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Patrika Opinion: न्यायिक व्यवस्था में सुधार समय की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सभी हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर ऑनलाइन आरटीआइ पोर्टल शुरू करने के निर्देश दिए हैं, बल्कि बंद लिफाफों में रिपोर्ट लेने की प्रथा को खत्म करने की आवश्यकता भी जताई है।

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Patrika Desk

Mar 22, 2023

Patrika Opinion: न्यायिक व्यवस्था में सुधार समय की मांग

Patrika Opinion: न्यायिक व्यवस्था में सुधार समय की मांग

न्यायिक व्यवस्था सहज, पारदर्शी और पीडि़त पक्ष के लिए सुलभ हो, इसके लिए देश में व्यापक सुधारों की जरूरत से कोई इनकार नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ लगातार इस बात पर जोर भी देते रहे हैं। उनके पद संभालने के बाद से न्यायिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में तेजी देखी भी जा रही है। प्रधान न्यायाधीश के प्रयासों की वजह से ही हाल में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ सभी हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर ऑनलाइन आरटीआइ पोर्टल शुरू करने के निर्देश दिए हैं, बल्कि बंद लिफाफों में रिपोर्ट लेने की प्रथा को खत्म करने की आवश्यकता भी जताई है। ये प्रयास न्यायिक व्यवस्था मेें पारदर्शिता लाने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं।

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए कई कदम उठाए हैं और अदालतों की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग इस बात का बड़ा प्रमाण है। दरअसल, हमारी न्यायिक प्रक्रिया के ज्यादातर नियम-कायदे अंग्रेजों के समय की व्यवस्था से प्रभावित रहे हैं। लंबे अर्से से व्यवस्था में विभिन्न स्तरों पर सुधार की जरूरत महसूस की जाती रही है। यह सुधार न्यायपालिका के बाहर और भीतर, दोनों स्तर पर ही किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि, समय-समय पर इस दिशा में प्रयास भी होते रहे हैं, पर जस्टिस चंद्रचूड़ के प्रधान न्यायाधीश बनने के बाद से इसमें गति दिखी है।

इससे उम्मीद जगी है कि भविष्य में न्यायिक व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, सरल और सस्ता बनाया जाएगा। इसका सभी पक्षों को फायदा मिलेगा। देश में न्यायिक व्यवस्था की एक बड़ी दिक्कत यह भी रही है कि न्याय प्राप्त करना बहुत महंगा होता जा रहा है। न्याय के लिए अदालत की चौखट तक पहुंचना भी आम आदमी के बूते से बाहर होता जा रहा है। इतना ही नहीं, जटिल कानूनी दांवपेच के कारण मुकदमे बरसों से अदालतों में अटके रहते हैं। देश की अदालतों में मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। इससे न केवल न्याय में देरी होती है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था पर सवाल भी उठते हैं। माना भी जाता रहा है कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित किए जाने के समान है।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ न्यायिक सुधारों को लेकर जिस तरह गंभीर दिख रहे हैं, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि वे वकीलों की फीस को लेकर भी कोई ठोस रास्ता निकालेंगे। वास्तविकता भी है कि न्याय मांगना जितना सस्ता और सहज होगा, उससे आम पीडि़त को उतनी ही अधिक राहत मिल सकेगी। भारतीय न्यायिक व्यवस्था में सुधार समयकी बड़ी मांग भी है।