं। इससे एक जादुई स्वर्ग का रास्ता खुल गया है।
वह जगह, जहां मैं पहुंचा (वारी चोरा), एक जादुई रहस्यमय भूमि की तरह है, जो आपको एक अलग दुनिया में ले जाएगी। किसी भी अछूती जगह तक पहुंचना आसान नहीं है। वारी चोरा भी कोई अपवाद नहीं है। शिलांग से मैं अपनी बाइक से 300 किलोमीटर की दूरी पर तुरा नामक स्थान पर गया, जो कि गारो पहाडिय़ों की जिला राजधानी है। फिर 110 किलोमीटर बघमारा गया, जो कि वारी चोरा तक पहुंचने से पहले का आखिरी बड़ा शहर है। वहां से साहसिक बाइक की सवारी मुझे डबलग्रे गांव ले गई, जहां झरने के ठीक बगल में एकमात्र होमस्टे है। मेरा कमरा बांस से बना था। यह एक गहरे जंगल और आश्चर्यजनक झरने के बगल में था। होमस्टे मालिक के परिवार ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया और मेरे साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया। लग्जरी स्टे के नाम पर लोग ऐसी जगह के लिए हजारों रुपए देते हैं, लेकिन उन्होंने मुझसे एक रात के लिए सिर्फ 200 रुपए लिए। अगली सुबह हम नाव लेकर गए और एक गहरे जंगल से होते हुए 6 किलोमीटर की दूरी तय की। जोंक, जंगली जानवरों और एक बहुत ही कठिन कोर जंगल ट्रैकसे खुद को बचाते हुए हम आखिरकार वारी चोरा (चोरा नदी) तक पहुंच गए। हम नाव में सवार हुए और घाटियों की गहराई में चले गए। वहां जाकर ऐसा लगा जैसे मैं एक फिल्म में हूं और साहसिक यात्रा पर जादुई भूमि पर हूं।
गारो जनजाति के लोगों की किंवदंती के अनुसार, वारी चोरा 7 नागों से संरक्षित है और जो नदी का अनादर करता है उसे शाप मिलता है। मंत्रमुग्ध कर देने वाले अनुभव के बाद मैं अपने होमस्टे के लिए वापस चला गया, लेकिन पूरे समय चुप रहा क्योंकि मेरे दिमाग में एक असामान्य अनुभव था जिसे मैं अपने दिमाग से नहीं निकाल सका। उस समय न तो मुझे जोंकों की चिंता थी, न ही उस बारिश की, जो मुझे पूरी तरह भिगो रही थी। मुझे उम्मीद है कि अगली बार आप भी मेघालय के इस अछूते हिस्से की यात्रा करेंगे। अगली कहानी तक... खुशियां ऑलवेज!
Published on:
06 Sept 2022 06:40 pm
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