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उद्योगों और रोजगार के लिए फायदेमंद होगा नया जीएसटी

डॉ. अजीत रानाडे, वरिष्ठ अर्थशास्त्री   (द बिलियन प्रेस)

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CG News: जीएसटी कौंसिल में वोकल फॉर लोकल पर होगा फोकस, कारोबारियों ने जमा की गई राशि लौटने की मांग

आठ साल पहले संसद में विशेष मध्यरात्रि सत्र में बड़ी धूमधाम से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया गया था। इसे कर व्यवस्था में ऐतिहासिक सुधार कहा गया था। जीएसटी ने देश को एक साझा आर्थिk बाजार के रूप में जोड़ा और कई राज्यों के अलग-अलग प्रकार के कर खत्म कर दिए। केंद्र ने उत्पाद शुलk और सेवा कर छोड़ दिया तो राज्यों ने बिk्री कर, वैट और शहर दर शहर के चुंगी जैसे कर। राज्यों को इस कर समर्पण से हुए नुkसान की भरपाई का वादा किया गया था। यही 2017 के मूल अधिनियम में जीएसटी क्षतिपूर्ति प्रावधान था, जो 2022 में समाप्त हो गया। अब राज्यों को डर है कि जीएसटी में उनका कर हिस्सा तेजी से घट जाएगा।

एकीकृत राष्ट्रीय कर प्रणाली लागू होने से वैट, प्रवेश कर और चुंगी समाप्त हो गए। पहले राज्य अपनी जरूरत के हिसाब से कर दरें बदल सकते थे। अब उनकी स्वतंत्रता सीमित हो गई है। आठ साल के द्विपक्षीय प्रयासों के बाद भी जीएसटी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में जीएसटी के नए सुधारों की घोषणा की है, जिनका मकसद मध्यम वर्ग और छोटे उद्योगों पर कर बोझ घटाना है। यह सुधार तीन बिंदुओं पर आधारित हैं- कर ढांचे में सुधार, दरों का सरलीkरण और लोगों को राहत।

जीएसटी की सबसे बड़ी खामी है कि यह अप्रत्यक्ष कर है, जो गरीबों पर अधिक बोझ डालता है। इसके विपरीत आयkर और संपत्ति कर जैसे प्रत्यक्ष कर अधिक न्यायसंगत होते हैं। न्यायसंगत कर वही है जिसमें आय के साथ कर का अनुपात बढ़े, घटे नहीं। इस अन्याय को कम करने के लिए जीएसटी में कई स्लैब रखे गए- गरीबों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर 0 या 5 प्रतिशत और अमीरों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर ऊंचा स्लैब। लेkिन इसमें एक प्रकार का अभिभावkत्व भी है- मानो राज्य यह तय करे कि गरीब क्या खाएं-पीएं। आवश्यक और गैर-आवश्यक वस्तुओं के बीच विभाजन न तो स्पष्ट है, न स्थिर और न ही ऐसा कुछ है जिसे राज्य तय करे। जीडीपी वृद्धि के साथ गरीब मध्यम वर्ग में और मध्यम वर्ग अमीर वर्ग में जाता है। आय के आधार पर पड़ने के बजाय हम जीएसटी से पड़ने की कोशिश करते हैं।

व्यवहार में दुनिया भर में भोजन और दवाएं करमुक्त रखी जाती हैं। एक तर्कसंगत और प्रभावी प्रणाली में सभी वस्तुओं व सेवाओं पर केवल एक ही दर होनी चाहिए। सिद्धांतत: एक ही मध्यम दर, एक बहुत कम दर (भोजन, दवा जैसी आवश्यक वस्तुओं पर) और एक बहुत ऊंची दर तंबाकू, शराब जैसी विलासिता की वस्तुओं पर होनी चाहिए। भारत में स्थिति उलट है। यहां 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरों के साथ कई उपर भी हैं। इससे भ्रम, विवाद और नकदी प्रवाह की समस्याएं पैदा होती हैं। जीडीपी का बड़ा हिस्सा जैसे कृषि, पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली, शराब और रियल एस्टेट अभी भी इसके दायरे से बाहर हैं। प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर घोषित सुधारों के तहत सबसे बड़ा परिवर्तन मौजूदा बहु-स्लैब प्रणाली से दो-स्लैब प्रणाली की ओर बढऩा है- एक मानक और एक रियायती दर, साथ ही कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर विशेष दरें। इससे व्यवसायों के लिए अनुपालन आसान होगा, मुकदमेबाजी और वर्गीkरण विवाद कम होंगे और जीएसटी दरों में स्थिरता व पूर्वानुमान आएंगे।

दैनिक उपयोग और उपभोग आकांक्षा की वस्तुओं पर कर घटने से खपत बढ़ेगी और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र को लाभ होगा। दरों को कम करने से भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे और रोजगार सृजन को बल मिलेगा। सरकार निर्बाध, प्रौद्योगिkी-संचालित पंजीkरण, पूर्व-भरे हुए जीएसटी रिटर्न और तेज रिफंड की भी योजना बना रही है। वैसे सही यह है कि मध्यम दर 18 प्रतिशत नहीं, बल्कि 15 प्रतिशत होनी चाहिए और वास्तव में इसे कर सुधारों पर केलkर टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुरूप 12 प्रतिशत तक भी लाया जा सकता है।