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सिर्फ हादसा नहीं, नीतिगत विफलताओं की जलती तस्वीर

प्रदीप मेहता, (लेखक कट्स इंटरनेशनल के महासचिव हैं)

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जैसलमेर में 14 अक्टूबर को हुआ भीषण बस अग्निकांड महज एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत की सड़क सुरक्षा व्यवस्था, नियामकीय ढांचे और प्रशासनिक लापरवाही की चौंका देने वाली मिसाल है। 21 निर्दोष लोगों की जान गई, दर्जनों जिंदगी भर के लिए झुलस गए। लेकिन असली सवाल यह है — क्या यह टाला नहीं जा सकता था? उत्तर है — हां, अगर सुरक्षा को प्राथमिकता मिलती और यदि हमारी व्यवस्था केवल मुआवजा देने तक सीमित न रहती, बल्कि जिम्मेदारी तय करने और सुधार लागू करने के लिए प्रतिबद्ध होती।

आंकड़े नहीं, इंसानों की जान: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में 12,502 बस दुर्घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें लगभग 4,000 लोगों की मौत और 21,000 से अधिक घायल हुए। जैसलमेर की जिस बस में आग लगी, वह एक निजी स्लीपर कोच थी जिसे हाल ही में गैर-एसी से एसी में बदला गया था। प्रारंभिक जांच में पता चला कि बस में शॉर्ट सर्किट, एसी कंप्रेसर का विस्फोट और ज्वलनशील फाइबर इंटीरियर की वजह से आग ने तेजी से पूरी बस को अपनी चपेट में ले लिया। न इमरजेंसी एग्जिट था, ना खिड़कियों पर सुरक्षा हथौड़े, और मुख्य दरवाजा भी जाम हो गया — यात्री अंदर ही फंस कर जलते रहे। यह न केवल दुखद है, बल्कि शर्मनाक भी... क्योंकि ये मौतें नीतिगत व प्रशासनिक चूक का सीधा नतीजा हैं।

गैर-कानूनी बस मॉडिफिकेशन: जिस बस में हादसा हुआ, उसका रूपांतरण प्रमाणित एजेंसी से नहीं हुआ था। सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स (सीएमवीआर) के अनुसार, किसी भी व्यावसायिक वाहन में किए गए संशोधन की वैधता जरूरी है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका पालन शायद ही होता है।

फिटनेस प्रमाणपत्र प्रणाली में खामी: सवाल यह उठता है कि इतनी असुरक्षित बस को फिटनेस सर्टिफिकेट आखिर कैसे मिल गया? इससे विभागीय उदासीनता और संभावित भ्रष्टाचार की बू आती है।

आपातकालीन सेवाओं की कमजोरी: दुर्घटना के बाद हमारी इमरजेंसी रिस्पॉन्स व्यवस्था खुद कितनी सक्षम है? समय पर एम्बुलेंस, ग्रीन कॉरिडोर या प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था अब भी कमजोर कड़ी हैं।

सुरक्षा मानकों की अनदेखी: एआइएस-052 और एआइएस-119 जैसे मानकों के तहत बसों में इमरजेंसी एग्जिट, अग्निशमन यंत्र, सुरक्षा हथौड़े और पर्याप्त निकासी स्थान अनिवार्य हैं। लेकिन इनका अनुपालन दुर्भाग्यवश आज भी अनिवार्य नहीं बल्कि वैकल्पिक समझा जाता है।

एआइएस 153 जमीन पर कब: भारत सरकार द्वारा सितंबर 2025 से लागू किए जाने वाले संशोधित एआइएस 153 कोड में बसों के डिजाइन, निर्माण और सुरक्षा मापदंडों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। इसका उद्देश्य है — हर यात्री को एक सुरक्षित यात्रा अनुभव देना, भले ही वह किसी भी कंपनी की बस में सफर कर रहा हो।

कोड के प्रमुख प्रावधान: अग्नि सुरक्षा प्रणाली में फायर डिटेक्शन अलार्म सिस्टम (एफडीएएस) और फायर डिटेक्शन एंड सप्रेशन सिस्टम (एफडीएसएस) जैसी प्रणालियों को अनिवार्य किया गया है, जिससे आग लगने पर समय रहते अलर्ट और नियंत्रण संभव हो सके। इमरजेंसी एग्जिट में एआइएस 119 के अनुसार, अब प्रत्येक बस में उसकी लंबाई के आधार पर कम से कम 4 से 5 आपातकालीन निकास, दरवाजा और छत पर एस्केप हैच अनिवार्य होंगे। इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम में जीपीएस आधारित ट्रैकिंग, ड्राइवर मॉनिटरिंग, सीसीटीवी निगरानी और रीयल-टाइम सूचना प्रदर्शन जैसे प्रावधान भी अब लागू होंगे। टाइप अप्रूवल प्रक्रिया में बस बॉडी निर्माताओं को एआरएआई, आईसीएटी जैसी मान्यता प्राप्त एजेंसियों से परीक्षण कराना अनिवार्य होगा, ताकि सभी मापदंडों की पुष्टि हो सके। ऑटोमेटेड फिटनेस मैनेजमेंट सिस्टम में अब वाहन मालिक देशभर में किसी भी ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन पर ऑनलाइन फिटनेस जांच करा सकेंगे। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।

अब और देरी नहीं: मोटर व्हीकल (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बाद भी, कई राज्यों में सड़क सुरक्षा पर जरूरी अमल नहीं हो सका है। थर्ड पार्टी से बस मॉडिफिकेशन का अनिवार्य ऑडिट होना चाहिए। एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण (नेशनल रोड सेफ्टी बोर्ड) का गठन किया जाए, जैसा कि सुंदर समिति ने 2007 में सिफारिश की थी।

जैसलमेर की जलती बस सिर्फ 21 जानें नहीं ले गई — वह एक जलता हुआ आईना थी जिसमें हमारी व्यवस्था की असलियत झलक रही थी। अब वक्त आ गया है कि हमें सड़क सुरक्षा को एक जन-स्वास्थ्य और विकास का मुद्दा मानना होगा।

सड़क दुर्घटनाओं के डराते आंकड़े

4.80 लाख — सड़क दुर्घटनाएं हुई वर्ष 2023 में

4.2% — की वृद्धि हुई इससे पिछले वर्ष की तुलना में

1.72 लाख — लोगों की मौत तथा 4.62 लाख घायल हुए
(सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार)

12,502 — बस दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें लगभग 4 हजार मौतें21 हजार घायल हुए

1,317 — सड़क दुर्घटनाएं प्रतिदिन और 474 मौतें हर दिन